Shia-Sunni Conflict in Pakistan: पाकिस्तान के कुर्रम में शिया-सुन्नी के बीच क्यों हो रहा दंगा? साम्प्रदायिक हिंसा में मारे गए 64 लोग

Sunni-Shia Clashes in Khyber Pakhtunkhwa: पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के कुर्रम जिले में 21 नवंबर को शिया यात्रियों की सामूहिक हत्या के बाद साम्प्रदायिक हिंसा का सिलसिला तेज हो गया है. इस हमले में 45 से अधिक शिया यात्रियों की हत्या कर दी गई थी, और इसके बाद शिया और सुन्नी जनजातीय समूहों के बीच तीन दिनों में 64 से अधिक लोग मारे गए. इस हिंसा के बीच शिया और सुन्नी समुदायों के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता और क्षेत्रीय राजनीतिक इतिहास की झलक देखने को मिलती है.

कुर्रम: शिया और सुन्नी समुदायों का इतिहास

कुर्रम जिला अफगानिस्तान के लागर, पक्तिया, खोस्त, और नंगरहार प्रांतों से सटा हुआ है. इसकी सीमाएं अफगानिस्तान के साथ 192 किलोमीटर लंबी डुरंड रेखा से जुड़ी हुई हैं. कुर्रम की कुल जनसंख्या लगभग 7.85 लाख है, जिसमें 99% से अधिक लोग पश्तून हैं. इन पश्तूनों में तुरी, बांगश, जैमुष्ट, मंगाल, मुकबाल, मसुज़ई और परचमकानी जैसी जनजातियाँ शामिल हैं. इनमें से तुरी और कुछ बांगश शिया हैं, जबकि बाकी सभी सुन्नी हैं.

कुर्रम में शिया आबादी का प्रतिशत पाकिस्तान के औसत से कहीं अधिक है. यहाँ की शिया आबादी लगभग 45% है, जबकि पाकिस्तान में शियाओं का औसत प्रतिशत 10-15% है. शियाओं का प्रमुख गढ़ ऊपरी कुर्रम है, जबकि निचले कुर्रम में सुन्नी समुदाय अधिक है.

साम्प्रदायिक हिंसा का इतिहास 

कुर्रम में साम्प्रदायिक हिंसा का इतिहास बहुत पुराना है. यह हिंसा अक्सर जनजातीय प्रतिस्पर्धाओं, संसाधनों की कमी और शासन के विफलताओं से उत्पन्न होती रही है. ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा की गई जनजातीय पक्षपाती नीतियाँ भी इस संघर्ष के मूल में रही हैं. ब्रिटिशों ने जनजातीय क्षेत्रों में अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए कुछ जनजातियों को अधिक अधिकार दिए, जिससे अन्य जनजातियाँ असंतुष्ट हो गईं और उनके बीच प्रतिद्वंद्विता बढ़ी.

भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के बाद कुर्रम जिला फेडरली एडमिनिस्टरड ट्राइबल एरिया (FATA) का हिस्सा बन गया था, जो 2018 में खैबर पख्तूनख्वा से मिलाकर एक पूर्ण प्रांत बना. इस क्षेत्र में शासन की स्थिति कभी स्थिर नहीं रही, जिससे स्थानीय समुदायों के बीच तनाव बढ़ता गया.

1980 के दशक में साम्प्रदायिक तनाव का बढ़ना 

1980 के दशक में तीन महत्वपूर्ण घटनाओं ने कुर्रम के साम्प्रदायिक तनावों को और बढ़ाया. पहला, 1979 में ईरान में शिया इस्लामिक क्रांति का आगमन था, जिसने सऊदी अरब और ईरान के बीच जियोपॉलिटिकल प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया. इस संघर्ष ने कुर्रम को एक प्रॉक्सी युद्ध क्षेत्र बना दिया, जहाँ ईरान और सऊदी अरब ने क्रमशः शिया और सुन्नी समूहों को समर्थन दिया. इसके परिणामस्वरूप, पुराने जनजातीय विभाजन अब अधिक साम्प्रदायिक रूप धारण करने लगे.

दूसरी महत्वपूर्ण घटना थी सोवियत-अफगान युद्ध (1979-1989), जिसने कुर्रम को अमेरिकी समर्थन प्राप्त मुजाहिदीन की उपस्थिति का केन्द्र बना दिया. इस युद्ध के दौरान कुर्रम में सैकड़ों अफगान शरणार्थियों ने शरण ली, और इस संघर्ष ने कई उग्रवादी समूहों और मिलिशियाओं को जन्म दिया.

तीसरी घटना थी जनरल जिया उल हक का शासन (1977-1988), जब पाकिस्तान में सुन्नी इस्लामीकरण को बढ़ावा दिया गया. जिया की नीतियों ने पाकिस्तान के अंदर साम्प्रदायिक तनावों को बढ़ावा दिया, और कुर्रम में सुन्नी अफगान शरणार्थियों की बढ़ती संख्या से शिया तुरी जनजातियों को कमजोर किया.

हाल के वर्षों में कुर्रम में आतंकवादी समूहों का प्रभाव बढ़ा है, जिसमें पाकिस्तान के तालिबान (TTP) और इस्लामिक स्टेट शामिल हैं. इन समूहों ने अफगानिस्तान से आकर कुर्रम के जनजातीय इलाकों में शरण ली और यहां के अस्थिर माहौल का लाभ उठाया. इसके साथ ही, 2007 और 2011 के बीच कुर्रम में 2,000 से अधिक लोग मारे गए थे, और 5,000 से अधिक लोग घायल हुए थे. हजारों लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए थे.

पाकिस्तान सरकार के आंकड़ों के अनुसार, इस साल जुलाई से कुर्रम में एक बार फिर हिंसा भड़क उठी. एक भूमि विवाद के कारण शिया तुरी और सुन्नी मडगी कलाई जनजाति के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें लगभग 50 लोग मारे गए.

कुर्रम का इतिहास शिया और सुन्नी समुदायों के बीच संघर्ष और बाहरी ताकतों के प्रभाव का गवाह रहा है. इस क्षेत्र में न केवल साम्प्रदायिक और जनजातीय असहमति हैं, बल्कि शासन की विफलताओं और संसाधनों की कमी ने इन संघर्षों को और बढ़ाया है. पाकिस्तान की सरकार और स्थानीय समुदायों को इस हिंसा के मूल कारणों की पहचान करके इसे खत्म करने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे.