गोधरा (गुजरात), 26 नवंबर गोधरा के मुस्लिम बहुल और हिंदू बहुल इलाकों के बीच विभाजन को चिह्नित करते हुए एक सड़क गुजरती है, जो शायद सांप्रदायिक दरार का भी रूपक है। सांप्रदायिक विभाजन की यह रेखा शहर में गहराई से प्रकट होती है और अनायास 2002 के गुजरात दंगों को याद दिलाती है।
गोधरा में एक ट्रेन में आग लगने से 59 कारसेवक के मारे जाने और भारत के विभाजन के बाद के सबसे भीषण दंगों की शरुआत होने के 20 साल बाद चुनावी परिदृश्य दोनों समुदायों के बीच की खाई को प्रदर्शित करता है।
अल्पसंख्यक समुदाय के कई निवासी अपने इलाकों में विकास नहीं होने की शिकायत करते हैं, वहीं शहर के अन्य क्षेत्रों के लोग समस्याओं को स्वीकार करते हैं लेकिन कहते हैं कि वे हिंदुत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के मुद्दे पर मतदान करेंगे।
इस संवेदनशील निर्वाचन क्षेत्र में भ्रष्टाचार, बढ़ती बेरोजगारी और 27 साल से राज्य में शासन कर रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर जैसे मुख्य मुद्दे हैं। हालांकि, हिंदुत्व और मोदी के नाम पर गोलबंदी चुनाव का निर्धारण करने वाले कारक हैं और उन सभी पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
सड़क रानी मस्जिद के पास पटेलवाड़ा और पोलन बाजार क्षेत्र से होकर गुजरती है, जहां पहले अधिकांश हिंदुओं और अन्य समुदायों का घर था तथा बाद में मुसलमान बहुल क्षेत्र हो गया। यहां मतभेद स्पष्ट दिखाई देते हैं। पोलन बाजार और उसके आस-पास के क्षेत्र गड्ढों, जर्जर सड़कों, किनारे में कचरे के ढेर तथा कुछ ही दूरी पर बंद नाले से घिरे हैं।
मुस्लिम बस्ती के दूसरी तरफ की सड़कें चौड़ी हैं। गुजरात औद्योगिक विकास निगम (जीआईडीसी) की छोटी औद्योगिक इकाइयां हैं। एक थिएटर, एक पैंटालून शोरूम और कार शोरूम भी है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के एक समर्थक इशाक बोकड़ा ने पीटीआई- से कहा, ‘‘शहर के हमारे हिस्से में कोई बैंक, एटीएम, खेल के मैदान नहीं हैं।’’