जरुरी जानकारी | आरबीआई ने रेपो दर को यथावत रखा, लेकिन रुख में बदलाव कर आगे नीतिगत दर में कटौती का संकेत दिया

मुंबई, नौ अक्टूबर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को चालू वित्त वर्ष की चौथी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में लगातार दसवीं बार नीतिगत दर रेपो को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा। हालांकि, केंद्रीय बैंक ने अपेक्षाकृत आक्रामक रुख को बदलकर ‘तटस्थ’ कर दिया।

रुख में बदलाव का मतलब है कि आरबीआई मुद्रास्फीति और आर्थिक वृद्धि पर नजर रखते हुए जरूरत के हिसाब नीतिगत दर को बढ़ा या घटा सकता है। यह एक संकेत है कि मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक में नीतिगत दर में कटौती को लेकर संभवत: कदम उठाया जा सकता है।

आरबीआई के गवर्नर शक्तिकान्त दास ने पुनर्गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सोमवार को शुरू हुई पहली बैठक में लिए गए निर्णय की जानकारी देते हुए कहा, ‘‘एमपीसी ने नीतिगत दर को यथावत रखने का निर्णय किया है। समिति के छह सदस्यों में से पांच ने नीतिगत दर को यथावत रखने के पक्ष में मतदान किया।’’

रेपो वह ब्याज दर है, जिसपर वाणिज्यिक बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। आरबीआई मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिये इसका उपयोग करता है। इस दर के यथावत रहने का मतलब है कि मकान, वाहन समेत विभिन्न कर्जों पर मासिक किस्त (ईएमआई) में बदलाव की संभावना कम है।

हालांकि, समिति ने अर्थव्यवस्था में सुस्ती के कुछ संकेत के बीच आम सहमति से उदार रुख को वापस लेने के रुख को बदलकर ‘तटस्थ’ करने का निर्णय किया। यह जून, 2019 के बाद पहला मौका है जब रुख में बदलाव किया गया है।

इससे पहले, नीतिगत दर में फरवरी, 2023 में बदलाव किया गया था। उस समय इसे 6.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत किया गया था।

दास ने कहा कि समिति ने रुख में बदलाव किया है। लेकिन उसका आर्थिक वृद्धि का समर्थन करते हुए मुद्रास्फीति को टिकाऊ आधार पर लक्ष्य के अनुरूप लाने पर पूरा ध्यान बना हुआ है।

उन्होंने कहा कि आने वाले महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति कम हो सकती है। वहीं ऐसा लगता है कि मुख्य (कोर) मुद्रास्फीति निचले स्तर से ऊपर आ रही है। मुख्य मुद्रास्फीति से खाद्य और ऊर्जा लागत को बाहर रखा जाता है।

दास ने कहा कि निजी खपत और निवेश में वृद्धि के साथ देश का आर्थिक वृद्धि परिदृश्य मजबूत बना हुआ है।

खुदरा मुद्रास्फीति लगातार दूसरे महीने सितंबर में आरबीआई के चार प्रतिशत के लक्ष्य से नीचे रही। केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि इस महीने इसमें खासकर तुलनात्मक आधार के कारण तेजी आ सकती है।

आरबीआई ने वित्त वर्ष 2024-25 (अप्रैल, 2024 से मार्च, 2025) के लिए मुद्रास्फीति के अनुमान को 4.5 प्रतिशत पर कायम रखा है। साथ ही जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि के अनुमान को भी 7.2 प्रतिशत पर बनाये रखा।

दास ने कहा कि मौजूदा और अपेक्षित मुद्रास्फीति-वृद्धि संतुलन ने मौद्रिक नीति रुख में बदलाव के लिए परिस्थिति तैयार की हैं। इसका कारण अब महंगाई में कमी आने को लेकर भरोसा है।

