Azadi ka Amrit Mahotsav 2022: हमें कृतज्ञ होना चाहिए उनका, जिन्होंने शहादत्त देकर हमें आजादी दिलाई! प्रस्तुत है ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ पर एक ओजस्वी भाषण…
आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय, सम्मानित गुरुजनों एवं साथियों... सर्वप्रथम आजादी की 75वीं वर्षगाँठ पर आप सभी को अनेक अनेक शुभकामनाएं. आज इस पुनीत पर्व पर मुझे अपनी ही पाठशाला में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित कर माननीय प्रधानाचार्य ने मुझे जो सम्मान दिया उसका आभार व्यक्त करने के लिए मैं नि:शब्द हूं. सम्मानित जनों, आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं.
इस राष्ट्रीय पर्व को यादगार बनाने के लिए हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 'हर घर तिरंगा'  की अपील कर राष्ट्रध्वज को जो सम्मान देने का आह्वान किया है, वह अद्भुत है. देश उनके प्रति आभार व्यक्त करता है.  यहाँ हमें यह भी जानना जरूरी है, कि आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ को 'आजादी का अमृत महोत्सव' नाम क्यों दिया गया? वस्तुतः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महान अवसर को खास बनाने के लिए तमाम योजनाएं बनाई है. प्रधान मंत्री के अनुसार आजादी के अमृत महोत्सव का अर्थ आजादी की ऊर्जा का अमृत है, यानी स्वतंत्रता सेनानियों की स्वाधीनता का अमृत. आजादी का अमृत महोत्सव का आशय नए विचारों का अमृत, नए संकल्पों का अमृत और आत्मनिर्भरता का अमृत है.
मित्रों आज हम जिस आजाद भारत में सुख चैन की नींद सो रहे हैं, वह हमें सौ सालों की कठिन तपस्या, संघर्ष एवं असंख्य कुर्बानियों के बाद मिली है. पहले भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश था. उस लंबी अवधि में भारतवासियों ने बहुत कुछ सहा है. अपने ही देश में गुलामों का जीवन जीना कितनी बड़ी यंत्रणा है, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है. हम भाग्यशाली हैं कि हमने स्वतंत्र भारत में जन्म लिया है. आजादी के बाद हमें हमारा संविधान मिला, अपना जीवन अपने तरीके से जीने की आजादी मिली,  हम अपने मौलिक अधिकारों का पूरा आनंद उठा रहे हैं.
आपको पता ही होगा कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आजादी की पहली हुंकार 1857 में मंगल पांडे ने भरी थी, धीरे-धीरे आजादी की यह चिंगारी 1947 तक आते-आते दावानल बन गई. 90 साल के इस कठिन संघर्ष भरे दौर में तमाम क्रांतिकारियों ने अपने जीवन का बलिदान दिया. हम उन क्रांतिकारियों एवं स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों को कैसे भूल सकते हैं, वह चाहे रानी लक्ष्मीबाई हों, महात्मा गांधी हों, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद,  बटुकेश्वर दत्त, सुभाष चंद्र बोस, अशफाक उल्ला खां हों, इनमे से कुछ क्रांतिकारी तो 20 की आयु भी पूरी नहीं कर सके थे. जिनमे प्रमुख थे क्रांतिकारी,  खुदीराम बोस जो 18 वर्ष की आयु में हँसते हुए भागवद् गीता हाथ में लिये फांसी के फंदे पर झूल गए थे. आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर हमें यह कहते हुए बहुत गर्व महसूस हो रहा कि हमारे देश ने चहुँमुखी विकास किया है. आज हम विश्व की चौथी बड़ी शक्ति बन चुके हैं.
भारत आज भी एक शांतिप्रिय देश के रूप में मशहूर है, और इसका श्रेय  गांधीजी को जाता है. हमें उनके अहिंसा दर्शन को हमेशा याद रखना चाहिए और अपने जीवन में इसका पालन करना चाहिए. अपने 75 साल के इतिहास में हर तरह से समर्थ होते हुए भी कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, और जिसने हमारी शांति को कमजोरी समझा, हमने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया.   एक बार फिर आजादी के इस अमृत महोत्सव पर आप सभी को अनेकानेक शुभकामनाएं
जय हिंद. भारत माता की जय