नयी दिल्ली, नौ नवंबर उच्चतम न्यायालय ने अदालतों द्वारा जमानत याचिकाओं को वर्षों तक लंबित रखने की परिपाटी पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि ऐसे मामलों में निर्णय लेने में एक दिन की भी देरी से नागरिकों के मूल अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने शुक्रवार को पारित आदेश में कहा कि उच्चतम न्यायालय ने बार-बार व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व पर जोर दिया है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘इस अदालत ने कहा है कि जमानत याचिका पर निर्णय लेने में एक दिन की भी देरी से नागरिकों के मूल अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हम जमानत याचिका को वर्षों तक लंबित रखने की परिपाटी की सराहना नहीं कर सकते।’’
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसने दलील दी है कि उसकी जमानत याचिका पिछले साल अगस्त से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित है और मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि मामले को बिना किसी प्रभावी सुनवाई के उच्च न्यायालय में बार-बार स्थगित कर दिया गया।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उसे सूचित किया गया है कि उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए मामले को 11 नवंबर के वास्ते निर्धारित किया गया है।
पीठ ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा, ‘‘...जिस न्यायाधीश के समक्ष यह मामला रखा गया है, हम उनसे अनुरोध करते हैं कि वह इसपर उसी तिथि को सुनवाई करें तथा यथासंभव शीघ्रता से निर्णय करें और किसी भी स्थिति में 11 नवंबर 2024 से दो सप्ताह की अवधि के भीतर फैसला करें।’’
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