नयी दिल्ली, 10 जनवरी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि वह पुराने विचारों को त्यागने और नए विचारों को अपनाने के लिए तैयार हैं, बशर्ते कि वे ‘राष्ट्र प्रथम’ की उनकी मूल विचारधारा में फिट हों।
निवेश की सुविधा देने वाले ऑनलाइन मंच ‘जेरोधा’ के सह-संस्थापक निखिल कामथ की मेजबानी में आयोजित एक पॉडकास्ट में मोदी ने कहा कि वह अपनी सफलता को इस बात में देखते हैं कि वह कैसी टीम तैयार करते हैं और वह कैसे चतुराई से चीजों को संभालती है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मौजूदा दौर में कई ऐसे युवा नेता हैं, जिनमें क्षमता है, लेकिन वह किसी का नाम नहीं लेंगे, क्योंकि ऐसा करना दूसरों के साथ अन्याय होगा।
जब कामथ ने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने अपने बाद के समय के लिए कोई योजना बनाई है, मसलन उन लोगों को प्रशिक्षित करना, जिन पर उन्हें विश्वास है और वह भी आज के लिए नहीं, बल्कि 20-30 साल बाद के लिए, तो मोदी ने कहा, ‘‘मैं उन लोगों को देख सकता हूं, जिनमें बहुत अधिक क्षमता है। जब मैं गुजरात में था, तो मैं कहता था कि मैं अगले 20 साल तक टीम के लिए तैयारी करके जाना चाहता हूं। मैं यही कर रहा हूं। मेरी सफलता इस बात में निहित है कि मैं अपनी टीम को कैसे तैयार करता हूं, जो चतुराई से चीजों को संभालने में सक्षम होगी। यही मेरे लिए मेरा बेंचमार्क है।’’
उन्होंने कहा कि राजनीति में अच्छे लोग आते रहने चाहिए और वे ‘मिशन’ लेकर आएं, ‘एंबीशन’ (महत्वाकांक्षा) लेकर नहीं।
यह पूछे जाने पर कि क्या वह किसी युवा राजनेता में ऐसी क्षमता देखते हैं, उन्होंने कहा, ‘‘बहुत लोग हैं जी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वे दिन-रात मेहनत करते हैं। मिशन मोड में काम करते हैं। मैं नाम लूंगा, तो बाकी के साथ अन्याय हो जाएगा। मेरा दायित्व बनता है मैं किसी के साथ अन्याय ना करूं। मेरे सामने कई नाम हैं, कई चेहरे हैं।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या कोई ऐसी चीज है, जिसे वह 10-20 साल पहले मानते थे, लेकिन अब नहीं, इसके जवाब में मोदी ने कहा कि वह एक ही विचारधारा में पले-बढ़े हैं और वह है ‘राष्ट्र प्रथम’।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर मेरा एक टैगलाइन है, तो वह है राष्ट्र प्रथम। यह मुझे विचारधारा के बंधनों में बांधता नहीं है, परंपराओं के बंधन में बांधता नहीं है। आगे ले जाने के लिए जो जरूरी होता है, मैं करता हूं। पुरानी चीज छोड़नी है, तो मैं छोड़ने के लिए तैयार हूं। नई चीज स्वीकार करने के लिए तैयार हूं। लेकिन मापदंड एक ही है, तराजू एक ही है और वह है राष्ट्र प्रथम। मैं तराजू नहीं बदलता हूं।’’
निकट भविष्य में विधायकों और लोकसभा सदस्यों के लिए एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कई राज्यों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण के कारण महिलाएं पहले से ही स्थानीय निकायों में मौजूद हैं, लेकिन विधानसभाओं और संसद के लिए उन्हें खुद को तैयार करने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि उनमें नेताओं वाले विशिष्ट गुण नहीं हैं और उनका ज्यादातर समय शासन पर खर्च होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘चुनावों के दौरान मुझे राजनीतिक भाषण देने पड़ते हैं। यह मेरी मजबूरी है। मुझे यह पसंद नहीं है, लेकिन फिर भी मुझे यह करना है। मेरा सारा समय चुनाव के अलावा शासन में बीतता है। और जब मैं सत्ता में नहीं था, मेरा समय पूरी तरह से संगठन पर केंद्रित था। मानव संसाधन के विकास पर...।’’
मोदी ने कहा कि उन्होंने कभी भी खुद को ‘कम्फर्ट जोन’ (आरामदायक स्थिति) तक सीमित नहीं रखा और जोखिम उठाने की उनकी क्षमता का शायद ही कभी इस्तेमाल किया गया।
उन्होंने कहा, ‘‘जोखिम लेने की मेरी क्षमता का अभी पूरी तरह उपयोग हुआ ही नहीं है...मैंने अपने विषय में कभी सोचा ही नहीं है, और जो अपने बारे में नहीं सोचता, उसके पास जोखिम लेने की क्षमता बेहिसाब होती है।’’
उन्होंने कहा कि अपने तीसरे कार्यकाल में वह और अधिक उत्साहित महसूस कर रहे हैं और उनके सपने व्यापक हो गए हैं। उन्होंने कहा कि पहले दो कार्यकालों को वह उनके द्वारा शुरु किए गए कामों की प्रगति से आंकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘अब मेरी सोच 2047 तक विकसित भारत बनाने पर टिकी है।’’
मोदी ने कहा कि ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ पर उनके जोर का कुछ लोगों ने गलत अर्थ निकाला, जो सोचते थे कि इसका मतलब कम मंत्री या सरकारी कर्मचारी हैं।
उन्होंने कहा कि यह उनकी अवधारणा कभी नहीं थी। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन्होंने कौशल विकास और मत्स्य पालन के लिए अलग-अलग मंत्रालय बनाए।
उन्होंने 40,000 से अधिक अनुपालनों को समाप्त करने और 1,500 से अधिक कानूनों को निरस्त करने को इस दिशा में उठाए गए कदमों का हवाला देते हुए कहा कि यह लंबी आधिकारिक प्रक्रियाओं में कटौती के बारे में था।
अपने जीवन के विभिन्न चरणों को छूने वाले पॉडकास्ट में, मोदी ने खुद को स्कूल में एक साधारण छात्र के रूप में वर्णित किया, जिसने केवल परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए अध्ययन किया, लेकिन विभिन्न गतिविधियों में भाग लिया और हमेशा उत्सुक रहे।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा संघर्ष विश्वविद्यालय रहा है, जिसने मुझे पढ़ाया।’’
उन्होंने कहा कि उनके पिता ने पैसे की कमी के कारण उन्हें एक सैनिक स्कूल में प्रवेश के लिए आवेदन करने की अनुमति नहीं दी। हालांकि, उन्होंने कहा कि वह कभी निराश नहीं हुए।
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