Paris Paralympics 2024: पेरिस, दो सितंबर भारत के कुमार नितेश ने सोमवार को यहां पुरुष एकल एसएल3 में अपना पहला पैरालंपिक स्वर्ण पदक जीता जबकि तुलसीमति और मनीषा रामदास ने महिला एकल एसयू5 वर्ग में क्रमश: रजत और कांस्य पदक अपने नाम किए जिससे सोमवार को भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों ने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया. हरियाणा के 29 साल के नितेश ने फाइनल में कड़े मुकाबले में अपने मजबूत डिफेंस और सही शॉट चयन की मदद से तोक्यो पैरालंपिक के रजत पदक विजेता ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को एक घंटे और 20 मिनट चले मुकाबले में 21-14 18-21 23-21 से हराया. यह भी पढ़ें: चीन और ब्रिटेन का जलवा बरकरार! देखें पेरिस पैरालम्पिक में पांचवें दिन की पदक तालिका
वर्ष 2009 में रेल दुर्घटना में बायां पैर गंवाने वाले नितेश ने मैच के बाद कहा, ‘‘मुझे अब भी कुछ अहसास नहीं हो रहा. शायद जब मैं पोडियम पर जाऊंगा और राष्ट्रगान बजेगा तो इस भावना का सामना कर पाऊंगा.’’
महिला एकल एसयू5 वर्ग के फाइनल में बाइस साल की शीर्ष वरीय तुलसीमति को चीन की गत चैंपियन यैंग कियू शिया के खिलाफ 17-21 10-21 से हार के साथ रजत पदक से संतोष करना पड़ा.
बाएं हाथ में जन्मजात विकृति के साथ पैदा हुई तुलसीमति ने कहा, ‘‘मैं रजत पदक से खुश हूं लेकिन थोड़ा निराश भी हूं कि मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर सकी.’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने बहुत सारी गलतियां कीं। मुझे पहला गेम जीत लेना चाहिए था. मैंने ड्रिफ्ट और फिर कुछ सहज गलतियों के कारण एक-दो अंक गंवाए जिससे उसे बढ़त मिल गई.’’
उन्नीस साल की दूसरी वरीय मनीषा ने डेनमार्क की तीसरी वरीय कैथरीन रोसेनग्रेन को 21-12 21-8 से हराकर कांस्य पदक जीता. मनीषा एर्ब पाल्सी के साथ पैदा हुई थी जिसके कारण उनका दाहिना हाथ प्रभावित है.
मनीषा ने कहा, ‘‘मैं बहुत खुश हूं। मैं सातवें आसमान पर हूं. कल मैं वाकई बहुत निराश थी. मैं इससे उबर नहीं पाई. आज जब से मैं उठी हूं, मैं अब भी मैच के बारे में सोच रही हूं. कल कुछ गलतियां करने के कारण मैं गुस्से में थी इसलिए मैंने आज कोर्ट पर अपना सारा गुस्सा निकाल दिया. लेकिन मेरे लिए यह काफी नहीं है, मैं पदक का रंग बदलने के लिए अगले चार साल तक कड़ी मेहनत करूंगी.’’
एसएल3 वर्ग के खिलाड़ियों के शरीर के निचले हिस्से में अधिक गंभीर विकार होता है और वह आधी चौड़ाई वाले कोर्ट पर खेलते हैं. एसयू5 वर्ग उन खिलाड़ियों के लिए है जिनके ऊपरी अंगों में विकार है। यह खेलने वाले या फिर दूसरे हाथ में हो सकता है.
जब नितेश 15 वर्ष के थे तब उन्होंने 2009 में विशाखापत्तनम में एक रेल दुर्घटना में अपना बायां पैर खो दिया था लेकिन वह इस सदमे से उबर गए और पैरा बैडमिंटन को अपनाया. नितेश की यह जीत सिर्फ निजी उपलब्धि नहीं है बल्कि इस जीत के साथ एसएल3 वर्ग का स्वर्ण पदक भारत के पास बरकरार रहा. तोक्यो में तीन साल पहले जब पैरा बैडमिंटन ने पदार्पण किया था तो प्रमोद भगत ने इस स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता था.
