नई दिल्ली: देश की शीर्ष कोर्ट (Supreme Court) ने बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि "त्वचा से त्वचा के संपर्क" (Skin To Skin Contact) के बिना नाबालिग के स्तन को टटोलना पॉस्को एक्ट (POCSO Act) के तहत यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) नहीं माना जा सकता है. Maharashtra Shocker: बीड में शादीशुदा नाबालिग से 6 महीने में पुलिस वाले समेत 400 लोगों ने किया रेप, 3 गिरफ्तार
सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर महीने में ही बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई पूरी कर ली थी जिसमें कहा गया था कि अगर आरोपी और पीड़िता के बीच कोई सीधा “त्वचा से त्वचा” संपर्क नहीं है, तो पोक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है.
सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला सुनाया और कहा कि हम बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सही नहीं मानते है, त्वचा से त्वचा के संपर्क के बिना भी अपराधी पर पॉक्सो एक्ट लागू होगा. जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की तीन सदस्यीय बेंच ने कहा कि यौन उत्पीड़न का सबसे महत्वपूर्ण घटक इसका इरादा होना है, न कि बच्ची के साथ त्वचा से त्वचा का संपर्क होना. कानून का मकसद अपराधी को कानून के चंगुल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता.
Supreme Court sets aside the Bombay High Court judgment that held that groping a minor's breast without "skin to skin contact" can't be termed as sexual assault as defined under the Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act. pic.twitter.com/1tBO6vbbNU
— ANI (@ANI) November 18, 2021
सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया था कि वह अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल द्वारा दिए जाने वाले कथन को अपनायेगी. वेणुगोपाल ने पहले शीर्ष अदालत से कहा था कि बॉम्बे हाईकोर्ट का विवादास्पद फैसला एक “खतरनाक और अपमानजनक मिसाल” स्थापित करेगा और इसे उलटने की जरूरत है.
अटॉर्नी जनरल और राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की अलग-अलग अपीलों पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने 27 जनवरी को उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें एक व्यक्ति को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत बरी करते हुए कहा गया था कि बिना ‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’ के “नाबालिग के वक्ष को पकड़ने को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है.”
क्या था मामला?
सत्र अदालत ने अपराधी को भारतीय दंड संहिता की धारा 354 और पॉक्सो काननू के तहत दोषी ठहराते हुए तीन साल की सजा सुनाई थी. जबकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा था, लेकिन पॉक्सो कानून के तहत उसे बरी कर दिया था. बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि त्वचा से त्वचा के संपर्क” के बिना नाबालिग के वक्ष को छूना पोक्सो अधिनियम के तहत यौन हमला नहीं कहा जा सकता है. आरोपी ने क्योंकि बिना कपड़े निकाले बच्चे के वक्ष को छुआ इसलिए इसे यौन हमला नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यह भादंवि की धारा 354 के तहत एक महिला की गरिमा भंग करने का अपराध है. इस फैसले पर बाद में खूब विवाद हुआ और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया.