वेल्स, 30 अगस्त (द कन्वरसेशन) कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर इस बात को लेकर चिंतित थे कि जीवन से जुड़ी रोजमर्रा की गतिविधियों पर लगाए गए प्रतिबंधों से स्तनपान की दर में कमी आएगी। लेकिन हमारा नया अध्ययन दर्शाता है कि इस अवधि में शिशु को छह महीने तक स्तनपान कराना जारी रखने वाली माताओं की संख्या में वृद्धि हुई।
यही नहीं, कोरोना काल में शिशु को छह महीने तक केवल स्तनपान कराने की दर महामारी से पहले और बाद के मुकाबले 40 फीसदी पाई गई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) शिशु को उसके जन्म के शुरुआती छह महीने में सिर्फ मां का दूध पिलाने की सलाह देता है। लेकिन ब्रिटेन में इस अवधि तक स्तनपान कराने वाली महिलाओं की संख्या वैश्विक स्तर पर सबसे कम रही है। देश में महज 0.5 फीसदी महिलाएं शिशु के एक साल के होने तक उसे स्तनपान कराती हैं।
अमेरिका में 27 फीसदी, नॉर्वे में 35 फीसदी और मेक्सिको में 44 फीसदी माताएं शिशु को एक साल की उम्र के बाद भी स्तनपान कराती हैं।
कोविड-19 महामारी ने जब दस्तक दी थी, तब इस बात को लेकर चिंताएं थीं कि वायरस, माताओं के जरिये शिशु को संक्रमित कर सकता है।
कई अध्ययनों से सामने आया कि कोरोनाकाल में गर्भवती और हाल में मां बनी महिलाओं को शिशु को स्तनपान कराने के मामले में मार्गदर्शन देने वालों की कमी थी।
उदाहरण के तौर पर, शिशु को स्तनपान कराने की इच्छुक हर तीन में से एक महिला ने कहा कि उन्हें इसकी मुद्रा को लेकर सही मार्गदर्शन नहीं मिल सका। वहीं, हर चार में से एक महिला ने अस्पताल आधारित स्तनपान सहयोग के अभाव की बात कही। यह संभवतः स्वास्थ्य क्षेत्र पर अत्यधिक दबाव और संक्रमण का जोखिम घटाने पर जोर के कारण हुआ।
नयी माताओं के लिए मार्गदर्शन एवं सहयोग में कमी देखी गई, जिससे स्तनपान में बाधा उत्पन्न हुई। और गर्भवती महिलाओं ने चिंता और तनाव का स्तर चरम पर होने की बात भी स्वीकारी, जिसमें टीके को लेकर अनिश्चितताएं भी शामिल हैं।
हमने 2018 से 2021 के बीच वेल्स में मातृत्व सुख प्राप्त करने वाली महिलाओं पर सर्वेक्षण किया। हमने दाइयों और मरीजों से हासिल एनएचएस स्तनपान स्वास्थ्य डेटा का विश्लेषण भी किया।
हैरानी की बात यह है कि शिशु को छह महीने तक स्तनपान कराने की दर 2020 में चरम पर पाई गई, जब महामारी की रोकथाम के लिए सख्त प्रतिबंध लागू थे। यह निष्कर्ष पेशेवर और सामाजिक समर्थन तक पहुंच में कमी के कारण स्तनपान की दर में अनुमानित गिरावट की बात के विपरीत है।
हमारा अध्ययन यह भी प्रदर्शित करता है कि वेल्स में हर दस में से छह महिलाएं शिशु को पहले आहार के रूप में अपना दूध पिलाती हैं, लेकिन हर दस में से केवल तीन महिलाएं ही दस माह की आयु तक उन्हें स्तनपान कराती हैं। 80 फीसदी से अधिक महिलाएं छह महीने तक बिल्कुल भी स्तनपान नहीं कराती हैं।
यह बात हमें और स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में काम करने वाले अन्य पेशेवरों को आश्चर्यचकित करती है, क्योंकि महामारी का वैश्विक स्तर पर रोजमर्रा के जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।
हमारे अध्ययन से यह भी पता चलता है कि जब गर्भवती महिलाएं कहती हैं कि वे स्तनपान नहीं कराना चाहती हैं, तब उनके स्तनपान शुरू कराने की संभावना सबसे अधिक होती है। लगभग 30 प्रतिशत महिलाएं शिशु को बिल्कुल भी स्तनपान कराने का इरादा नहीं रखती हैं।
हालांकि, महिलाएं गर्भावस्था में कहती हैं कि वे स्तनपान कराने की इच्छुक हैं, तो इनमें से 90 प्रतिशत ऐसा करना शुरू कर देती हैं। उनके स्तनपान का इरादा न रखने वाली महिलाओं की तुलना में शिशु को छह महीने तक अपना दूध पिलाने की संभावना भी 27 गुना ज्यादा होती है।
समय का महत्व
-लेकिन ऐसा क्या है जो उन महिलाओं को लंबे समय तक स्तनपान कराने में मदद करता है, जो स्तनपान कराना चाहती हैं? हम जानते हैं कि सहायता प्रणालियों और दाइयों के प्रशिक्षण के बिना भी, अधिक महिलाएं जो स्तनपान कराना चाहती थीं, वे महामारी के दौरान लंबे समय तक स्तनपान कराने में सक्षम थीं।
इन निष्कर्षों का मतलब यह हो सकता है कि महिलाओं को स्तनपान कराने में मदद के लिए जिन चीजों की जरूरत है, उनमें बच्चे के साथ घर पर अधिक समय गुजारने का मौका मिलना, जीवनसाथी का ज्यादा से ज्यादा वक्त देना, अधिक निजता मिलना और काम के लचीले घंटे होना जरूरी है।
अगर हम स्तनपान का स्तर बढ़ाना चाहते हैं, तो हमें महामारी से मिली इस सीख पर गौर फरमाने की जरूरत है कि काम के माहौल के साथ-साथ चिकित्सा सेवाओं पर भी ध्यान देना अहम है।
स्तनपान के फायदे
-स्तनपान कराने के कई फायदे हैं, जिनमें शिशु में संक्रमण की आशंका में कमी से लेकर बौद्धिक क्षमता में वृद्धि और मोटापे व डायबिटीज से बचाव तक शामिल है।
स्तनपान कराना माताओं के लिए लाभदायक है, क्योंकि यह कैंसर और प्रसव के बाद रक्तस्त्राव के जोखिम में कमी लाने के साथ ही वजन घटाने में भी मददगार साबित होता है।
यह पर्यावरण के लिए भी अच्छा है और कुछ परिवारों के लिए किफायती भी साबित होता है। लेकिन साल की शुरुआत में येल स्कूल ऑफ मेडिसिन की ओर से किए गए एक अध्ययन में देखा गया कि खुराक बढ़ने और विटामिन सहित अन्य पोषक तत्वों के सेवन में वृद्धि होने से स्तनपान के कारण परिवारों पर लगभग 11 हजार अमेरिकी डॉलर का खर्च बढ़ सकता है। इसमें जोर देकर कहा गया है कि स्तनपान से बढ़ने वाला खर्च महिलाओं के फैसले को प्रभावित कर सकता है।
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