नेपाल में सोशल मीडिया बैन को लेकर शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों ने बड़ा रूप ले लिया है. 19 प्रदर्शनकारियों की मौत और 80 से ज्यादा लोगों के घायल होने के बाद अब सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार कर रही है. पिछले हफ्ते नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया था. कारण बताया गया कि इन कंपनियों ने समय पर नेपाल सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में पंजीकरण नहीं कराया. इसके विरोध में खासकर जनरेशन Z (युवा वर्ग) सड़कों पर उतर आया.
काठमांडू से पूरे देश में फैला आक्रोश
काठमांडू के न्यू बनेश्वर इलाके में शुरू हुआ विरोध देखते-देखते देशभर में फैल गया. प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का पुतला फूंका और सरकारी दफ्तरों की ओर कूच किया. पुलिस ने भीड़ को रोकने के लिए आंसू गैस, वाटर कैनन और रबर की गोलियां चलाईं. कई जगह मोटरसाइकिलें जलाने और हिंसा की घटनाएं भी सामने आईं.
गृहमंत्री का इस्तीफा
हिंसा और मौतों की जिम्मेदारी लेते हुए गृहमंत्री रमेश लेखक ने इस्तीफा दे दिया. वहीं सरकार ने संकेत दिए हैं कि जनता की जान से बड़ा कोई निर्णय नहीं हो सकता, इसलिए सोशल मीडिया बैन पर पुनर्विचार संभव है.
युवाओं का गुस्सा क्यों?
सोशल मीडिया बैन को युवा अपनी अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मान रहे हैं. टिकटॉक पर ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनमें आम लोगों की परेशानियों की तुलना नेताओं के बच्चों की शानो-शौकत वाली जिंदगी से की गई है. भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से नाराज युवाओं का गुस्सा बैन ने और भड़का दिया.
सरकार का तर्क
प्रधानमंत्री ओली ने कहा कि सरकार का कदम राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा के लिए है, न कि रोजगार छीनने के लिए. उनके मुताबिक, सरकार पिछले एक साल से कंपनियों से कह रही थी कि वे नेपाल में पंजीकरण करें, टैक्स चुकाएं और एक स्थानीय अधिकारी नियुक्त करें. लेकिन कंपनियों ने इसे नजरअंदाज किया.
सरकार के प्रवक्ता का कहना है कि कैबिनेट की बैठक में इस पर चर्चा होगी और जनता की आवाज को ध्यान में रखते हुए बड़ा फैसला लिया जा सकता है.













QuickLY