हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर आंवला नवमी मनाई जाती है. कुछ जगहों पर इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं. जैसा कि पर्व के नाम से ही पता चलता है कि इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा होती है. परंपराओं के अनुसार इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा होती है और इसी वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाया और सेवन किया जाता है. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार आंवले के वृक्ष में भगवान श्रीहरि निवास करते हैं. आंवला नवमी के दिन विष्णुजी के साथ माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष विधान है. आइये जानते हैं आंवला नवमी का महत्व, पूजा विधि, एवं शुभ मुहूर्त आदि के बारे में विस्तार से...
आंवला नवमी का महत्व
पद्म पुराण में उल्लेखित है कि आंवले के वृक्ष में विष्णुजी का वास होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के वृक्ष की मूल में भगवान विष्णु, शिखर पर ब्रह्मा, एवं स्कंद में भगवान शिव वास करते हैं, इसके अलावा शाखाओं में ऋषि-मुनि, पत्तों में वसु, पुष्पों में मरुद्रण और फलों में प्रजापति निवास करते हैं. मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मा, विष्णु, शिवजी एवं अन्य देवताओं की कृपा से पूरे जीवन धन, विवाह, संतान, एवं गृहस्थ जीवन में किसी तरह की समस्याएं नहीं आती. मान्यता है कि कोई महिला संतान प्राप्ति के लिए अगर यह व्रत रखती है, तो उसकी इच्छा ईश्वर जरूर पूरी करते हैं. यह भी पढ़ें : Andhra Pradesh Formation Day 2022 Greetings: आंध्र प्रदेश फ़ॉर्मेशन डे पर ये ग्रीटिंग्स HD Images और Wallpapers के जरिए भेजकर दें बधाई
आंवला नवमी की तिथि एवं शुभ मुहूर्त
इस वर्ष आंवला नवमी 2 नवंबर 2022, बुधवार के दिन मनाई जायेगी.
आंवला नवमी प्रारंभः 11.04 PM (01 नवंबर 2022, मंगलवार) से
आंवला नवमी समाप्तः 09.09 PM (02 नवंबर 2022, बुधवार) तक
उदया तिथि के अनुसार 02 नवंबर 2022 को आंवला नवमी (अक्षय नवमी) मनाई जायेगी.
पूजा का मुहूर्तः 06.34 AM से 12.04 PM तक
अभिजित मुहूर्तः 11.55 AM से 12:37 PM तक
पूजा विधि
आंवला नवमी को प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें. विष्णुजी का ध्यान करते हुए घर के मंदिर में उनके नाम दीप प्रज्वलित करें. अब शुभ मुहूर्त में पूजा सामग्री के साथ निकटतम आंवले के वृक्ष के नीचे आयें. वृक्ष के नीचे तने के पास धूप-दीप प्रज्वलित करें. इस पर पीला चंदन, अक्षत एवं रोली का तिलक लगायें. भगवान विष्णु के निम्न मंत्र का 108 बार जाप करें.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
अब वृक्ष की जड़ में गाय का कच्चा दूध अर्पित करें.
इसके बाद हाथ में सूत का कच्चा धागा या मौली लेकर वृक्ष की 8 बार परिक्रमा करते हुए सूत को पेड़ के तने में लपेटते चलें. इसके पश्चात आमला नवमी की पौराणिक कथा सुनें. पूजा के बाद वृक्ष के नीचे बैठकर परिवार के साथ भोजन ग्रहण करने की भी मान्यता है.
आंवला नवमी की पौराणिक कथा
एक बार मां लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करने निकलीं. उन्होंने पृथ्वी पर ही विष्णुजी और शिवजी की एक साथ पूजा-अर्चना की कामना की. उन्होंने सोचा कि दोनों की पूजा एक साथ कैसे की जा सकती है. तभी उन्हें पता चला कि तुलसी और बेल की गुणवत्ता वाले आंवले के पेड़ की पूजा करके शिवजी एवं श्रीहरि की पूजा संयुक्त रूप से पूजा की जा सकती है. लक्ष्मी जी ने आमले के पेड़ की पूजा की, तो भगवान शिव एवं विष्णुजी प्रकट हुए. लक्ष्मी जी ने आमले के पेड़ के नीचे भोजन तैयार किया. भगवान शिव एवं विष्णुजी ने भोग लगाया. इसके बाद से आमला नवमी के दिन आमले के पेड़ की पूजा की जा रही है.