नाटो के सामने नए साल की शुरुआत में कई चुनौतियां हैं. गठबंधन को यह तय करना है कि रूस के खिलाफ अपनी सुरक्षा को कैसे मजबूत किया जाए, यूक्रेन का समर्थन कैसे किया जाए और डॉनल्ड ट्रंप के अप्रत्याशित फैसलों से कैसे निपटा जाए.नाटो के नए प्रमुख मार्क रूटे ने एक भाषण में 2025 के लिए गठबंधन की प्राथमिकताओं की रूपरेखा तय की. इस भाषण में उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि युद्ध इस सैन्य गठबंधन के दरवाजे पर कितना करीब आ गया है.
कार्नेगी यूरोप में दिसंबर में दिए गए भाषण में उन्होंने कहा, "ब्रसेल्स से यूक्रेन तक ड्राइव करने में सिर्फ एक दिन लगता है. इससे समझा जा सकता है कि रूसी बम हमारे इतने करीब गिर रहे हैं. ईरानी ड्रोन इतने करीब उड़ रहे हैं. उत्तर कोरिया के सैनिक भी लड़ाई कर रहे हैं और वह भी बहुत दूर नहीं है.”
रूटे ने कहा कि सरकारों को रक्षा क्षेत्र में ज्यादा खर्च करना चाहिए और निवेश बढ़ाना चाहिए. इससे न केवल यूरोप की सुरक्षा मजबूत होगी, बल्कि यूक्रेन को मदद भी मिलेगी और रूस को आगे बढ़ने से रोका जा सकेगा.
क्या रक्षा पर ज्यादा खर्च करके ट्रंप की चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी?
अगर नाटो के यूरोपीय सदस्य रक्षा पर अपने खर्च बढ़ाते हैं, तो इससे इस गठबंधन को डॉनल्ड ट्रंप के अप्रत्याशित फैसलों से निपटने में भी मदद मिलेगी.
हाल के सभी अमेरिकी राष्ट्रपति ने यूरोपीय देशों से अपनी रक्षा पर ज्यादा खर्च करने को कहा है, लेकिन ट्रंप अकेले ऐसे हैं जिन्होंने रक्षा पर अधिक खर्च करने में विफल रहने वाले गठबंधन सदस्यों को छोड़ने या सहायता न करने की धमकी दी है.
ट्रंप को खुश करने की अपनी कोशिशों के तहत, कई यूरोपीय देशों ने पिछले वर्ष अपनी जीडीपी का 2 फीसदी हिस्सा रक्षा पर खर्च किया. अब, जबकि ट्रंप शपथ लेने की तैयारी कर रहे हैं, ऐसे में सुझाव दिए जा रहे हैं कि नाटो अपनी रक्षा पर खर्च के लक्ष्य को 3 या 4 फीसदी तक बढ़ा सकता है.
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रूटे ने पुष्टि की, "हमें सहयोगियों के साथ बातचीत करने के लिए और समय चाहिए, ताकि हम यह तय कर सकें कि नया खर्च कितना होना चाहिए. हालांकि, यह 2 फीसदी से ज्यादा होना चाहिए. मैं साफ तौर पर कह सकता हूं कि अगर सिर्फ खर्च करेंगे, लेकिन बेहतर तरीके से खर्च नहीं करेंगे, तो आपको कम से कम 4 फीसदी तक जाना होगा.”
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप संभवतः 4 फीसदी की दर पर जोर देंगे और यूरोपीय सहयोगियों को सलाह दी जाएगी कि वे ऐसे सौदे पेश करें जो ट्रंप के मुताबिक हों.
जर्मन मार्शल फंड (जीएमएफ) के फेलो गेजिन वेबर ने डीडब्ल्यू को लिखित बयान में कहा, "यूरोपीय देशों को अमेरिका को एक अच्छा सौदा देने की जरूरत है. यह एक ऐसा मॉडल हो सकता है जिसमें अमेरिका केवल 'सहायक' या 'अंतिम सहारा' की भूमिका निभाए, जबकि यूरोपीय देश अपनी रक्षा का ज्यादातर जिम्मा खुद उठाएं. इससे यह मानदंड पूरा हो सकता है.”
नाटो को मजबूत करने के लिए यूरोपीय प्रयास
नाटो के यूरोपीय सदस्यों में इस बात पर सहमति है कि उन्हें अपनी रक्षा के लिए अधिक प्रयास करने होंगे. जैसे, रक्षा उत्पादन में हो रही कमी को पूरा करना और लॉजिस्टिक के गैप्स को भरना.
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वर्ष 2024 में, नाटो ने शीत युद्ध के बाद से अपने सबसे बड़े सैन्य अभ्यास, स्टेडफास्ट डिफेंडर का आयोजन किया. इसी साल दिसंबर में, नाटो ने अपनी 2015 की हाइब्रिड युद्ध रणनीति में बदलाव करने का फैसला किया, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में कथित तौर पर रूस के इशारे पर तोड़फोड़ की संदिग्ध घटनाएं बढ़ी हैं.
नाटो की सीमाओं पर सैनिकों की तैनाती बढ़ाने के लिए भी ठोस प्रयास किए जा रहे हैं. उदाहरण के लिए, जर्मनी ने 2027 तक लिथुआनिया में 5,000 सैनिक भेजने का फैसला किया है.
