एक मुस्लिम संत जो बना मिसाल: गोवध रोकना जीवन का लक्ष्य, गो कथा सुनाते हैं मोहम्‍मद फैज खान
मोहम्मद फैज खान (Photo Credit- File Photo)

मैं न हिंदू न मुसलमान मुझे जीने दो,

दोस्ती है मेरा इमान मुझे जीने दो,

गजल की ये पंक्तियां जिसने भी लिखी हो, लेकिन इन पंक्तियों से जो तस्वीर उभरती है, वह युवा गौ-पालन और नदी संरक्षण जैसे आंदोलन से जुड़े मो फैज खान सरीखी ही लगती है. अपनी हिंदुस्तानी संस्कृति और संस्कार से प्रभावित फैज खान ने काफी छोटी उम्र में हजारों किमी की लंबी पदयात्रा की, लक्ष्य था हिंदुस्तानियों को नदी, गाय और भारतीय संस्कृति के संरक्षण का संदेश देना. इस यात्रा में वह निकले तो अकेले थे मगर आगे बढ़ते गये कारवां जुड़ता गया...

गौ-हत्या विरोधी पहला आंदोलन कब शुरु हुआ, कह पाना मुश्किल है. लेकिन 16 सितंबर 1526 को भारत में मुगलवंश की नींव रखने वाले कट्टरपंथी मुगल शासक बाबर ने हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए सदियों से चली आ रही गो-हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध का फरमान जारी किया. बाबर का यह फरमान दर्शाता है कि कुरान शरीफ में गो-हत्या का प्रावधान नहीं है, क्योंकि इससे अगर मुसलमानों की धार्मिक भावना का अहित होता तो बाबर गो-हत्या पर प्रतिबंध लगाने का फरमान जारी नहीं करता.

यही वजह है कि बाबर के बाद हुमायु (Humayun) और अकबर (Akbar) ने भी गोवध पर प्रतिबंध का फरमान जारी रखा. आजादी के बाद कई धार्मिक एवं स्वयंसेवी संस्थाएं गो-रक्षा एवं गो-पालनों से संबद्ध आंदोलनों में सक्रिय रही हैं. इसी संदर्भ में छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की राजधानी रायपुर से भी एक चिंगारी उठी और दिल्ली के जंतर मंतर से होते हुए पूरे देश में अपना असर छोड़ गयी.

गोवध विरोधी इस आंदोलन के कर्णधार हैं रायपुर के युवा मोहम्मद फैज खान. (Muhammad Faiz Khan) जंतर मंतर पर गो-हत्या के विरोध में 22 दिनों तक आमरण अनशन कर सुर्खियों में आये फैज का जन्म 10 जुलाई 1980 को छत्तीसगढ़ के रायपुर के एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता अध्यापक थे. फैज जब 12 वर्ष के थे, तभी पहले पिता और बाद में मां की मृत्यु हो गयी. नानी और दो बड़े भाइयों की छत्रसाया में फैज की परवरिश हुई.

मुस्लिम परिवार के फैज गो-हत्या आंदोलन से जुड़ने के संदर्भ में बताते हैं, -मेरी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर में हुई है, जहां भारतीय संस्कृति और संस्कार का पाठ पढ़ते हुए मैंने जाना कि भारतीय होने के क्या मायने हैं. यहां शिक्षा के साथ-साथ मुझे गाय का भारतीय संस्कृति और संस्कार के महत्व और उसकी उपयोगिता की विस्तृत जानकारी मिली. गाय और नदियों के महत्व को समझने के बाद मुझे लगा कि गो-हत्या पर रोक और नदियों के संरक्षण से पर्यावरण संबंधी समस्याओं से पार पाया जा सकता है.

