Salute to CDS Bipin Rawat: नहीं रहे देश के महानायक और पहले CDS बिपिन रावत! जानें इस महान सेनानी की प्रेरक गाथा!
CDS Bipin Rawat (Photo: PTI)

हेलिकॉप्टर क्रैश में देश के प्रथम सीडीएस बिपिन रावत का निधन हो गया है. जो हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ है, उसमें 14 लोग सवार थे. सीडीएस रावत की पत्नी मधुलिका रावत भी हेलिकॉप्टर में उनके साथ थीं. ये दर्दनाक हादसा तमिलनाडु के कुन्नूर के पास बुधवार दोपहर को हुआ था. सूत्रों के अनुसार हेलीकॉप्टर पर सवार 14 में 13 लोगों की मृत्यु की पुष्टि हो चुकी है. आइये जानें देश के इस महान योद्धा की प्रेरक गाथा. RIP CDS Bipin Rawat: नहीं रहे सीडीएस जनरल बिपिन रावत, पीएम मोदी ने कहा- यह अपूरणीय क्षति.

बिपिन रावतः एक संक्षिप्त परिचय

बिपिन रावत का जन्म 16 मार्च 1958 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हुआ था. कहावत मशहूर है कि डॉक्टर का बेटा डॉक्टर ही बनता है, यहां बिपिन रावत भी अपवाद नहीं थे. सेना में ‘लेफ्टिनेंट जनरल’ के नाम मशहूर पिता एलएस रावत के पद-चिह्नों पर चलने का संकल्प उन्होंने बचपन में ही ले लिया था, क्योंकि उनका बचपन ज्यादातर फौजियों के बीच गुजरा था.

फौजियों की शौर्यता की कहानी से बालक बिपिन बहुत प्रेरित होते थे. प्रारंभिक शिक्षा सेंट एडवर्ड स्कूल शिमला में पूरी करने के पश्चात उन्होंने भारतीय सेना अकादमी (Indian Military Academy) में प्रवेश लिया और देहरादून चले आये. यहां उनके प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें पहला सम्मान-पत्र ‘SWORD OF HONOUR’ प्राप्त हुआ. इसके पश्चात उन्होंने अमेरिका के सर्विस स्टाफ कॉलेज में ग्रेजुएशन करते हुए हाई कमांड कोर्स भी किया.

यूं पूरा हुआ भारतीय आर्मी में प्रवेश का संकल्प

अमेरिका से लौटने के पश्चात उन्होंने भारतीय सेना में शामिल होने का फैसला किया. कुछ कोशिशों के पश्चात 16 दिसंबर 1978 में उन्हें गोरखा 11 राइफल्स की 5वीं बटालियन में प्रवेश मिला. यहीं से उनका फौजी जीवन शुरु हुआ. यहां उन्हें सेना के अनेक नियमों को सीखने का अवसर मिला. एक इंटरव्यू में उन्होंने जाहिर किया था कि उन्होंने गोरखा बटालियन में रहते हुए जो सीखा. वह अन्यंत्र सीखने को नहीं मिला है.

यहां कार्य करते हुए उन्हें सेना की नीति एवं नियमों को सीखा और समझा. गोरखा रेजिमेंट में रहते हुए उन्होंने आर्मी की अनेक जैसे क्रॉप (Crops) , जीओसी-सी ( GOC-C) , दक्षिणी कमांड (SOUTHERN COMMAND), आईएमए देहरादून ( IMA DEHRADUN), मिलेट्री ऑपरेशन डायरेक्टोरेट (MILLTERY OPREATIONS DIRECTORET) में लॉजिस्टिक्स स्टाफ ऑफीसर्स (LOGISTICS STAFF OFFICER) आदि पद पर काम करते हुए काफी कुछ सीखा.

अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी सेवाएं दी

बिपिन रावत ने भारत में ही नहीं, बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी सेवाएं दी हैं. वे कांगो के यूएन मिशन (UN Mission) में सहकार दिया. उसी दरम्यान उन्हें अंतराष्ट्रीय स्तर पर सेवायें देने के कई अवसर मिले. कहा जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय सेवाएं देते हुए उन्होंने 7000 लोगों की जान बचाई थी.

सेना में रहते हुए जीते तमाम शौर्य पदक

बिपिन रावत जी को सेना में रहते हुए सेना में अनेकों पुरस्कार और पदक प्राप्त हुए. उन्होंने युद्ध नीति की कला-कौशल को सीखते हुए अपने कौशल का सही इस्तेमाल किया और सेना के कई मैडल प्राप्त किये. यद्यपि 37 साल के सेना के करियर में उन्हें तमाम अवार्ड मिले,जिनके बारे में जिक्र करना संभव नहीं है.

सेना आर्मी चीफ तक का सफर

  • सेना प्रमुख का पद संभाला 31 दिसंबर 2016
  • सेना प्रमुख पद से इस्तीफा 31 दिसंबर 2019

बिपिन रावत जी को सेना का प्रमुख बनाया गया. उन्हें 31 दिसंबर 2016 को दलबीर सिंह सुहाग का उत्तराधिकारी बनाया गया. यह पद बिपिन रावत के जीवन का अहम पद साबित हुआ. इस पद पर कार्य करते हुए उन्हें संपूर्ण भारत में अपनी पहचान मिली. वे भारतीय सेना के 27वें प्रमुख बने. उन्होंने इस पद की कमान 1 जनवरी 2017 को संभाली थी.

देश के पहले सीडीएस (Chief of Defence Staff)

बिपिन रावत ने सेना के प्रमुख पद से 31 दिसंबर 2019 को भारतीय सेना के प्रमुख पद से इस्तीफा दिया था. देश की सुरक्षा को लेकर उनकी कर्मठता और समझ को देखते हुए केंद्र सरकार ने उन्हें देश का पहला CDS (चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ) अधिकारी की कमान 1 जनवरी 2020 को सौंपी गई.

गौरतलब है कि यह पद विशेष रूप से बिपिन रावत की क्षमता को देखते हुए इजाद किया गया था. इनका प्रमुख कार्य थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों के बीच बेहतर तालमेल को क्रियान्वित करके कार्य करना था.

वक्ता नहीं मगर अच्छे लेखक थे

बिपिन रावत बहुमुखी प्रतिभावान व्यक्तित्व के स्वामी थे. दबंग, साहसी, शूरवीर, खिलाड़ी, जमीन से जुड़े एवं बहुत अच्छे लेखक भी थे. एक बार उन्होंने भी स्वीकारा था कि वे बहुत अच्छे वक्ता तो नहीं मगर उन्हें लेखन का विशेष शौक स्कूली दिनों से रहा है. अवसर मिलता तो कुछ पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख भी लिखते थे. अपने लेखों में वे राजनीति पर भी कटाक्ष करने से नहीं चूकते थे. लेखों के माध्यम से ही वे लोगों तक अपनी बात पहुंचाते थे.