कुछ लोग अथवा कुछ बातें ऐसी होती है, जिसकी ना निकटता अच्छी होती है, ना ही उससे ज्यादा देर तक दूरी बनाकर रहा जा सकता है. आचार्य चाणक्य ने इसका उल्लेख चाणक्य नीति के चौदहवें अध्याय में बड़े स्पष्ट तौर पर किया है. आइये जानते हैं क्या कहा है आचार्य चाणक्य ने..
अग्निरापः स्त्रियो मूर्खाः सर्पा राजकुलानि च।
नित्यं यत्नेन सेव्यानि सद्यः प्राणहराणि षट्॥
आचार्य चाणक्य के अनुसार राजा, अग्नि, गुरू और स्त्री इन चारों की न तो बहुत अधिक निकटता अच्छी लगती है, ना ही बहुत दूरी अच्छी लगती है. वरना मानव का सर्वस्व नष्ट हो जाता है. जिस व्यक्ति का राजा अथवा गुरू की बहुत ज्यादा निकटता मिलने से वह अभिमानी और घमंडी हो जाता है, उसमें तमाम दोष आ जाते हैं. जबकि दूर रहने से लोग उसकी उपेक्षा करने लगते हैं. इसी तरह अग्नि के बहुत ज्यादा करीब रहने से ऊर्जा एवं प्रकाश की कमी हो जाती है. स्त्री की निकटता अनेक विकार उत्पन्न करती है, तथा दूर रहने पर उसके पथभ्रष्ट होने का भय रहता है. इस स्थिति से बचने के लिए चाणक्य कहते हैं, मानव का मध्य मार्ग द्वारा इनका उपाय निकालना चाहिए. कुछ ऐसा प्रयास करें कि ना ही इनके बहुत करीब जाएं और ना अधिक दूर हों. यह भी पढ़ें : Chanakya Niti: ऐसे लोगों की मेजबानी करना, आपके भविष्य, आपकी इमेज को तार-तार कर सकता है!
इसी तरह आचार्य ने अपने निम्न श्लोक में कुछ और ऐसे प्राणियों का उल्लेख किया है, जिनसे व्यवहार करते समय मनुष्य को हमेशा सावधान ही रहना चाहए.
'स जीवति गुणा यस्य यस्य धर्मः स जीवति।
गुणधर्मविहीनस्य जीवितं निष्प्रयोजनम्॥'
वे अपने पूर्व के चार नामों अग्नि, जल, स्त्री, मूर्ख व्यक्ति, सांप और राजपरिवार, ये मनुष्य के लिए जितने उपयोगी हैं, उतने ही असावधान रहने पर घातक भी साबित हो सकते हैं. इसलिए इनके साथ सोच-विचार कर ही व्यवहार करना चाहिए.