Adi Shankaracharya Jayanti 2020: वैशाख मास का सनातन धर्म में विशेष महत्व है. इस माह में तमाम संतों-कवियों के साथ-साथ भगवान श्रीहरि ने भी परशुरामजी के रूप में अवतार लिया था. इसी श्रृंखला में वैशाख शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन महाकवि सूरदास जी तथा हिंदू धर्म को एक सूत्र में बांधने वाले और भगवान शिव के अवतार (Shiva Avatar) आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) जी का भी जन्म हुआ था. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार 28 अप्रैल, 2020 को आदि शंकराचार्य की जयंती (Adi Shankaracharya Jayanti) है. आइए जानें आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को किस तरह एकजुट कर एक क्रांतिकारी चेतना जगाई.
छोटी उम्र में संन्यास
शंकराचार्य के जन्म के संदर्भ में कहा जाता है कि दक्षिण भारत के कालड़ी ग्राम में शिवगुरु नामक नंबूदरीपाद ब्राह्मण थे. लंबे समय तक निसंतान रहने के बाद उन्होंने पत्नी विशिष्ठा के साथ शिवजी की कठोर तपस्या की. तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देते हुए वर मांगने को कहा. शिवगुरु ने ऐसी संतान की कामना की जो दीर्घायु होने के साथ ही सर्वज्ञ भी हो. शिवजी ने कहा कि तुम्हारी संतान ‘दीर्घायु’ हो सकती है या ‘सर्वज्ञ’ क्योंकि जो ‘दीर्घायु’ होता है, वह ‘सर्वज्ञ’ नहीं हो सकता. शिवगुरु ने ‘सर्वज्ञ’ संतान की इच्छा जताई.
कहते हैं कि शिवगुरु से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी ने साल 788 ई.पू. को वैशाख शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन विशिष्ठा देवी की गर्भ से संतान के रूप में अवतार लिया. शिवजी के आशीर्वाद से पैदा हुए पुत्र का नाम पिता शिवगुरु ने शंकर रखा. शंकर काफी छोटे थे कि पिता की मृत्यु हो गयी. कहते हैं कि शंकर का मन बचपन से ही वैराग्य की तरफ मुड़ने लगा था. अंततः मां से अनुमति लेकर उन्होंने ज्ञान और गुरु की तलाश में घर छोड़ दिया.
7 वर्ष की अल्पायु में बनें चारों वेदों के ज्ञाता
घर छोड़ने के पश्चात वेदांत गुरु गोविंदनाथ से ज्ञान प्राप्त करने के बाद शंकर ने सारे देश का भ्रमण किया. उन्होंने मात्र 7 वर्ष की आयु में चारों वेद कंठस्थ कर लिया था. 12 वर्ष तक पहुंचते-पहुंचते वे तमाम शास्त्रों में पारंगत हो चुके थे. 16 वर्ष की आयु में वह सौ से अधिक ग्रंथों की रचना कर अन्य शिष्यों को अपनी शिक्षा का ज्ञान देने लगे थे. भ्रमण के दौरान उन्होंने मिथिला के महान विद्वान मण्डन मिश्र को शास्त्रार्थ में हराया, किंतु मण्डन मिश्र की पत्नी भारती से पराजित हो गये.
अलबत्ता दुबारा रति विज्ञान में पारंगत होकर उन्होंने भारती को पराजित किया. इसीलिए उन्हें ‘आदिगुरु शंकराचार्य’ की उपाधि मिली. इनके जीवन का अधिकांश भाग उत्तर भारत में बीता. देश के चारों कोनों में शक्तिपीठ की स्थापना कर हिंदू धर्म की दिव्य ज्योति संपूर्ण विश्व में प्रज्जवलित किया. 32 वर्ष की अल्पायु में यानी साल 820 में उन्होंने केदारनाथ में देह त्याग दिया.
चार मठों की स्थापना की
आदि शंकराचार्य के जन्म से पूर्व हिंदू धर्म हर दृष्टि से बिखरा हुआ था. आदि शंकराचार्य ने इन्हें एक सूत्र में पिरोने के लिए देश के चारों दिशाओं में एक-एक मठ की स्थापना की, ताकि इन मठों के द्वारा देश के हिंदु धर्म को एकजुट किया जा सके. चार मठों की स्थापना के साथ ही आदि शंकराचार्य ने यहां मठाधीशों की नियुक्ति की, ये चार मठ निम्न हैं. यह भी पढ़ें: Akshay Tritiya 2020: जैन धर्म में ‘अक्षय तृतीया’ का महात्म्य! जानें क्या है ‘वर्षी तपस्या’ व ‘इक्षु तृतीया’ का अर्थ?
श्रृंगेरी मठः दक्षिण भारत के चिकमंगलुर में आदि शंकराचार्य ने पहले मठ के रूप में श्रृंगेरी मठ की स्थापना की. इस मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘सरस्वती’, ‘भारती’ तथा ‘पुरी’ सम्प्रदाय का विशेषण लगाया जाता है. इस तरह वे उपरोक्त संप्रदाय विशेष के संन्यासी कहलाते हैं. इस मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य सुरेश्वरजी थे. मठ का महावाक्य 'अहं ब्रह्मास्मि' है.
गोवर्धन मठः भारत के पूर्व में स्थित ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में स्थित है गोवर्धन मठ. इस मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'वन' व 'आरण्य' सम्प्रदाय का विशेषण लगाते हैं. इस मठ का महावाक्य है 'प्रज्ञानं ब्रह्म' तथा इस मठ के अंतर्गत 'ऋग्वेद' को रखा गया है. इस मठ के प्रथम मठाधीश आदि शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपादचार्य थे.
शारदा मठः गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है शारदा मठ. इस मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' सम्प्रदाय जैसा विशेषण लगाते हैं. इस मठ का महावाक्य, 'तत्वमसि' तथा इसके अंतर्गत 'सामवेद' को रखा गया है. यहां के प्रथम मठाधीश हस्तामलक थे.
ज्योतिर्मठः उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है ज्योतिर्मठ. यहां संन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' एवं ‘सागर’ सम्प्रदाय नामक विशेषण लगाते हैं. इस मठ का महावाक्य 'अयमात्मा ब्रह्म' है. ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश त्रोटकाचार्य बनाए गए थे.