
11 जुलाई 2025 से श्रावण मास शुक्लपक्ष का महीना शुरु हो रहा है, इसके साथ ही देश भर में ‘बोल बम’ की गूंज के साथ कांवड़ यात्रा का सिलसिला शुरु हो जाएगा. श्रावण के इन चार सप्ताह शिव-भक्त कांवड़िये नंगे पांव हरिद्वार, गोमुख, गंगोत्री और सुल्तानगंज से गंगाजल एकत्र कर इसे सावधानी पूर्वक अलंकृत कांवड़ियों में लटका कर नीलकंठ महादेव, बाबा बैद्यनाथ धाम और काशी विश्वनाथ जैसे पवित्र शिवलिंगों पर अर्पित करेंगे. हर कांवड़ियों के इस कांवड़ यात्रा के उद्देश्य भिन्न-भिन्न होते हैं. श्रावण मास के आगमन के अवसर पर हम जानेंगे कांवड़ यात्रा क्या है, साथ ही जानेंगे इस महा पवित्र यात्रा के धार्मिक, ऐतिहासिक एवं सामाजिक महत्व के बारे में...
क्या है ‘कांवर’ यात्रा?
भगवान शिव से जुड़ी कांवड़ यात्रा भारत में लाखों भक्तों द्वारा की जाने वाली सबसे बड़ी और पवित्र धार्मिक तीर्थयात्राओं में से एक है, जिन्हें ‘कांवड़’ कहा जाता है, भीषण गर्मी में गंगा नदी से पवित्र जल इकट्ठा करने और पूरे उत्तर भारत के मंदिरों में भगवान शिव को अर्पित करने के लिए सैकड़ों किमी पैदल यात्रा करते हैं. यह कांवड़ यात्रा मुख्यतया जुलाई-अगस्त माह में की जाती है. यहां इसके ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्व को बिंदुवार दिया गया है. यह भी पढ़ें : Swami Vivekananda Death Anniversary: स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर अपने मित्र-परिजनों को भेजें ये प्रेरक कोट्स!
ऐतिहासिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक महत्वः
शिव की भक्तिः कांवड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति भक्ति को व्यक्त करने का एक तरीका है, विशेषकर श्रावण के समय जब शिव की पूजा करना बेहद शुभ होता है.
पौराणिक पृष्ठभूमिः कांवड़-यात्रा की परंपरा पौराणिक कथा समुद्र-मंथन से जुड़ी है, जिसके अनुसार समुद्र-मंथन से निकले हलाहल से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव को उसका पान कर गले में लेना पड़ा. इस वजह से गले में हो रही जलन को राहत देने के लिए देवताओं और ऋषि-मुनियों ने भगवान शिव के गले को ठंडा करने के लिए गंगाजल अर्पित किया था, वही परंपरा आज कांवड़िये भी निभा रहे हैं.
गंगा जल का पवित्र अर्पणः शिव-भक्त पूरे श्रावण माह हरिद्वार, गोमुख, गंगोत्री और सुल्तानगंज सहित तमाम गंगा तटों से गंगा जल एकत्र करते हैं, और इसे बांस एवं रंगीन पन्नियों सजे कांवड़ में रखकर नीलकंठ महादेव, बैद्यनाथ धाम और काशी विश्वनाथ जैसे शिव मंदिर ले जाकर उनका अभिषेक करते हैं.
तपस्या और पवित्रता का मार्गः कांवड़ यात्रा आम यात्रा से कहीं अधिक है. यह एक कठिन तपस्या, प्रतिबद्धता और आत्मविश्वास के प्रति समर्पण का कार्य है. इस दौरान अधिकांश श्रद्धालु सैकड़ों किमी नंगे पैर चलते हैं, मौन रहते हैं या ‘बोल बम’ का जाप करते हैं, तथा जीवन के सभी विलासिता से दूर रहते हैं.
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्वः यह यात्रा भारत की जीवंत परंपराओं के लिए एक संदर्भ बिंदु है, जो भक्ति-आधारित परोपकारी साहसिक कार्य है. कांवड़ियों के लिए स्वयंसेवकों के रूप में मार्ग पर भोजन, आश्रय और प्राथमिक चिकित्सा आदि की व्यवस्था करते हैं.
आध्यात्मिक यात्रा का आधुनिक प्रबंधनः कांवड़ यात्रा में लाखों श्रद्धालुओं के लिए, राज्य सरकारें यातायात, आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं और यात्रियों की सामान्य सुरक्षा पर नियंत्रण रखने आदि की व्यवस्था सुनिश्चित करती हैं.