नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें राज्य सरकार को प्रत्येक गांव में आईसीयू सुविधाओं के साथ दो एम्बुलेंस उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था. इसके साथ ही देश की शीर्ष कोर्ट ने सभी राज्यों के हाईकोर्ट को ऐसे आदेश पारित नहीं करने के लिए कहा है जिन्हें लागू करना असंभव है. COVID-19: दालत ने यूपी सरकार से पूछा, मरीजों को दवा और भोजन क्यों नहीं उपलब्ध कराया जा रहा
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें कहा गया था कि कोविड-19 महामारी के बीच उत्तर प्रदेश के गांवों और छोटे शहरों में समूची स्वास्थ्य प्रणाली ‘राम भरोसे’ है. जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस बी आर गवई की अवकाशकालीन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि हाईकोर्ट के 17 मई के निर्देशों को निर्देशों के रूप में नहीं माना जाएगा और इन्हें उत्तर प्रदेश सरकार को सलाह के रूप में माना जाएगा. सर्वोच्च कोर्ट त ने कहा कि हाईकोर्ट को ऐसे निर्देश जारी करने से बचना चाहिए जिन्हें क्रियान्वित नहीं किया जा सकता.
उल्लेखनीय है कि मेरठ के जिला अस्पताल से एक मरीज के लापता होने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि यदि मेरठ जैसे शहर के मेडिकल कॉलेज में इलाज का यह हाल है तो छोटे शहरों और गांवों के संबंध में राज्य की संपूर्ण चिकित्सा व्यवस्था राम भरोसे ही कही जा सकती है. जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजित कुमार की बेंच ने राज्य में कोरोना वायरस के प्रसार को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की थी. कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक, 22 अप्रैल को शाम 7-8 बजे 64 वर्षीय मरीज संतोष कुमार शौचालय गया था जहां वह बेहोश होकर गिर गया. जूनियर डॉक्टर तुलिका उस समय रात्रि ड्यूटी पर थीं.
A bench of the Apex Court, headed by Justice Vineet Saran and also comprising Justice B R Gavai, said all High Courts must ponder over the practicality of their order getting implemented and "not pass orders which are impossible to implement."
— ANI (@ANI) May 21, 2021
उन्होंने बताया कि संतोष कुमार को बेहोशी के हालत में स्ट्रेचर पर लाया गया और उसे होश में लाने का प्रयास किया गया, लेकिन उसकी मृत्यु हो गई. रिपोर्ट के मुताबिक, टीम के प्रभारी डाक्टर अंशु की रात्रि की ड्यूटी थी, लेकिन वह उपस्थित नहीं थे. सुबह डॉक्टर तनिष्क उत्कर्ष ने शव को उस स्थान से हटवाया लेकिन व्यक्ति की शिनाख्त के सभी प्रयास व्यर्थ रहे. वह आइसोलेशन वार्ड में उस मरीज की फाइल नहीं ढूंढ सके. इस तरह से संतोष की लाश लावारिस मान ली गई. इसलिए शव को पैक कर उसे निस्तारित कर दिया गया.
इस मामले में कोर्ट ने कहा, यदि डॉक्टरों और पैरा मेडिकल कर्मचारी इस तरह का रवैया अपनाते हैं और ड्यूटी करने में घोर लापरवाही दिखाते हैं तो यह गंभीर दुराचार का मामला है क्योंकि यह भोले भाले लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ जैसा है। राज्य सरकार को इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है.
पांच जिलों के जिलाधिकारियों द्वारा पेश की गई रिपोर्ट पर कोर्ट ने तब कहा था, हमें कहने में संकोच नहीं है कि शहरी इलाकों में स्वास्थ्य ढांचा बिल्कुल अपर्याप्त है और गांवों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में जीवन रक्षक उपकरणों की एक तरह से कमी है. कोर्ट ने ग्रामीण आबादी की जांच बढ़ाने और उसमें सुधार लाने का राज्य सरकार को निर्देश दिया और साथ ही पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने को कहा.