मुंबई, आठ जुलाई मुंबई में एक विशेष एनआईए अदालत ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में शोमा सेन और चार अन्य आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज कर दी तथा कहा कि 2018 में दायर की गई अर्जी की सुनवाई के लिए उन्होंने कोई कोशिश नहीं की थी।
अदालत ने कहा कि उन्होंने इतने लंबे समय तक सुनवाई के लिए अर्जी आगे नहीं बढ़ाने को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया और अपनी इस गलती से लाभ हासिल करने के लिए वह दावा नहीं कर सकते।
विशेष एनआईए (राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण) न्यायाधीश राजेश कटारिया ने मंगलवार को प्रोफेसर शोमा सेन, सुधीर धावले, कैदी अधिकार सक्रिय कार्यकर्ता रोना विल्सन, अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग और महेश राउत की जमानत याचिका खारिज कर दी।
आरोपियों ने मूल रूप से पुणे की एक सत्र अदालत में 2018 में जमानत के लिए अर्जी दायर की थी जब मामले की जांच स्थानीय पुलिस कर रही थी।
आरोपियों ने अपनी अर्जी में दावा किया था कि मामले में आरोपपत्र दाखिल करने के लिए सत्र अदालत द्वारा 90 दिन का समय विस्तार किया जाना अवैध है और इसलिए वे आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत जमानत के हकदार हैं।
इसके बाद, 2019 में आरोपियों ने अर्जी दायर कर इस आधार पर राहत मांगी थी कि अदालत उनके खिलाफ संज्ञान लेने में सक्षम नहीं है। यह अर्जी पुणे की अदालत ने खारिज कर दी थी और बाद में बंबई उच्च न्यायालय ने भी जमानत देने से इनकार कर दिया था।
न्यायाधीश ने कहा कि अर्जियां 2018 में दायर की गई थीं और रिकार्ड से पता चलता है कि आवेदकों ने मौजूदा अर्जी पर सुनवाई के लिए पुणे की अदालत या एनआईए अदालत के समक्ष कोई कोशिश नहीं की।
यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद में कथित भड़काऊ भाषण देने से संबद्ध है।
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