नयी दिल्ली, 20 दिसंबर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल की चीन के विदेश मंत्री वांग यी से बातचीत के कुछ दिन बाद भारत ने शुक्रवार को कहा कि वह दोनों पक्षों के बीच बनी सहमति को आगे बढ़ाने के लिए चीन के साथ काम करेगा।
भारत और चीन के बीच सीमा के मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधि (एसआर) डोभाल और वांग ने पांच साल के अंतराल के बाद एसआर संवाद तंत्र के तहत बुधवार को बीजिंग में व्यापक वार्ता की थी।
यह वार्ता भारत और चीन द्वारा पूर्वी लद्दाख में टकराव के दो अंतिम बिंदुओं डेमचोक और देपसांग में सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी होने के कुछ सप्ताह बाद हुई है। इस वापसी से क्षेत्र में चार साल से अधिक समय से चल रहा सीमा गतिरोध प्रभावी रूप से समाप्त हो गया है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, ‘‘दोनों पक्षों ने 2005 में हुई सहमति के तहत राजनीतिक मापदंडों और मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुसार सीमा के प्रश्न के समाधान के लिए एक निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य रूपरेखा का पता लगाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है।’’
वह अपनी साप्ताहिक प्रेस वार्ता में एसआर वार्ता के प्रश्न पर जवाब दे रहे थे।
जायसवाल ने कहा, ‘‘सीमा के प्रश्न के समाधान की रूपरेखा पर चर्चा के अलावा, विशेष प्रतिनिधियों ने इस दौर की बैठक में शांतिपूर्ण सीमा प्रबंधन के मुद्दों की व्यापक समीक्षा की।’’
एक भारतीय बयान में कहा गया है कि वार्ता में डोभाल और वांग ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, सीमा पार की नदियों और सीमा व्यापार पर डेटा साझा करने सहित सीमा पार सहयोग और आदान-प्रदान के लिए सकारात्मक दिशा-निर्देश दिए।
जायसवाल ने कहा, ‘‘इसका अर्थ यह है कि चर्चा सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ी है और इसके बाद सीमा पार आदान-प्रदान को आगे बढ़ाने के लिए जो भी आवश्यक होगा, वह किया जाएगा।’’
दोनों पक्षों के बीच पूर्ण व्यापार संबंधों की बहाली की संभावना पर जायसवाल ने कहा कि अक्टूबर से दोनों पक्षों के बीच कई बैठकें हुई हैं, जिनमें उच्चतम स्तर पर हुई बैठकें भी शामिल हैं, ‘जहां इस बात पर सहमति बनी है कि हम बारी-बारी से कार्रवाई करेंगे।’
विशेष प्रतिनिधि वार्ता तंत्र को पुनर्जीवित करने का निर्णय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच 23 अक्टूबर को कजान में हुई बैठक में लिया गया था। यह निर्णय भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में डेमचोक और देपसांग में सैनिकों की वापसी के लिए समझौते पर हस्ताक्षर होने के दो दिन बाद लिया गया था।
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