HC On Plastic Ban: शादियों में प्लास्टिक की जगह कांच की बोतलों का करें इस्तेमाल, केरल हाईकोर्ट का सख्त निर्देश

केरल हाईकोर्ट ने राज्य में शादी समारोहों में प्लास्टिक की बोतलों के बढ़ते उपयोग पर चिंता जताई है और इस पर प्रभावी रोक लगाने में सरकार की उदासीनता पर सवाल उठाए हैं. न्यायमूर्ति बेचू कूरियन थॉमस और न्यायमूर्ति पी. गोपीनाथ की खंडपीठ राज्य में कचरा प्रबंधन से संबंधित स्वत: संज्ञान (सुओ मोटो) मामले की सुनवाई कर रही थी.

प्लास्टिक पर रोक और प्रभावी क्रियान्वयन की मांग

अदालत ने सरकार द्वारा हिल स्टेशनों में प्लास्टिक पर लगाए गए प्रतिबंध की समीक्षा की और समग्र कचरा निस्तारण व्यवस्था पर चिंता व्यक्त की. अदालत ने इससे पहले पर्यटन स्थलों में एकल-उपयोग (सिंगल यूज़) प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता बताई थी और तमिलनाडु में मद्रास हाईकोर्ट द्वारा लागू किए गए सफल प्रतिबंध का हवाला दिया था.

स्थानीय स्वशासन विभाग (LSGD) की विशेष सचिव अनुपमा टी.वी. आईएएस ने अदालत के समक्ष कचरा निस्तारण व्यवस्था पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की. इस पर न्यायमूर्ति गोपीनाथ ने छोटे प्लास्टिक पानी की बोतलों पर लगाए गए प्रतिबंध की प्रभावशीलता पर सवाल उठाते हुए कहा, "छोटी बोतलों पर पहले से ही प्रतिबंध है, लेकिन अब भी हर समारोह में इनका उपयोग होता है. इस प्रतिबंध को प्रभावी रूप से लागू कैसे किया जाए?"

शादी समारोहों में छोटे प्लास्टिक की बोतलों के उपयोग पर सख्ती

अदालत ने विशेष रूप से शादी समारोहों में छोटे प्लास्टिक पानी की बोतलों के अत्यधिक उपयोग पर कड़ी टिप्पणी की और इसे टालने की सलाह दी. जवाब में अनुपमा ने बताया कि 100 से अधिक लोगों की सभा के लिए स्थानीय निकाय से लाइसेंस लेना अनिवार्य है और 500 मिलीलीटर से कम क्षमता वाली प्लास्टिक पानी की बोतलों पर प्रतिबंध पहले से लागू है.

हालांकि, अदालत को यह भी बताया गया कि राज्यव्यापी प्रवर्तन समीक्षा में 100 से अधिक उल्लंघन पाए गए, जिसके चलते सरकार एक ऑनलाइन रिपोर्टिंग प्रणाली शुरू करने पर विचार कर रही है. इस प्रणाली के तहत नागरिक प्लास्टिक प्रतिबंध के उल्लंघन की तस्वीरें अपलोड कर सकेंगे, जिससे दोषियों पर जुर्माना लगाया जाएगा. इसके अलावा, राज्य सरकार जिला स्तर पर 'एनफोर्समेंट स्क्वॉड' की संख्या बढ़ाने की योजना बना रही है.

कांच की बोतलों को विकल्प बनाने की सलाह

न्यायमूर्ति बेचू ने सुझाव दिया कि छोटे प्लास्टिक की बोतलों के स्थान पर कांच की बोतलों का उपयोग किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "ये छोटी बोतलें पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही हैं, जबकि कांच की बोतलों को एक प्रभावी विकल्प के रूप में अपनाया जा सकता है."

रेलवे में प्लास्टिक कचरे के मुद्दे पर भी चिंता

अदालत ने वंदे भारत ट्रेनों द्वारा उत्पन्न प्लास्टिक कचरे पर भी सवाल उठाए, खासतौर पर रेलवे ट्रैक पर फेंकी जाने वाली प्लास्टिक पानी की बोतलों को लेकर. अदालत ने रेलवे से उनके कचरा निस्तारण तंत्र पर जवाब मांगा और स्थानीय प्रशासन को निर्देश दिया कि वे रेलवे को नोटिस जारी कर ट्रैक से कचरा हटाने को कहें. न्यायमूर्ति बेचू ने कहा, "रेलवे को अपने कचरे का निस्तारण सुनिश्चित करना चाहिए. वे इसे ट्रैक पर नहीं छोड़ सकते. एक बड़े कचरा उत्पादक के रूप में वे जनता और कानूनी व्यवस्था के प्रति जवाबदेह हैं."

सार्वजनिक स्वच्छता सुविधाओं की कमी पर भी चिंता

हाईकोर्ट ने केरल में सार्वजनिक शौचालयों की कमी पर भी चिंता जताई. अदालत ने ऑस्ट्रेलिया में उपयोग किए जाने वाले सीमित जल खपत वाले स्टेनलेस स्टील के रोडसाइड यूरिनल्स का उदाहरण देते हुए सुझाव दिया कि केरल में भी इस तरह के छोटे, स्वच्छ और आधुनिक यूरिनल्स स्थापित किए जाएं. अदालत ने यह भी कहा कि ऐसी सुविधाओं की उपलब्धता महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए आवश्यक है ताकि स्वच्छता और उचित कचरा निस्तारण सुनिश्चित किया जा सके.

अगली सुनवाई 28 मार्च को

अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 28 मार्च की तिथि निर्धारित की है और सरकार व रेलवे से उठाए गए मुद्दों पर जवाब देने का निर्देश दिया है. सुनवाई के दौरान स्थानीय स्वशासन विभाग की विशेष सचिव अनुपमा टी.वी. आईएएस स्वयं अदालत में उपस्थित थीं.

केरल हाईकोर्ट के इन कड़े निर्देशों से यह साफ हो गया है कि राज्य में प्लास्टिक प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने की जरूरत है, खासकर शादी समारोहों और सार्वजनिक स्थलों पर. यह निर्णय पर्यावरण को बचाने और कचरा प्रबंधन को प्रभावी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है.