नयी दिल्ली, 26 नवंबर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश संजय किशन कौल ने शनिवार को कहा कि कानून के प्रभाव का अध्ययन करने और प्रस्तावित कानून के सामाजिक संदर्भ की पड़ताल करने से अनावश्यक मुकदमेबाजी को रोका जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय में संविधान दिवस समारोह में न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि इंसाफ दिलाना एक विकेन्द्रीकृत कवायद है और न्याय के दायरे को और बढ़ाने के अभियान के लिए अधिक सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।
संविधान सभा द्वारा 1949 में भारत के संविधान को अपनाने के उपलक्ष्य में 2015 से 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इससे पहले इस दिन को कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था।
न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘कानून के प्रभाव का अध्ययन करना और प्रस्तावित कानून के सामाजिक संदर्भ की पड़ताल करना अनावश्यक मुकदमेबाजी को रोकने में प्रभावशाली हो सकता है। प्रस्तावित कानून की व्यवहार्यता और वांछनीयता की जांच करने के अलावा, यह देखना भी महत्वपूर्ण है कि मौजूदा न्यायिक तंत्र इससे उत्पन्न होने वाली मुकदमेबाजी से निपटने के लिए तैयार है या नहीं।’’
समारोह में प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कानून मंत्री किरेन रीजीजू भी शामिल हुए।
न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘इन्हीं कारणों से हमें अपने संविधानवाद के भूले-बिसरे तत्व को फिर से खोजने की जरूरत है। यह न केवल हमारे स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है, बल्कि यह इंसाफ हासिल करने की दिशा में ऐसा तरीका भी है जिसका कम इस्तेमाल हुआ है।’’
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि कानूनी सहायता प्रदान करने और विभिन्न प्रकार के विवादों के लिए मध्यस्थता ढांचा बनाने को लेकर कानून निर्माताओं (सांसदों) और अदालतों को मिलकर काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं उन क्षेत्रों को रेखांकित करना चाहूंगा, जहां कानून निर्माता और अदालतें मिलकर काम कर सकती हैं। पहला कानूनी सहायता का प्रावधान है। हम जानते हैं कि लंबे समय से जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की समस्या एक बड़ी परेशानी है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिस ओर हमें तत्काल अपना ध्यान देना चाहिए। हमारे सामूहिक प्रयास से एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है।’’
न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘हम विधिक सहायता प्रक्रियाओं की प्रभावशीलता का गहन अध्ययन करने के लिए कानूनी सहायता मुहैया कराने वाले वकीलों के माध्यम से अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और उन्हें उचित प्रोत्साहन तथा प्रशिक्षण प्रदान कर सकते हैं।’’
उन्होंने कहा कि दूसरा क्षेत्र, विभिन्न प्रकार के विवादों के लिए मध्यस्थता ढांचे का निर्माण है जो अदालतों के समक्ष लंबित मामलों को कम करने में एक लंबा रास्ता तय कर सकता है।
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि सरकार अंतहीन वैधानिक अपील और उच्च न्यायालयों से बड़ी संख्या में मामलों के आने के कारण शीर्ष अदालत के बढ़े बोझ को और बढ़ाना बंद करे। साथ ही, उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों में भी मुकदमों की संख्या में कमी आनी चाहिए।
वेंकटरमणि ने कहा कि पारिवारिक अदालतों को और अधिक सहज-सुगम बनाने की जरूरत है तथा संपत्ति कानून और अन्य मामलों में एक समझौता आयोग की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘कानून का शासन एक अहिंसक क्रांति है। कानून के शासन को व्यापक जगह हिंसा को कम करती है। मैं एक ऐसे दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब न्याय के मानकों पर पश्चिम हमसे सीख ले सकता है।’’
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि संविधान एक विकासशील दस्तावेज है तथा इसे सामाजिक परिवर्तन का एक साधन होना चाहिए तथा इसे विकसित होते रहना चाहिए।
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