साथी पैरा बैडिंटन खिलाड़ी प्रमोद भगत की विनम्रता और स्टार क्रिकेटर विराट कोहली के अथक समर्पण से प्रेरित होकर, नितेश ने अपने जीवन को फिर से संवारना शुरू किया. आईआईटी मंडी से स्नातक नितेश ने इससे पहले बेथेल के खिलाफ सभी नौ मैच गंवाए थे और उन्होंने सोमवार को ग्रेट ब्रिटेन के खिलाड़ी के खिलाफ पहली जीत दर्ज की.
नितेश ने कहा, ‘‘प्रमोद भैया प्रेरणास्रोत रहे हैं. ना केवल इसलिए कि वे कितने कुशल और अनुभवी हैं, बल्कि इसलिए भी कि वह एक इंसान के तौर पर कितने विनम्र हैं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं विराट कोहली को भी प्रशंसक हूं क्योंकि जिस तरह से उन्होंने खुद को एक फिट खिलाड़ी में बदल लिया है. वह 2013 से पहले कैसे हुआ करते थे और अब वह कितने फिट और अनुशासित हैं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने इस तरह से नहीं सोचा था। मेरे दिमाग में विचार आ रहे थे कि मैं कैसे जीतूंगा. लेकिन मैं यह नहीं सोच रहा था कि जीतने के बाद मैं क्या करूंगा.’’
फाइनल मुकाबला धीरज और कौशल का परीक्षण था जिसमें दोनों खिलाड़ियों ने बहुत ही कठिन रैलियां खेली. शुरुआती गेम में लगभग तीन मिनट की 122 शॉट् की रैली भी थी.
नितेश ने अपने रिवर्स हिट, ड्रॉप शॉट और नेट पर शानदार खेल से बेथेल को पूरे मैच में परेशान किया.
नितेश के लिए यह जीत वर्षों की कड़ी मेहनत और दृढ़ता का परिणाम था. दुर्घटना के बाद बिस्तर पर पड़े रहने से लेकर पैरालंपिक पोडियम पर शीर्ष पर खड़े होने तक का सफर उनके अदम्य साहस का प्रमाण है.
नौसेना अधिकारी के बेटे नितेश ने कभी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए रक्षा बलों में शामिल होने का सपना देखा था. हालांकि दुर्घटना ने उन सपनों को चकनाचूर कर दिया.
नितेश ने फरीदाबाद में 2016 के राष्ट्रीय खेलों में पैरा बैडमिंटन में पदार्पण किया जहां उन्होंने कांस्य पदक जीता. वैश्विक स्तर पर भी उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने 2022 में एशियाई पैरा खेलों में एकल में रजत सहित तीन पदक जीते.
तुलसीमति जन्मजात विकृति के साथ पैदा हुई थी जिसके कारण उनके बाएं हाथ में अंगूठा नहीं था. उन्हें हाथ और बांह में सुन्नपन, झुनझुनी और कमजोरी के साथ-साथ मांसपेशियों के पतले होने का सामना करना पड़ा.
दुर्घटना में लगी गंभीर चोट के कारण उनकी चुनौतियां और भी बढ़ गईं जिससे उनके बाएं हाथ की गतिशीलता सीमित हो गई. इसके बावजूद तुलसीमति के खिलाड़ी के सफर की शुरुआत पांच साल की उम्र में हुई और सात साल की उम्र तक वह पूरी तरह से बैडमिंटन में डूब गई. इससे पहले शिवराजन सोलाईमलई और नित्या श्री सुमति सिवन की दूसरी वरीय भारतीय जोड़ी को मिश्रित युगल एसएच6 स्पर्धा के कांस्य पदक प्ले ऑफ में सुभान और रीना मार्लिना की इंडोनेशिया की जोड़ी के खिलाफ 17- 21 12-21 से हार का सामना करना पड़ा.
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)