PM Narendra Modi Congratulates DRDO Scientists: हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल के सफल परीक्षण पर पीएम मोदी ने दी वैज्ञानिकों को बधाई
पीएम मोदी (Photo Credits: PIB)

नई दिल्ली: रक्षा क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों ने आज एक बड़ी कामयाबी हासिल की है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation) ने आज स्वदेशी रूप से विकसित स्क्रैमजेट प्रोपल्शन सिस्टम का प्रयोग करते हुए हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने इसकी जानकारी साझा की. राजनाथ सिंह ने बताया कि इस सफलता के बाद अब अगले चरण की प्रगति शुरू हो गई है.

रक्षा क्षेत्र में भारत की सफलता पर पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने वैज्ञानिकों को बधाई दी. पीएम मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा, " आज हाइपरसोनिक टेस्ट डिमॉन्स्ट्रेशन व्हीकल (Hypersonic Test Demonstration Vehicle) की सफल उड़ान के लिए DRDO को शुभकामनाएं. हमारे वैज्ञानिकों द्वारा विकसित स्क्रैमजेट इंजन ने उड़ान को ध्वनि की गति से 6 गुना गति प्राप्त करने में मदद की! आज बहुत कम देशों के पास ऐसी क्षमता है. यह भी पढ़ें | रक्षा क्षेत्र में भारत की बड़ी कामयाबी, DRDO ने किया Hypersonic व्हीकल का सफल परीक्षण. 

पीएम मोदी का ट्वीट:

इससे पहले रक्षा मंत्री ने डीआरडीओ और इसके वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि संस्थान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में जुटा है. रक्षा मंत्री ने अपने ट्वीट में कहा, 'डीआरडीओ ने आज स्वदेशी रूप से विकसित स्क्रैमजेट प्रोपल्शन सिस्टम का उपयोग कर हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है. इस सफलता के साथ, सभी महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां अब अगले चरण की प्रगति के लिए स्थापित हो गई हैं.''

उन्होंने आगे लिखा, ''मैं डीआरडीओ को इस महान उपलब्धि के लिए बधाई देता हूं जो पीएम मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने की दिशा में है. मैंने परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों से बात की और उन्हें इस महान उपलब्धि पर बधाई दी. भारत को उन पर गर्व है.''

बता दें कि डीआरडीओ ने सफलतापूर्वक ने एचएसटीडीवी यानी हाइपर टेक्नॉलिटी डेमॉन्सट्रेटर व्हीकल का परीक्षण किया है. इस परीक्षण के साथ ही भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा ऐसा देश बन गया जिसके पास यह तकनीक है. डीआरडीओ ने यह परीक्षण ओडिशा तट के पास डॉ. अब्दुल कलाम द्वीप से किया.