मुंबई, 27 अप्रैल बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि मोटर दुर्घटनाओं के पीड़ितों को मुआवजा देते समय उन्हें लगी शारीरिक चोटों के अलावा मानसिक आघात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने 7 अप्रैल को पारित एक आदेश में यह बात कही जिसकी एक प्रति मंगलवार को उपलब्ध कराई गई। आदेश में न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया। कंपनी ने 2014 में नासिक राजमार्ग पर दुर्घटना का शिकार हुई दो महिलाओं को दी जाने वाली मुआवजे की राशि को चुनौती दी थी। अदालत ने कंपनी को रकम का भुगतान करने का आदेश दिया।
न्यायाधीश ने पीड़ितों में से एक के लिए मुआवजे की राशि में भी वृद्धि करते हुए कहा कि दुर्घटना ने उसे जीवन भर की मानसिक पीड़ा तो दी ही है, उसे आगे के चिकित्सा उपचार की भी आवश्यकता थी।
2019 में, मोटर वाहन दुर्घटना न्यायाधिकरण ने बीमा कंपनी को समीरा पटेल को लगभग 20 लाख रुपये और उसकी बेटी जुलेका को 22 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था।
दोनों कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गई। हादसा तब हुआ जब उनकी कार बीच सड़क में खड़े एक खराब ट्रेलर (भारी मालवाहक वाहन) से टकरा गई। खराब वाहन के पीछे कोई चेतावनी, संकेतक या पार्किंग लाइट नहीं थी।
दुर्घटना के परिणामस्वरूप समीरा, जो उस समय 37 वर्ष की थी, की एक आंख की रोशनी चली गई और कई शारीरिक अक्षमताएं हो गईं।
उसने उच्च न्यायालय को बताया कि उसके जुड़वां बेटियों सहित पांच बच्चे हैं, जो संज्ञानात्मक शारीरिक और मानसिक अक्षमता से पीड़ित हैं। महिला ने उच्च न्यायालय को बताया कि दुर्घटना ने उसे अपनी बेटियों की देखभाल करने में असमर्थ बना दिया और उसे मदद के लिए मजबूर होना पड़ा।
ज़ुलेका, जो उस समय 19 वर्ष की थी, ने अपनी सुनने की क्षमता खो दी और उसके चेहरे के एक हिस्से की चिकित्सकों द्वारा सर्जरी करनी पड़ी।
जुलेका ने अदालत को बताया कि वह एक खिलाड़ी थी और उसे खेलों में अपना करियर बनाने की उम्मीद थी, लेकिन दुर्घटना के कारण बड़ी शारीरिक अक्षमता हो गई और उसने एक खिलाड़ी बनने का मौका खो दिया।
बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि ट्रेलर चालक बिना वैध लाइसेंस के गाड़ी चला रहा था। उसने दलील दी कि वाहन मालिक ने बीमा की शर्तों का उल्लंघन किया है, इसलिए मालिक को मुआवजे की राशि का भुगतान करने के लिए कहा जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने हालांकि कहा कि कानून स्पष्ट था कि भले ही किसी ने बीमा शर्तों का उल्लंघन किया हो, यह बीमा कंपनी होगी जिसे मुआवजे की राशि का भुगतान करना होगा और बाद में मालिक से इसे वसूल करना होगा।
अदालत ने कहा कि इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि जुलेका ने अच्छे भविष्य का अवसर खो दिया।
अदालत ने कहा कि “अंकगणितीय गणना” की कोई भी राशि पीड़ितों के लिए उचित मुआवजे तक पहुंचने में मदद नहीं कर सकती है।
उच्च न्यायालय ने कहा, “पीड़ित भावनात्मक रूप से थक चुके हैं और समस्या से निपटने में असहायता की भावना से भर गए हैं। पूरे प्रकरण ने परिवार को गंभीर संकट में डाल दिया है और उनकी स्थिति का विश्लेषण अभिघातजन्य तनाव विकार के रूप में किया जा सकता है, जो एक व्यक्ति के रूप में कामकाज और व्यक्तित्व में परिवर्तन ला सकता है। दर्दनाक मस्तिष्क की चोट और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव को ध्यान में रखा जाना चाहिए।”
अदालत ने कहा कि ज़ुलेका के लिए ट्रिब्यूनल मुआवजे की राशि में शादी की संभावनाओं के नुकसान और भविष्य के चिकित्सा उपचार के घटक को शामिल करने में विफल रहा है।
न्यायाधीश ने कहा, “इसलिए, मैं शादी की संभावनाओं के नुकसान के लिए तीन लाख रुपये और भविष्य के चिकित्सा उपचार के लिए दो लाख रुपये की राशि जोड़कर जुलेका तक सीमित मुआवजे को बढ़ाने के लिए इच्छुक हूं।”
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