मगर हम गाय की तभी तक सेवा करते हैं, जब तक वह दूध देती है. स्वार्थ्य पूरा होने के बाद उसे कत्लखाने भेज दिया जाता है. यह हमारी त्रासदी है कि जिस देश में गाय को माता की तरह पूजा जाता है, वह विश्व का सबसे बड़ा गोमांस निर्यातक देश है. गाय की दुर्दशा से द्रवित होकर ही मैंने विश्वविद्यालय की लेक्चरर की नौकरी छोड़ी, इस संकल्प के साथ कि जीवनपर्यंत गोवध के विरोध स्वरूप जन आंदोलन करूंगा.

एक मुस्लिम होने के नाते फैज के इस आंदोलन पर किसी फतवे या विरोध का सामना तो उन्हें नहीं करना पड़ा?, फैज कहते हैं, -फतवा तो नहीं मगर विरोध दोनों तरफ से हुआ. लेकिन समर्थन देने वालों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि विरोध करने वालों को मैंने तवज्जो ही नहीं दिया. वह आगे बताते हैं, उन्हीं दिनों मैंने गिरीश पंकज जी की पुस्तक ‘गाय की आत्मकथा’ पढ़ी. कहानी का मुख्य नायक एक मुस्लिम युवक था, जो किसी विरोध या विवादों की परवाह किये बिना ताउम्र गोरक्षा आंदोलन से जुड़ा रहा.

इसके साथ ही गोरक्षा अभियान से जुड़े मुस्लिम गोरक्षा समिति के प्रदेश अध्यक्ष सैयद मुजफ्फर अली से भी काफी प्रेरित रहा हूं. फैज बताते हैं कि गोहत्या रोकने की जिम्मेदारी समाज के हर व्यक्ति की है. गाय का दूध, दही, घी और उसके गोबर से बने उपले और खाद तथा मूत्र से बनी दवाइयों का लाभ हिंदू मुसलमान दोनों ही उठाते हैं. वेद एवं तमाम शास्त्रों में गाय को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदायिनी कहा गया है.

इस आंदोलन को जन जन तक पहुंचाने के मकसद से मैं देश भर के कई गौशालाओं में भी गया. गौशाला से जुड़े लोगों गौरक्षा के आर्थिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक पहलुओं और लाभ के बारे में बताने की कोशिश की. फैज के आंदोलनों पर सामाजिक, धार्मिक और सरकारी संगठनों की कैसी प्रतिक्रिया रही? उन्होंने बताया, दिल्ली में 22 दिन तक चले आमरण अनशन के वक्त कुछ सरकारी डॉक्टर आते थे, मगर उन्हें हमारे स्वास्थ्य से ज्यादा इस बात की चिंता रहती थी कि कहीं कोई रात में चोरी-छिपे कुछ खा पी तो नहीं रहा है.

यह भी पढ़ें: हरियाणा में महिला बार डांसर की ताबड़तोड़ गोलियां मारकर हत्या, इलाके में मचा हड़कंप

लेकिन जनता का भरपूर साथ मिला. कोलकाता से लेकर हैदराबाद तक लाखों लोगों का आशीर्वाद हमें मिला. हां भारतीय जनता पार्टी का भी खूब समर्थन मिला. गाय के प्रति निष्क्रियता पर फैज बताते हैं, हम बहुत ज्यादा व्यवसायिक होते जा रहे हैं. लंबे समय से हम जर्सी गायों का आयात कर रहे हैं. जर्सी गाय दूध जरूर ज्यादा देती हैं, लेकिन तमाम रिपोर्ट के बाद उनके दूध, घी इत्यादि में कैंसर के लक्षण मिले हैं.

हमें जर्सी गायों पर प्रतिबंध लगाने के साथ भारतीय गायों की उपयोगिता बढ़ानी होगी.

फैज जब लंबी यात्रा पर निकलते हैं तो जगह-जगह चौपाल लगाकर गोसेवा का संदेश देते हैं साथ ही हर बड़ी नदी का जल एकत्र करते हुए चलते हैं. बाद में उसे हिंद महासागर में विसर्जित कर देते हैं.