नयी दिल्ली, 19 सितंबर: लोकसभा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के इतिहास को देखें तो 1970 के दशक तक इनका प्रतिनिधित्व करीब पांच प्रतिशत था और 2009 में जाकर यह आंकड़ा दहाई संख्या में पहुंचा. राज्यसभा में महिलाओं की संख्या लोकसभा से थोड़ी कम रही है और 1951 से अब तक उच्च सदन में महिला सदस्यों की संख्या कुल सदस्यों की 13 प्रतिशत से अधिक नहीं हो पाई है.
लोकसभा में मंगलवार को ‘संविधान (128वां संशोधन) विधेयक, 2023’ पेश किया गया. आखिर क्यों लाया गया महिला आरक्षण बिल? जानें इसके बारे में सबकुछ.
यह संसद के विशेष सत्र में नये संसद भवन में पेश किया जाने वाला पहला विधेयक है. सरकार ने कहा कि महिलाओं के आरक्षण से संबंधित इस संविधान संशोधन विधेयक का उद्देश्य राष्ट्र और राज्य स्तर पर नीति बनाने में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना है.
लोकसभा में निर्वाचित महिला सदस्यों का सर्वाधिक अनुपात 2019 के चुनाव के बाद रहा जो कुल सदस्यों का करीब 15 प्रतिशत था, वहीं राज्यसभा में महिलाओं की सर्वाधिक भागीदारी 2014 में 12.7 प्रतिशत थी.
लोकसभा में 1951 में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 5 प्रतिशत था जो 1957 में भी वही रहा. 1962 और 1967 में यह आंकड़ा बढ़कर 6 प्रतिशत हो गया और 1971 में 5 प्रतिशत, 1977 में 4 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दर्ज किया गया. 1980 में महिला सदस्यों की संख्या 5 प्रतिशत, 1984 में 8 प्रतिशत, 1989 में 6 प्रतिशत, 1991 में 7 प्रतिशत, 1996 में 7 प्रतिशत, 1998 में 8 प्रतिशत, 1999 में 9 प्रतिशत, 2004 में 8 प्रतिशत, 2009 में 11 प्रतिशत और 2014 में 12 प्रतिशत दर्ज की गयी.
वहीं राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का औसत प्रतिनिधित्व ज्यादातर 10 प्रतिशत से कम रहा है. ‘ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन’ (ओआरएफ) के दिसंबर 2022 में किये गये एक विश्लेषण के अनुसार मौजूदा 17वीं लोकसभा में सर्वाधिक महिला सदस्य उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से हैं.
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