नयी दिल्ली, 11 जनवरी सभी की निगाहें उच्चतम न्यायालय पर हैं जो निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति संबंधी कानून की जांच करेगा क्योंकि चयन समिति में भारत के प्रधान न्यायाधीश को सदस्य नहीं बनाये जाने को लेकर इसकी (नये कानून की) वैधता को चुनौती दी गयी है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पदावधि) अधिनियम, दिसंबर 2023 में लागू हुआ। इसका पहली बार इस्तेमाल मार्च 2024 में ज्ञानेश कुमार और एस. एस. संधू को निर्वाचन आयुक्त के रूप में नियुक्त करने के लिए किया गया था। उन्हें अरुण गोयल के इस्तीफे और अनूप चंद्र पांडे की सेवानिवृत्ति के बाद रिक्त पदों पर नियुक्त किया गया था।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार 65 वर्ष की आयु होने के बाद 18 फरवरी को सेवानिवृत्त हो जाएंगे, इसलिए पहली बार मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति नये कानून के तहत की जाएगी।
सीईसी और ईसी की नियुक्ति से संबंधित नया कानून लागू होने से पहले, निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी। परंपरा के अनुसार, सबसे वरिष्ठ ईसी को सीईसी के पद पर पदोन्नत किया जाता था।
लेकिन इस बार प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली समिति नए निर्वाचन आयुक्त को लेकर फैसला करेगी। ज्ञानेश कुमार और संधू में से कुमार वरिष्ठ हैं।
ज्ञानेश कुमार का कार्यकाल 26 जनवरी, 2029 तक है, तब वह 65 वर्ष के हो जाएंगे।
कानून के अनुसार, कानून मंत्री की अध्यक्षता और दो केंद्रीय सचिवों की सदस्यता वाली खोज समिति पांच नामों का चयन करके चयन समिति को भेजेगी।
इसके बाद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति के समक्ष उन पांच नामों की सिफारिश करेगी। इस चयन समिति में प्रधानमंत्री, उनके द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष शामिल होंगे।
कानून की धारा 6 के अनुसार, चयन समिति को उन नामों पर भी विचार करने का अधिकार है, जिन्हें कानून मंत्री के नेतृत्व वाली समिति द्वारा सूचीबद्ध नहीं किया गया है।
सीईसी और चुनाव आयुक्तों से जुड़ा 1991 का कानून उनके वेतन और सेवा शर्तों से संबंधित था, लेकिन नियुक्ति की पद्धति से संबंधित नहीं था।
दो मार्च, 2023 के अपने फैसले में, न्यायमूर्ति केएम जोसेफ (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ ने सीईसी और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति गठित की थी। न्यायमूर्ति जोसेफ की पीठ ने कहा था कि जब तक नियुक्तियों को लेकर कानून नहीं बन जाता, तब तक समिति द्वारा तय कॉलेजियम मान्य रहेगा।
बाद में, जब सरकार मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यकाल) विधेयक लेकर आई, तो उसने सीजेआई की जगह एक केंद्रीय मंत्री को चयन समिति में शामिल कर दिया, जिसका चयन प्रधानमंत्री करेंगे।
चयन समिति की संरचना में बदलाव को चुनौती दी गई है। उच्चतम न्यायालय ने मामले को चार फरवरी के लिए सूचीबद्ध किया है।
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