नाटो के यूरोपीय सदस्यों को खुफिया जानकारी जुटाने, दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखने और जासूसी करने में काफी मुश्किल होती है. उनके पास ऐसे उपग्रह नहीं हैं जो दुश्मन के इलाकों की तस्वीरें ले सकें और न ही उनके पास ऐसे बड़े हेलीकॉप्टर हैं जो भारी-भरकम रक्षा उपकरणों और सैनिकों को लंबी दूरी तक ले जा सकें.
यूरोप के देशों को अमेरिका पर निर्भरता और उससे मिलने वाली मदद कम करने के लिए अपने देशों में भी ऐसे उपकरण बनाने होंगे. इसकी योजना भी तैयार की जा रही है. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा करने में उन्हें दस साल से भी ज्यादा समय लग सकता है.
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यूरोपीय काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस में पॉलिसी फेलो राफेल लॉस ने डीडब्ल्यू को बताया, "यूरोपीय देशों के पास बहुत कम उपग्रह हैं और इस कमी को पूरा करने में 10-15 साल लग सकते हैं. हालांकि, यूरोपीय देशों के लिए पहली चुनौती ऐसी परियोजनाओं के लिए धन जुटाना है, क्योंकि इनके लिए काफी ज्यादा धन चाहिए.” लॉस यूरो-अटलांटिक क्षेत्र में सुरक्षा और रक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं.
नाटो के फायदे सिर्फ उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र तक सीमित नहीं हैं
नाटो के यूरोपीय सदस्य तर्क देते हैं कि यह गठबंधन न केवल अटलांटिक महासागर के दोनों ओर सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करता है, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के खिलाफ अमेरिका को भी मजबूत करता है. यानी, नाटो की वजह से अमेरिका एशिया में चीन के खिलाफ भी मजबूती से खड़ा हो सकता है.
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नाटो ने अपने चार एशियाई साझेदारों, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं. इन चार देशों को AP4 कहा जाता है. इस गठबंधन का उद्देश्य चीन और रूस की ‘सीमाहीन' साझेदारी का मुकाबला करना है. उम्मीद है कि अगले साल नाटो और AP4 के बीच खुफिया जानकारी साझा करने में और वृद्धि होगी.
लॉस ने कहा, "नाटो के यूरोपीय सदस्य ट्रंप के उन लोगों को समझाना चाहते हैं जो चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना चाहते हैं. वे कह रहे हैं कि अगर नाटो को छोड़ दिया जाता है, तो अमेरिका के लिए चीन का मुकाबला करना बहुत मुश्किल हो जाएगा.” दूसरे शब्दों में कहें, तो यूरोपीय देश ट्रंप को समझाना चाहते हैं कि नाटो को कमजोर करने से चीन के खिलाफ लड़ना बहुत मुश्किल हो जाएगा.
यूक्रेन को लेकर ट्रंप के रूख पर संशय
फरवरी 2025 में यूक्रेन पर रूसी हमले के तीन साल पूरे हो जाएंगे. इसी के साथ यूरोपीय नेताओं ने फिर से कहा है कि वे यूक्रेन के साथ हैं, लेकिन उन्हें इस बात का भी अहसास है कि यदि अमेरिका सहायता रोक देता है, तो वे इस कमी को पूरा नहीं कर पाएंगे.
घरेलू बजट की कमी के कारण, अमीर यूरोपीय देश यूक्रेन से किए गए वादों को पूरा करने में हिचकिचा रहे हैं. खासकर तब, जब यह पता नहीं है कि यूक्रेन के सबसे बड़े आर्थिक और सैन्य समर्थक, अमेरिका का समर्थन जारी रहेगा या नहीं. यूरोपीय देशों को डर है कि अगर अमेरिका ने यूक्रेन की मदद बंद कर दी, तो उन्हें अकेले यूक्रेन की मदद करनी पड़ेगी, जो उनके लिए मुश्किल होगा.
वाशिंगटन में रहने वाली जीएमएफ जियोस्ट्रेटजी नॉर्थ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन बर्जिना ने डीडब्ल्यू को बताया कि नाटो में यूक्रेन की सदस्यता भी ‘गठबंधन के भीतर टकराव की एक प्रमुख वजह' होगी.
वेबर ने कहा, "जर्मनी को छोड़कर, नाटो के यूरोपीय सदस्य आम तौर पर यूक्रेन को गठबंधन में शामिल करने का समर्थन करते हैं. हालांकि, अगर ट्रंप प्रशासन इसका विरोध करता है, तो यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जा सकेगा.”
बर्जिना के मुताबिक, "यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की यह स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि यूक्रेन का भविष्य नाटो में होना चाहिए. यानी, आने वाले समय में यूक्रेन नाटो का हिस्सा होना चाहिए, लेकिन अमेरिका के अगले उपराष्ट्रपति जेडी वैंस ने इस पर संदेह व्यक्त किया है.”
फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने दिसंबर में नोत्रे दाम कैथेड्रल के फिर से खुलने के अवसर पर ट्रंप और जेलेंस्की की मेजबानी की. विशेषज्ञों का कहना है कि इसका लक्ष्य यूक्रेन पर ट्रंप के रुख को नरम करना और कीव के पक्ष में उनकी नीति को प्रभावित करना था.
वहीं, इस पूरे मसले पर लॉस कहते हैं, "कोई नहीं जानता कि ट्रंप क्या कदम उठाएंगे. यह एक बड़ा सवाल है जिसका जवाब अभी तक नहीं मिला है.”