देश की खबरें | पत्नी की हत्या में निचली अदालत से दोषी करार दिये गए पति को उच्च न्यायालय ने बरी किया

लखनऊ, 13 सितम्बर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने सात साल से अधिक समय तक जेल में बंद एक व्यक्ति को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष यही नहीं साबित कर पाया कि जिस शव को उसकी पत्नी बताकर उसे दोषी करार दे दिया गया, वह शव उसकी पत्नी का था भी या नहीं।

न्यायमूर्ति एआर मसूदी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने हफीज खान की अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। खान पर अपनी ही पत्नी सायरा बानो की हत्या का मामला दर्ज किया गया था।

हफीज की तत्काल रिहाई का निर्देश देते हुए पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को हिरासत में बिताई गई अवधि के लिए उसे एक लाख रुपये का मुआवजा देने को कहा है। हफीज 15 जनवरी, 2017 से सलाखों के पीछे है।

अपने आदेश में, पीठ ने कहा, "अपीलकर्ता पति को 15 जनवरी, 2017 को प्राथमिकी दर्ज करने के तुरंत बाद हिरासत में ले लिया गया था और वह आज तक हिरासत में है। अब जबकि यह अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि अभियोजन पक्ष पति को सजा दिलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं पेश कर सका और निचली अदालत द्वारा पांच साल पहले सुनाया गया फैसला गलत था , तो ऐसे में जेल में बितायी गयी अवधि की भरपाई तो नहीं हो सकती है, किन्तु फिर भी पति के साथ जो अन्याय हुआ उसके एवज में राज्य सरकार से उसे एक लाख रूपये छतिपूर्ति दिलाना उचित होगा। ’’

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘

... हम आदेश देते हैं कि राज्य उसके द्वारा हिरासत में बिताई गई अवधि के मुआवजे के रूप में उसे एक लाख रुपये का भुगतान करे।"

सायरा बानो ने 11 मई 2016 को हफीज खान से शादी की थी। उसकी बहन शबाना ने रिसिया थाने में 15 जनवरी 2017 को शिकायत की कि उसकी बहन को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जा रहा था और इसलिए उसे गायब कर दिया गया।

बाद में मुखबिर की सूचना पर गांव के ही केन्नू खान की कब्र से एक शव बरामद किया गया जिसे शबाना और उसकी दूसरी बहन परवीन ने तस्दीक किया कि वह शायरा बानो का शव है।

जांच के बाद, पुलिस ने 10 अप्रैल, 2027 को हफीज के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। बहराइच में अपर सत्र न्यायाधीश (पंचम) ने 27 मार्च, 2019 को उसे अपनी पत्नी सायरा बानो की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 60,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।

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