रांची: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि कोई पत्नी अपने पति के धर्म, धार्मिक मान्यताओं और देवी-देवताओं का अपमान करती है, तो इसे मानसिक क्रूरता माना जा सकता है. इस मामले में जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस संजय कुमार जयसवाल की डिविजन बेंच ने धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण, महाभारत और मनुस्मृति का संदर्भ देते हुए यह निर्णय सुनाया. उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में पत्नी को "सहधर्मिणी" कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वह पति के साथ धर्म का पालन करने वाली समान अधिकार की भागीदार है. यह धर्म को निभाने में उसकी भूमिका को रेखांकित करता है, जिसमें धार्मिक कृत्यों में उसकी उपस्थिति महत्वपूर्ण मानी जाती है.
मामला क्या था?
मामला एक पति द्वारा दायर तलाक की याचिका का था, जिसमें पति ने आरोप लगाया कि उनकी पत्नी, जो पहले हिंदू धर्म में थीं, बाद में ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गईं. पति का कहना था कि उनकी पत्नी ने हिंदू धर्म का अपमान किया, उसे ढोंग कहा और उसके धार्मिक कृत्यों में हिस्सा लेने से इंकार किया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी ने उन्हें झूठे मामले में फंसाने की धमकी दी. इसके जवाब में फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में तलाक की मंजूरी दी थी, जिसके खिलाफ पत्नी ने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी.
कोर्ट ने क्या कहा
हाई कोर्ट ने धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि हिंदू विवाह में पत्नी को सहधर्मिणी का दर्जा दिया गया है. इसका मतलब यह है कि वह पति के धार्मिक कर्तव्यों में समान रूप से भागीदार होती है. कोर्ट ने यह भी कहा कि पत्नी का पति के धर्म को अपमानित करना और देवी-देवताओं का मजाक बनाना, पति के मानसिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है और इसे मानसिक क्रूरता के रूप में देखा जा सकता है.
इस मामले में पति का कहना था कि वह हिंदू धर्म के प्रति आस्थावान हैं और अपने घर में सभी धार्मिक कृत्यों का पालन करते हैं. उन्होंने यह भी दावा किया कि पत्नी उनके साथ पूजा में कभी शामिल नहीं होतीं और हिंदू धर्म का मजाक बनाती हैं. वहीं, पत्नी के भाई ने भी स्वीकार किया कि पिछले दस वर्षों से वह और उनकी बहन चर्च जाते रहे हैं और ईसाई धर्म में आस्था रखते हैं. पत्नी ने खुद यह माना कि उन्होंने पिछले एक दशक से कोई भी हिंदू पूजा नहीं की है.