Maharashtra GBS Case: महाराष्ट्र में गिलियन-बर्रे सिंड्रोम के मामले बढ़ने से मचा हड़कंप, बीमारी से राज्य में पहली मौत; पुणे में संक्रमितों की संख्या 100 के पार पहुंची
(Photo Credits Pixabay)

Maharashtra GBS Case:  महाराष्ट्र में एक बीमारी जीबीएस ने लोगों को डरा दिया है। पहली संदिग्ध मौत की बात राज्य स्वास्थ्य विभाग ने बताई है. विभाग के मुताबिक गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) से जुड़ी पहली संदिग्ध मौत सोलापुर से रिपोर्ट हुई है. आधिकारिक प्रेस नोट जारी कर विभाग ने इसकी जानकारी दी है. जिसके मुताबिक प्रदेश में जीबीएस के 101 बीमारों में 68 पुरुष और 33 महिलाएं हैं. 19 बच्चे हैं, जिनकी उम्र 9 साल से कम है. 50 से लेकर 83 साल की उम्र के 23 मरीज हैं. 16 मरीजों को वेंटिलेटर पर रखा गया है.

पुणे में GBS  के मामले बढ़े

विभाग के अनुसार 81 मरीज पुणे नगर निगम से, 14 पिंपरी चिंचवाड़ नगर निगम से और 6 अन्य जिलों के हैं. वहीं सोलापुर जिले से एक संदिग्ध की मौत की भी सूचना है. यह भी पढ़े: HMPV Virus: देश में एचएमपीवी का एक और मामला आया सामने, अब पुडुचेरी में 5 साल की बच्ची पाई गई संक्रमित

डॉक्टरों ने पैनिक से बचने की सलाह दी

दरअसल, गुइलेन बैरे सिंड्रोम एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जिसका इलाज संभव है. विभाग ने टेस्टिंग बढ़ा दी है और किसी भी तरह के पैनिक से बचने की सलाह दी है.  टेस्ट के लिए मरीजों से लिए गए कुछ जैविक नमूनों में कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया का पता चला है. सी जेजुनी सबसे गंभीर संक्रमण का भी जिम्मेदार है.

पुणे से सबसे ज्यादा मामले सामने आने के बाद राज्य स्तरीय त्वरित प्रतिक्रिया दल ने तत्काल प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया. पुणे नगर निगम और ग्रामीण जिला अधिकारियों को निगरानी गतिविधियों को बढ़ाने का निर्देश दिया गया है.  मरीजों के मल के 7 नमूने राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी), पुणे को भेजे गए हैं। कुल 23 रक्त नमूनों की जांच की गई है.

जीबीएस यह एक दुर्लभ बीमारी!

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम या जीबीएस यह एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर की इम्यूनिटी गलती से अपने ही पेरिफेरल नसों पर हमला बोल देती है. इससे मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं.  हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं, पैरालाइसिस भी हो सकता है.

इलाज से मरीज हो सकता है ठीक

यह आमतौर पर शुरुआती इलाज से ही इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है और 2-3 हफ्ते के अंदर रिकवरी भी संभव है.  ज्यादातर मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं, जबकि कुछ मरीजों में बाद में भी कमजोरी की शिकायत बनी रहती है.