देश की खबरें | भारत के अंतरिक्ष विजन में उद्योगों की अहम भूमिका : इसरो प्रमुख

तिरुवनंतपुरम, 10 जनवरी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने शुक्रवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा घोषित भारत के अंतरिक्ष विजन 2047 को साकार करने में उद्योगों की अहम भूमिका है। इसरो के नामित अध्यक्ष वी नारायणन ने भी यही राय जाहिर की।

द्विवार्षिक राष्ट्रीय एयरोस्पेस विनिर्माण संगोष्ठी (एनएएमएस) के लिए पहले से रिकॉर्ड किए गए अपने उद्घाटन भाषण में सोमनाथ ने कहा कि उद्योगों को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि अंतरिक्ष कार्यक्रम में उनकी भागीदारी काफी बढ़ने वाली है।

उन्होंने कहा कि इनमें से एक चुनौती अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए जरूरी रॉकेट, उपग्रह और अन्य प्रणालियों का लगातार विकास एवं उत्पादन होगा, जबकि नये अंतरिक्ष यान व प्रणालियों, लघु इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, बड़े प्रणोदन टैंक और इंजन जैसी वस्तुओं की इंजीनियरिंग, विनिर्माण तथा आपूर्ति दूसरी चुनौती होगी।

इसरो प्रमुख ने कहा, “व्यस्त कार्यक्रम के मद्देनजर बड़ी संख्या में इन्हें तैयार करना पड़ता है।” उन्होंने कहा कि यह काम बहुत चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र में अंतरिक्ष क्षेत्र की क्षमता में पर्याप्त वृद्धि नहीं हो रही है।

सोमनाथ ने कहा कि निजी क्षेत्र में भले ही विकास हो रहा है, लेकिन विनिर्माण, आपूर्ति और आपूर्ति शृंखला का प्रबंधन भी बड़ी चुनौती होगा।

संगोष्ठी में नारायणन भी व्यक्तिगत रूप से मौजूद नहीं थे। लिहाजा उनका भी पहले से रिकॉर्ड किया गया भाषण सुनाया गया, जिसमें उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष कार्यक्रम में सामग्री और विनिर्माण टीम की अहम भूमिका है, जिनके बिना “उपग्रह और रॉकेट सिर्फ कागज तक सीमित रहेंगे।”

नारायणन ने कहा कि पिछले 44 वर्षों में भारत ने 99 प्रणोदन वाहन अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है और कई उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया है।

उन्होंने कहा, “प्रक्षेपण यान और उपग्रहों की मांग बढ़ गई है। मौजूदा समय में हमारे पास लगभग 54 उपग्रह हैं और अगले तीन-चार वर्षों में 100 से अधिक उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करना होगा।”

नारायणन ने कहा, “इस लक्ष्य को पूरा करने में विनिर्माण में उद्योगों की भूमिका अहम है। सिर्फ डिजाइन टीम ही नहीं, बल्कि सामग्री और विनिर्माण टीम को भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी, क्योंकि उनके बिना उपग्रह और रॉकेट केवल कागज तक सीमित रहेंगे।”

उन्होंने कहा, “पहले रॉकेट प्रक्षेपण की मांग कम थी, लेकिन अब जैसे-जैसे मांग बढ़ रही है, प्रणोदन वाहनों की पेलोड क्षमता में सुधार करने की जरूरत है। इसके लिए देश क्रायोजेनिक और सेमी-क्रायोजेनिक प्रणोदन प्रणाली विकसित कर रहा है।”

नारायणन ने कहा, “हालांकि, सेमी-क्रायोजेनिक परियोजना को लगभग 15 साल पहले ही मंजूरी दे दी गई थी, लेकिन विनिर्माण संबंधी चुनौतियों के कारण हमारे हाथ बंधे हुए हैं, क्योंकि उद्योग की क्षमता पर्याप्त नहीं है।”

उन्होंने कहा कि “तकनीकी चुनौतियों की वजह से” देश आज तक एक भी सेमी-क्रायोजेनिक इंजन सफलतापूर्वक विकसित नहीं कर सका है।

नारायणन ने कहा कि अंतरिक्ष विजन 2047 में गगनयान, चंद्रयान-4 और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे कई महत्वाकांक्षी अभियान शामिल हैं और इन्हें साकार करने के लिए हर साल कई प्रणोदन वाहनों की जरूरत पड़ेगी।

उन्होंने कहा, “इसलिए उद्योगों से विनिर्माण आवश्यकताएं बढ़ गई हैं। मुझे यकीन है कि जो लोग यहां मौजूद हैं, वे अंतरिक्ष विजन 2047 के लिए आवश्यक चीजों को हासिल करने में वास्तव में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देंगे।”

नारायणन ने कहा कि आज के मुकाबले पहले बहुत कम रॉकेट प्रक्षेपित किए जाते थे, इसलिए अब उत्पादन लागत और निर्माण अवधि में कमी लानी होगी।

एनएएमएस-2025 का आयोजन एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग इंजीनियर्स सोसायटी (एसएएमई) की राष्ट्रीय शासी परिषद ने किया है।

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