नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लेकर इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) सुप्रीम पहुंच गया है. CAA अधिसूचना को लागू करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. IUML ने अधिसूचना के कार्यान्वयन पर रोक की मांग की है. केंद्र सरकार ने 11 मार्च को पूरे देश में नागरिकता (संशोधन)अधिनियम, 2019 (सीएए) लागू कर दिया है. जिस के बाद केरल के एक राजनीतिक दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने सीएए पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून धर्म के आधार पर मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है.
आईयूएमएल ने कहा कि "सीएए असंवैधानिक, मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण" है. IUML के मुताबिक- पहले सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने यह कहते हुए रोक का विरोध किया था कि कोई तत्काल कार्यान्वयन नहीं होगा क्योंकि नियम अधिसूचित नहीं है. CAA Rules: नागरिकता लेने के लिए क्या हैं नियम? मुस्लिमों को इस कानून से क्यों रखा गया है बाहर; पढ़े डिटेल्स.
कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का कहना है कि CAA धर्म के आधार पर मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है. यह तर्क दिया गया है कि ये कानून अनुच्छेद 14 के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है. 18 दिसंबर, 2019 को सर्वोच्च अदालत ने सीएए को चुनौती देने वाली तमाम याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. उस समय भी IUML ने कानून पर रोक लगाने के लिए दबाव डाला था.
हालांकि केंद्र सरकार ने तब कोर्ट से कहा था कि क्योंकि कानून अभी नहीं बने हैं, इसलिए सीएए लागू नहीं किया जाएगा. हालांकि सोमवार को नियमों को लागू किए जाने के बाद IUML ने अब कानून पर रोक लगाने की मांग करते हुए अदालत का रुख किया है.
सरकार ने शुरू किया पोर्टल
गृह मंत्रालय ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के पात्र लोगों के लिए मंगलवार को एक पोर्टल ‘लॉन्च’ किया. सीएए-2019 के तहत पात्र व्यक्ति इस पोर्टल पर नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं. मोबाइल 'ऐप' के माध्यम से आवेदन की सुविधा के लिए शीघ्र ही एक मोबाइल ऐप 'सीएए-2019' भी जारी किया जाएगा.
यह कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों- हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान करने की अनुमति देता है.