मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में चिकित्सा पेशेवरों को याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न से बचे लोगों पर टू-फिंगर परीक्षण पर रोक लगा दी है और कहा है कि जो डॉक्टर अभी भी ऐसे परीक्षण कर रहे हैं उन्हें "कदाचार का दोषी" माना जाएगा.
न्यायमूर्ति एसएस सुंदर और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की पीठ ने यह टिप्पणी एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए की, जिसे स्थानीय अदालत ने अपनी नाबालिग बेटी के साथ वर्षों तक बार-बार बलात्कार और शारीरिक उत्पीड़न करने के लिए दोषी ठहराया था और मौत की सजा सुनाई थी.
Madras High Court commutes death penalty of father who raped daughter; orders doctors not to perform ‘two-finger test’
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— Bar & Bench (@barandbench) November 24, 2023
अदालत ने दोषी पिता की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. कोर्ट ने उन डॉक्टरों के आचरण की भी आलोचना की जिन्होंने मामले में पीड़िता की चिकित्सकीय जांच की थी. न्यायालय ने सभी चिकित्सा चिकित्सकों को याद दिलाया कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि चिकित्सा प्रक्रियाओं को किसी भी तरह से क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार नहीं किया जाना चाहिए.
अदालत ने यह कहते हुए मौत की सज़ा को उम्रकैद में बदल दिया कि मामला बर्बर था, लेकिन यह "दुर्लभ से दुर्लभतम" की श्रेणी में नहीं आता था, जिसके लिए दोषियों को मौत की सज़ा दी जानी चाहिए.