आरबीआई ने वैश्विक स्तर पर जोखिमों और मौसम से संबंधित झटकों को लेकर चिंता जतायी। इसका जिंस कीमतों विशेष रूप से कच्चे तेल के मूल्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

दास ने कहा, ‘‘मुद्रास्फीति गिरावट के रास्ते पर है। हालांकि, हमें अभी भी काफी दूरी तय करनी है... हम खासकर तेजी से विकसित हो रही वैश्विक परिस्थितियों के बीच संतुष्ट नहीं हो सकते।’’

एमपीसी के मौद्रिक नीति कदम को लेकर आकलन बताता कि मौजूदा समय में उभरती परिस्थितियों और दृष्टिकोण के साथ तालमेल बिठाने के लिए अधिक लचीलापन और विकल्प रखना उचित होगा। समिति ने कहा, ‘‘आर्थिक वृद्धि का समर्थन करते हुए मुद्रास्फीति को टिकाऊ आधार पर लक्ष्य के अनुरूप लाने पर हमारा पूरा ध्यान बना हुआ है।’’

आरबीआई को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ खुदरा मुद्रास्फीति चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है।

एक्यूट रेटिंग्स एंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री और कार्यकारी निदेशक सुमन चौधरी ने कहा कि हालांकि एमपीसी ने रेपो दर में कटौती पर कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया है, लेकिन संभावना है कि वह इस साल दिसंबर या फरवरी, 2025 में इसमें कमी करेगा। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि महंगाई की स्थिति अनुकूल हो और अगले कुछ महीने मुद्रास्फीति लगातार 4.5 प्रतिशत के दायरे में रहे।

इक्रा लि. की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि एमपीसी ने रुख में बदलाव कर विवेकपूर्ण तरीके से लचीलेपन को प्राथमिकता दी है।

उन्होंने कहा, ‘‘इसने दिसंबर, 2024 में संभावित दर में कटौती का रास्ता खोला है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि घरेलू और वैश्विक दोनों स्तर पर महंगाई के स्तर पर कोई जोखिम सामने नहीं आये।’’ हमारा अनुमान है कि नीतिगत दर में कटौती तेज नहीं होगी। दो मौद्रिक नीति समीक्षाओं में यह कटौती 0.50 प्रतिशत तक सीमित होगी।’’

आरबीआई गवर्नर ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) क्षेत्र को चेतावनी भी दी।

उन्होंने कहा कि एनबीएफसी और विशेष रूप से छोटी राशि के कर्ज देने वाली इकाइयों (माइक्रोफाइनेंस) में संपत्ति की कुछ श्रेणियों में आक्रामक वृद्धि आगे चलकर वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम पैदा कर सकती है।

दास ने कहा कि आरबीआई उपभोग उद्देश्यों के लिए कर्ज, सूक्ष्म वित्त ऋण और क्रेडिट कार्ड बकाया जैसे कुछ असुरक्षित कर्ज के मामले में दबाव बढ़ने की आशंका पर करीबी नजर रख रहा है। केंद्रीय बैंक जरूरी होने पर कुछ कदम उठा सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘बैंकों और एनबीएफसी को, अपनी ओर से, इन क्षेत्रों में आकार और गुणवत्ता दोनों के संदर्भ में अपने व्यक्तिगत जोखिम का सावधानीपूर्वक आकलन करने की आवश्यकता है।’’

दास ने कर्ज मंजूरी के बाद की निगरानी व्यवस्था को मजबूत बनाने की भी बात कही।

अन्य उपायों में आरबीआई ने यूपीआई 123 पे (फीचर फोन) में प्रति लेनदेन सीमा 5,000 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये करने का प्रस्ताव किया है। साथ ही यूपीआई लाइट वॉलेट की सीमा को 2,000 रुपये से बढ़ाकर 5,000 रुपये करने तथा प्रति लेनदेन सीमा को दोगुना कर 1,000 रुपये करने की घोषणा की है।

एमपीसी की अगली बैठक चार से छह दिसंबर को होगी।

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