जर्मनी के सार्वजनिक कर्ज को लेकर एक तीखी बहस छिड़ी हुई है. आखिर इस कर्ज की सीमा क्या है? और आखिर कब देश कर्ज लेना बंद करेंगे?कर्ज को लेकर जर्मनी में चौतरफा डर का माहौल है. हाल की एक स्थानीय मीडिया कवरेज के बाद से ये डर और गहरा हुआ है. जबकि ब्रिटिश पत्रिका द इकोनॉमिस्ट के मुताबिक जर्मनी आज जिन समस्याओं का सामना कर रहा है उनमें कर्ज तो कम से कम नहीं.
देश की संवैधानिक अदालत के एक फैसले के बाद जर्मनी के कर्ज की सीमा को लेकर बहस छिड़ी. कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि 60 अरब डॉलर (65 अरब यूरो) के कोविड राहत कर्ज को नये काम में इस्तेमाल करने की सरकार की योजना कानून सम्मत नहीं. गंभीर निवेशों के लिए जरूरी नकदी के बिना सरकार को अब अपने 2024 के बजट में काफी ज्यादा तालमेल बैठाना होगा.
इस सवाल पर सरकार गिर भी सकती है कि उसे कर्ज लेना जारी रखते हुए, जर्मन संविधान में दर्ज उसकी सीमा की अनदेखी कर देनी चाहिए या स्टेट फंडिंग पर लगाम कसनी चाहिए.
कर्ज कब खतरनाक हो जाता है?
अंतर्निहित डर ये है कि जर्मनी का रास्ट्रीय कर्ज समस्या बन सकता है. लेकिन ऐसा कब होगा? इसका सीधा जवाब ये हो सकता है कि जब भी वो देशों को महंगा पड़ने लगे.
ये खासतौर पर उस स्थिति में महंगा हो सकता है जब अमेरिकी रेटिंग एजेंसी एसएंडपी में सॉवेरेन रेटिंग विभाग के प्रमुख क्रिस्टियान एस्टर्स जैसे लोग, जर्मनी की कर्ज चुकाने की सामर्थ्य को डाउनग्रेड कर देते हैं यानी कम आंकते हैं. एसएंडपी को दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा प्रभावशाली रेटिंग एजेंसी माना जाता है. वो अमेरिका की ही दो अन्य कंपनियों, मूडीज और फिच से भी आगे है.
एस्टर्स और उनकी टीम की जारी की हुई कर्ज लौटाने की सामर्थ्य की रेटिंग के दूरगामी नतीजे हो सकते हैं. उनका आकलन तय करता है कि कोई राज्य दिवालिया माना जाए या नहीं और नया कर्ज उन्हें कितना महंगा पड़ेगा. जितनी कम उनकी क्रेडिट रेटिंग होगी, उतना ही ज्यादा महंगा उनके लिए नया कर्ज होगा.
बहस अक्सर कुल सार्वजनिक ऋण पर आ टिकती है. जर्मनी में, बहुत से लोग शुल्डेनउअर यानी कर्ज की घड़ी से परिचित हैं जिसमें जर्मनी के सार्वजनिक कर्ज की सीमा प्रदर्शित की जाती है. इसे हर कोई देख सकता है.
जर्मन कर्ज 1950 से बढ़ता गया और आज वो 2.5 खरब यूरो (2.68 खरब डॉलर) का हो चुका है. इस मामले में जर्मनी यूरोजोन में फ्रांस और इटली के बाद तीसरे नंबर पर है.
एस्टर्स का कहना है कि सकल सार्वजनिक कर्ज, मुख्य मापदंड नहीं. उन्होंने डीडब्लू से कहा, "पूर्ण सरकारी कर्ज देश की अर्थव्यवस्था बताने का पैमाना नहीं होता."
कभीकभार, राष्ट्रीय कर्ज प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखा जाता है. जर्मनी में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय कर्ज इस समय 31 हजार यूरो (33320 डॉलर है.)
हालांकि ये पैमाना भी देश की कर्ज लौटाने की सामर्थ्य के आकलन में मदद नहीं करता. इस मीट्रिक के लिहाज से, अमीर देश अक्सर बड़ी आबादी वाले गरीब देशों के मुकाबले काफी ज्यादा कर्जदार दिखते हैं. लेकिन एस्टर्स के मुताबिक अमीर और गरीब देशों की तुलना भी गलत है.
