नंदुरबार: कोरोना संकट (Corona Crisis) के बीच जहां स्वास्थ्य कर्मी (Health Workers) अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की सेवा में लगातार जुटे हुए हैं तो वहीं संकट की इस घड़ी में मानवता की मिसाल पेश करने वाली कई घटनाएं भी सामने आई हैं. एक ऐसी ही कहानी महाराष्ट्र (Maharashtra) के नंदुरबार (Nandurbar) से सामने आई है, जहां रेलू वासवे (Relu Vasave) नाम की एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (Anganwadi Worker) अपने फर्ज को निभाने के लिए रोजाना 18 किलोमीटर तक नाव चलाकर 6 साल से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं की मदद के लिए आंतरिक गांवों में जाती हैं. उनका कहना है कि रोजाना इतनी दूर जाना कठिन है, लेकिन यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार मिले और वे स्वस्थ रहें.
बता दें कि रेलू वासवे दो बच्चों की मां हैं और वे रोजाना 18 किलोमीटर तक नाव चलाकर 6 साल तक के बच्चों और आंतरिक गांवों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं के लिए जाती हैं, ताकि आदिवासी बच्चों और गर्भवती महिलाओं की मदद करने के साथ ही उन तक अपनी सेवाएं पहुंचा सकें. यह भी पढ़ें: अनोखी मिसाल! बिहार के एक शख्स ने अपने दो हाथियों के नाम लिखी पूरी जायदाद, बोले- ये इंसानों से ज्यादा वफादार
देखें ट्वीट-
Maharashtra: Relu Vasave, an Anganwadi worker from Nandurbar rows 18 km daily to attend to children under 6 yrs of age & expecting mothers in interior villages.
She says, "Rowing daily is tough but it's important that babies & expecting mothers eat nutritious food & be healthy" pic.twitter.com/Y7ObYdVfSE
— ANI (@ANI) November 23, 2020
गौरतलब है कि आंतरिक गांवों में बच्चों और गर्भवती महिलाओं तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग न होने के कारण रेलू वासवे नाव से इतना लंबा सफर रोजाना तय करती हैं. रेलू का कहना है कि आमतौर पर आदिवासी महिलाएं, गर्भवती स्त्रियां और बच्चे कोरोना संकट से पहले खुद हमारे केंद्र पर आते थे, लेकिन कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप के कारण लोगों ने आना बंद कर दिया. ऐसे में हमनें खुद बच्चों और महिलाओं तक भोजन पहुंचाने का फैसला किया.













QuickLY

