वीर मराठा तानाजी मालसुरे (Tanaji Malusare) की कहानी को अजय देवगन (Ajay Devgn) अब बड़े परदे पर पेश करने जा रहे हैं अपनी फिल्म 'तानाजी: द अनसंग वारियर' Tanhaji: The Unsung Warrior) से. फिल्म अजय देवगन तानाजी मालसुरे का किरदार निभाने जा रहे हैं. जबकि उनकी पत्नी काजोल (Kajol) फिल्म में तानाजी की पत्नी सावित्रीबाई मालसुरे का किरदार निभा रही हैं. पिछले कुछ दिनों में इस फिल्म के कई पोस्टर और प्रोमो सामने आ चुके हैं. जिसने फिल्म को लेकर काफी बज्ज पैदा किया है. ऐसे में अब इस फिल्म का दमदार ट्रेलर रिलीज कर दिया गया हैं.
17वीं शताब्दी पर आधारति इस फिल्म अजय देवगन के अपोसिट सैफ अली खान (Saif Ali Khan) नजर आ रहे हैं जो फिल्म में मुग़ल सेनापति उदयभान का किरदार निभा रहे हैं. इस फिल्म ने अजय देवगन और सैफ अली खान पूरे 13 साल बाद एक साथ दोबारा दिखाई देने जा रहे हैं. फिल्म के इस ट्रेलर में भी अजय देवगन और सैफ अली खान के लड़ाई देखने को मिल रही है. फिल्म के डायरेक्टर ओम राउत ने इसकी मेकिंग में जान फूंक दी है. ये फिल्म 10 जनवरी, 2020 को रिलीज हो रही है.
कौन थे तानाजी मालसुरे
छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरगाथा से महाराष्ट्र का पूरा इतिहास भरा हुआ हैं. लेकिन महाराज शिवाजी की गौरवगाथा लिखने में उनके साथियों का भी बड़ा रोल था. ऐसा ही एक नाम था वीर तानाजी मालसुरे का. मुगलों के अधीन गए कोण्डाणा दुर्ग को दोबारा जीतने के शिवाजी के सपनों को उनके वीर सेनापति तानाजी मालसुरे ने ही पूरा किया था. दरअसल तानाजी अपने बेटे रायोबा की शादी का निमंत्रण लेकर शिवाजी के पास पहुंचे थे. तभी छत्रपति शिवाजी महाराज ने उनसे कोण्डाणा दुर्ग वापस लेने की इच्छा जाहिर की थी. जिसके बाद तानाजी ने साफ किया कि वो अपने बेटे की शादी किल्ला जीतने के बाद ही करेंगे. ऐसे में वो मुट्ठी भर मराठों की सेना लेकर मुग़ल सेनापति उदयभान और उनकी विशालकाय सेना को हराने के लिए निकल पड़ते हैं.
एक गोह के सहारे किल्ले के सबसे खतरनाक रास्ते से घुस तानाजी मुग़ल सेना पर हमला कर देते हैं. इस भयंकर लड़ाई में तानाजी की ढाल टूट जाती है जिसके बाद वो हाथ पर कपड़ा बांधकर लोहा लेते हैं. हालांकि इस लड़ाई में तानाजी वीरगति को प्राप्त हुए थे लेकिन उनकी सेना ये किला जीत लेती हैं. इस बात की जानकारी जैसे ही महाराज शिवाजी को मिलती है वो खुश होने ज्यादा निराश हो जाते हैं. इस जीत के बाद वो दबी हुई आवाज में कहते हैं ‘गढ़ तो आ गया लेकिन सिंह चला गया.’ जिसके बाद से इस किल्ले को सिंहगढ़ के नाम से जाना जाने लगा.