उनका कहना है कि क्रेडिट रेटिंग करते हुए, सार्वजनिक कर्ज को सिर्फ एक फैक्टर के रूप में रखा जाता है. उन्होंने कहा "और भी बहुत सारे फैक्टर होते हैं, जैसे कि, ब्याज चुकाने में राज्य बजट का कितना हिस्सा खर्च किया जाता है."
जितना ज्यादा ब्याज होगा, कर्ज भी उनता ही ज्यादा बना रहेगा. फिर भी ब्याज की दरें मंहगाई की दरों पर निर्भर करती हैं क्योंकि केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ाकर महंगाई को कम करने की कोशिश करते हैं.
एस्टर्स ने डीडब्लू को बताया, "आर्थिक नीति की प्रभाविकता और विश्वसनीयता को तय करने वाले फैक्टरों मे से एक है महंगाई या मुद्रास्फीति."
दुनिया भर के अन्य देशों के मुकाबले, महंगाई के मामले में जर्मनी कहीं बीच में आता है. हाल के वर्षों में कुल वैश्विक मुद्रास्फीति थोड़ा सा बढ़ी है लेकिन 1980 और 1990 के दशकों की तुलना में ये औसत वृद्धि ही है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि महंगाई को गंभीरता से लेना छोड़ दें.
एस्टर्स कहते हैं, "महंगाई में वृद्धि से खरीदने की क्षमता में गिरावट आ सकती है और किसी देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में रहने की क्षमता भी कम हो जाती है." इस लिहाज से देखें तो महंगाई, देश की कर्ज लौटाने की सामर्थ्य तय करने में भी काम आती है.
एस्टर्स के मुताबिक राजनीतिक कारक भी होते हैं कि देश नया कर्ज लेने के लिए कितनी कीमत चुकाएंगे. उन्होने डीडब्लू को बताया, "हम सिर्फ वित्तीय फैक्टरो को मद्देनजर नहीं रखते."
"खासतौर पर पिछले कुछ सालों ने दिखाया है कि सांस्थानिक पूर्वानुमान और स्थिरता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जब देशो में राजनीतिक संस्थाएं कमजोर पड़ती हैं तो वे कर्ज के संकट में फंस सकते हैं."
इससे एक दुष्चक्र भी बन सकता है. आखिरकार, कर्ज, राजनीतिक संस्थाओं को कमजोर करने में गंभीर भूमिका निभा सकता है. एसएंडपी के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी के बाद से दुनिया के सरकारों के कर्ज में औसतन 8 फीसदी की वृद्धि हुई, उससे राष्ट्रीय बजटों पर दबाव बढ़ा, खासकर अब जबकि ब्याज दरें ऊंची हैं.
एस्टर्स कहते हैं, "सरकार के राजस्व का एक बड़ा भाग ब्याज भरने में लगाना पड़ा, जिसकी वजह से, भविष्य के धक्कों या संकटो से बचने के लिए जरूरी वित्तीय लचीलेपन में कमी आ गई."
हाल के वर्षों में कोरोना वायरस राहत पैकेजों, आर्थिक सुधारों, और रूस के खिलाफ यूक्रेन को लड़ने में मदद के रूप में भारीभरकम कर्ज हो जाने के बावजूद, एसएंडपी ने 2023 में क्रेडिट रेटिंग्स में सुधार पाया है. लेकिन आने वाले सालों के लिहाज से लगता नहीं कि हालात इतने सही रहने वाले हैं.
एस्टर्स का कहना है, "हमें आशंका है कि आने वाले एक से दो साल, क्रेडिट रेटिंग में बदलाव ज्यादा नकारात्मक रहने वाले हैं." उनके मुताबिक निर्णायक फैक्टर है, कर्ज न जमा करना और ये एक राजनीतिक जोखिम है.
नये कर्ज की संभावना के बावजूद, एस्टर्स जर्मनी के भविष्य को लेकर आशान्वित हैं. वो कहते हैं कि 2010 में भी, जब जर्मनी का सार्वजनिक कर्ज जीडीपी का 80 फीसदी हो गया था, उस समय भी कर्ज लौटाने की उसकी सामर्थ्य पर कोई शक नहीं था और रेटिंग भी बुलंद थी.
रिपोर्ट: निकोलस मार्टिन