प्राण सिकंद का जन्म 12 फरवरी 1920 में दिल्ली में हुआ था. पिता लाला केवल कृषन सिकंद सिविल इंजीनियर थे. माँ रामेश्वरी सिकंद हाउस वाइफ थीं. प्राण फोटोग्राफर बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत से वे एक्टर बन गये. एक बार पान की दुकान पर लेखक वली मोहम्मद वली से उनका सामना हो गया. प्राण की आवाज एवं आंखों से वली मोहम्मद बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने उन्हें पंजाबी फिल्म यमला जट (1940) में मौका दिया. देखते ही देखते प्राण सिकंद लाहौर फिल्म इंडस्ट्री के नामचीन चेहरा बन गये. लेकिन तभी बटवारे के कारण 14 अगस्त 1947 में उन्हें सपरिवार मुंबई आना पड़ा. मुंबई में प्राण का कोई परिचित नहीं होने से शुरू में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. एक दिन सआदत हसन मंटो के सहयोग से प्राण को बॉम्बे टाकीज की फिल्म जिद्दी में काम मिला. कामिनी कौशल एवं देव आनंद फिल्म के मुख्य कलाकार थे. यह फिल्म भी चली और प्राण भी. देखते ही देखते प्राण फिल्म इंडस्ट्री के सबसे सेलेबल एक्टर बन गये. इस हरदिल अजीज अभिनेता की पुण्य तिथि (12 जुलाई 2013) पर प्रस्तुत है उनके जीवन के कुछ रोचक प्रसंग...
परिवार उनके एक्टर बनने के खिलाफ था!
कहते हैं कि प्राण को जब यमला जट के लिए साइन किया गया, तब उन्होंने डर कर पिता को नहीं बताया. क्योंकि पिता उन्हें अपनी तरह अच्छे पद पर देखना चाहते थे. यमला जट बनकर तैयार हुई तो प्राण का इंटरव्यू लाहौर के मुख्य अखबार में प्रकाशित हुआ. प्राण ने अपनी बहन से प्रार्थना की कि वे अखबार को कहीं छिपा दें. लेकिन जब दूसरों पिता इस बात की खबर मिली तो, उन्होंने प्राण को बहुत डांटा, लेकिन लोगों में उनके प्रति प्यार और सम्मान देखकर पिता ने उन्हें अनुमति दे दी थी.
दोस्ती निभाना जानते थे!
प्राण एवं राज कपूर गहरे मित्र थे. राज कपूर प्राण को इंडस्ट्री का सर्वश्रेष्ठ एक्टर मानते थे. मेरा नाम जोकर के फ्लॉप होने से राज काफी कर्जदार हो गये थे. कर्ज पाटने के इरादे से उन्होंने बॉबी बनाई. एक दिन प्राण को पता चला कि राज बॉबी के लिए प्राण को लेना चाहते हैं, लेकिन प्राण के योग्य पारिश्रमिक वे देने में असमर्थ थे. इसलिए संकोचवश वे प्राण को इस फिल्म के लिए प्रपोज नहीं कर पा रहे थे. तब प्राण राज कपूर के पास पहुंचे औऱ कहा कि वह मात्र एक रुपये में बॉबी करने के लिए तैयार हैं. राज उन्हें मना नहीं कर सके थे.
आठ माह का वह संघर्ष!
लाहौर में करीब 22 फिल्में करने के कारण वे नामचीन एक्टर थे, इसलिए बटवारे के बाद वह मुंबई (बंबई) आये, तो ताजमहल होटल में रुके थे, लेकिन पास में काम नहीं होने से उनके पास पैसे खत्म होने लगे, तब उन्हें परिवार के साथ छोटे होटलों एवं गेस्ट हाउस में रहना पड़ा. उनका यह संघर्ष 8 माह तक चला. अंततः सआदत हसन मंटो के सहयोग से उन्हें बॉम्बे टाकीज की जिद्दी में मौका मिला. अपने अकाट्य अभिनय से वह बहुत जल्दी फिल्म इंडस्ट्री की जरूरत बन गये.
अपने गेटअप खुद तैयार करते थे!
प्राण अपने मेकअप को लेकर बहुत गंभीर रहते थे. कहा जाता है कि उनके घर पर एक कलाकार रहता था, जो अपनी कल्पना के अनुरूप उनके लिए विभिन्न रूप चित्रित करता था, इसके बाद वह उस गेटअप को अपने मेकअप मैन की मदद से खुद पर आजमाते थे. इसके बाद उस गेटअप पर विग मेकर काम करता था. उनके निर्माता निर्देशक को इससे उनका गेटअप तैयार करवाने में बहुत आसानी होती थी. कहते हैं कि फिल्म गुमनाम, परवरिश, जंजीर,डॉन और शहीद जैसी फिल्मों में उन्हीं के द्वारा तैयार किया गेटअप लोगों ने देखा.
इसलिए फिल्मों से दूर हुए!
प्राण को समय से पहले करियर से दूरी बनानी पड़ी. जानकार बताते थे, कि अकसर प्राण को सेट पर नये कलाकारों के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता था. उन्हें नये-नये बने स्टार्स की ये हरकतें पसंद नहीं आ रही थी. 1990 के दशक तक आते-आते उन्हें कुछ शारीरिक समस्याएं परेशान करने लगी, तब सेहत का हवाला देते हुए उन्होंने खुद ही फिल्मों से दूरी बना ली थी. अंततः 12 जुलाई 2013 को इलाज के दरमियान लीलावती अस्पताल में प्राण का निधन हो गया.