Adi Shankaracharya Jayanti 2024: कब है शंकराचार्य जयंती? जानें कितनी कठिन शर्तें होती हैं शंकराचार्य के चुनाव में?
Adi Shankaracharya Jayanti

आदि शंकराचार्य हिंदू धर्म के प्रमुख आचार्यों में एक थे. उनका योगदान धार्मिक, दार्शनिक और सामाजिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण रहा है. शंकराचार्य ने अपने संपूर्ण जीवनकाल में वेदांत दर्शन को प्रमुखता से प्रचारित किया और उनके ग्रंथों में अनंतता के तत्वों की व्याख्या की. आदि शंकराचार्य की जयंती हमें उनके विचारों और उपदेशों को याद करने का अवसर प्रदान करती है. आदि शंकराचार्य की जयंती (12 मई) के अवसर पर आइये जानते हैं सनातन धर्म के प्रवर्तक आदि शंकराचार्य की जीवन एवं उनके द्वारा स्थापित मठों के बारे में...

कब मनाई जाएगी आदि शंकराचार्य जयंती

वैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी प्रारंभः 02.03 AM (12 मई 2024, रविवार) से

वैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी समाप्तः 02.03 AM (13 मई 2024, रविवार) तक

उदया तिथि के नियमों के अनुसार 12 मई 2024 को आदि शंकराचार्य जयंती मनाई जाएगी.

जन्म से चार मठों की स्थापना तक

आदि शंकराचार्य का जन्म कालड़ी गांव (केरल) में 508-9 ईसा में बताया जाता है. उनकी माँ का नाम आर्याम्बा और पिता का नाम शिवगुरु था. जब वे मात्र 12 वर्ष के थे, उन्होंने वेदांत के प्रचार के लिए घर-बार छोड़कर जंगलों एवं पहाड़ों में भटकते हुए ओंकारेश्वर में ज्ञान प्राप्त किया. यहां से वह काशी की ओर प्रस्थान कर गये. आज आदि शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत के कारण ही भारत एक है. ग्रंथों में उल्लेख है कि 32 वर्ष की छोटी सी आयु में उन्होंने देश के चार कोनों में चार मठों ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, श्रृंगेरी पीठ आश्रम, द्वारिका शारदा पीठ और पुरी गोवर्धन पीठ की स्थापना की थी. कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य का निधन 32 वर्ष की आयु में हिमालय के केदारनाथ में हुई थी. यह भी पढ़ें : Parshuram Jayanti 2024 Messages: परशुराम जयंती की इन हिंदी Quotes, WhatsApp Wishes, GIF Greetings, Photo SMS के जरिए दें शुभकामनाएं

कैसे हुई शंकराचार्य परंपरा की शुरुआत?

चारों मठों के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है. संस्कृत में इन मठों को पीठ कहते हैं. इन चारों मठों की स्थापना करके आदि शंकराचार्य ने अपने चार सबसे मुख्य शिष्यों को उसकी जिम्मेदारी प्रदान की. इसके बाद से ही भारत में शंकराचार्य परंपरा जारी है.

क्या होते हैं मठ?

हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार जहां गुरू अपने शिष्यों को शिक्षा और ज्ञान की बातें बताते हैं, उसे मठ कहते हैं. ये गुरू अपने शिष्यों को आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं. इन मठों में इसके अलावा सामाजिक सेवा, साहित्य सेवा आदि से जुड़े कार्य भी होते हैं.

ऐसे होता है शंकराचार्यों का चुनाव

शंकराचार्य बनने के लिए पहली योग्यता संन्यासी होना होता है. यानी गृहस्थ जीवन से दूर जाकर त्याग, मुंडन, और अपना पिंडदान करना बहुत जरूरी होता है. एक ब्राह्मण ही शंकराचार्य बन सकता है, जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो. उसका चारों वेदों और छहों वेदों का संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए. इन प्रक्रियाओं के पश्चात शंकराचार्यों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वर, सम्मानित संतों की सभा की स्वीकृति होने के बाद ही काशी विद्वत परिषद की मुहर के बाद शंकराचार्य पद प्राप्त हो पाता है.