Iran-Israel Conflict History: इजरायल-ईरान की जंग! दोस्ती से दुश्मनी तक की कहानी, जानें 50 साल का दिलचस्प इतिहास

Iran-Israel Conflict History: ईरान-इजरायल के बीच छिड़े युद्ध से दुनिया भर में तनाव बढ़ रहा है. हाल ही में ईरान ने इजरायल पर 180 से ज्यादा मिसाइलें दागीं है, जिसके बाद अब इजरायल बदले की आग में झुलस रहा है. ईरान ने इसे हमास चीफ इस्माइल हानिया और हिज्बुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की मौत का बदला बताया है. वहीं, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का कहना है कि ईरान बहुत बड़ी गलती कर दी है और इसे इसका अंजाम भुगतना होगा.

इजराइल और ईरान के बीच तनाव दशकों से मध्य पूर्व में अस्थिरता और संघर्ष का कारण बना हुआ है. दोनों देशों के बीच न केवल राजनीतिक बल्कि धार्मिक और क्षेत्रीय मतभेद भी गहराई तक जड़ें जमाए हुए हैं. यह संघर्ष कई बार सीमित सैन्य झड़पों से लेकर वैश्विक चिंता के मुद्दे तक पहुंच चुका है. इजराइल और ईरान के बीच तनावपूर्ण रिश्ते न केवल दोनों देशों बल्कि पूरे मध्य पूर्व के लिए खतरा बने हुए हैं.

इजराइल-ईरान संघर्ष की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

इजराइल और ईरान के बीच रिश्ते 1979 में ईरानी इस्लामी क्रांति से पहले काफी अच्छे थे. उस समय ईरान और इजराइल के बीच आर्थिक और कूटनीतिक संबंध थे. ईरान की शाह सरकार इजराइल को मान्यता देती थी और दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध भी थे. लेकिन 1979 की क्रांति के बाद, जब अयातोल्ला अल-उज़्मा सायद रुहोल्ला मोसावि खोमैनी के नेतृत्व में एक धार्मिक शासन सत्ता में आया, तब से इजराइल और ईरान के रिश्ते पूरी तरह से बदल गए.

खुमैनी के नेतृत्व में, ईरान ने इजराइल को मान्यता देने से इनकार कर दिया और उसे एक "अवैध राज्य" कहा. ईरान ने खुले तौर पर फिलिस्तीनी आंदोलन का समर्थन करना शुरू किया और इजराइल के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया. इस नई नीति के तहत, ईरान ने इजराइल के दुश्मन समूहों जैसे कि हमास और हिज़बुल्लाह को वित्तीय और सैन्य समर्थन देना शुरू किया, जो आज भी इजराइल के लिए गंभीर सुरक्षा खतरा बने हुए हैं.

क्षेत्रीय शक्ति संघर्ष 

ईरान और इजराइल के बीच संघर्ष का एक मुख्य कारण क्षेत्रीय प्रभुत्व की होड़ भी है. ईरान ने अपने प्रभाव को मध्य पूर्व में फैलाने की कोशिश की है, खासकर सीरिया, इराक, लेबनान, और यमन जैसे देशों में. ईरान के इस विस्तारवादी रुख से इजराइल की सुरक्षा चिंताएं बढ़ी हैं.

ईरान का परमाणु कार्यक्रम इजराइल के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है. इजराइल को डर है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम का इस्तेमाल करके परमाणु हथियार बना सकता है, जो इजराइल की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हो सकता है. इस संदर्भ में, इजराइल ने बार-बार कहा है कि वह किसी भी स्थिति में ईरान को परमाणु हथियार विकसित नहीं करने देगा, और इसके लिए वह सैन्य हस्तक्षेप करने से भी नहीं हिचकेगा.

इजराइल की सैन्य कार्रवाइयां और ईरानी प्रतिक्रिया 

पिछले कुछ वर्षों में, इजराइल ने सीरिया में कई बार ईरानी सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए हैं. सीरिया में ईरान की मौजूदगी को इजराइल अपने लिए सीधा खतरा मानता है. इजराइल ने बार-बार स्पष्ट किया है कि वह ईरान को अपनी सीमाओं के करीब सैन्य ठिकाने बनाने की अनुमति नहीं देगा.

इसके जवाब में, ईरान ने भी अपने समर्थन समूहों के जरिए इजराइल के खिलाफ हमले तेज किए हैं. लेबनान में हिज़बुल्लाह और गाजा में हमास जैसे समूहों को ईरान का व्यापक समर्थन मिलता है. इन समूहों ने इजराइल पर रॉकेट हमलों सहित कई हमले किए हैं. इस क्षेत्रीय तनाव में, सीरिया, लेबनान और गाजा पट्टी अक्सर युद्ध के मैदान बने रहे हैं.

ईरान का परमाणु कार्यक्रम: संघर्ष का मुख्य कारण 

ईरान का परमाणु कार्यक्रम इजराइल और पश्चिमी देशों के साथ उसके तनाव का मुख्य कारण रहा है. 2015 में हुए परमाणु समझौते (JCPOA) ने इस तनाव को कुछ हद तक कम किया था, लेकिन 2018 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा इस समझौते से अमेरिका के हटने के बाद तनाव फिर से बढ़ गया.

इजराइल हमेशा से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को एक अस्तित्वगत खतरा मानता आया है. इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस बात को जोर देकर कहा कि अगर ईरान परमाणु हथियार विकसित करता है, तो यह केवल इजराइल के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए खतरा होगा.

इजराइल की गुप्त एजेंसी मोसाद ने भी ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कमजोर करने के लिए कई ऑपरेशन किए हैं. इसमें 2020 में ईरान के प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीज़ादेह की हत्या भी शामिल है, जिसके पीछे इजराइल का हाथ बताया जाता है. इस हत्या के बाद ईरान ने इजराइल के खिलाफ प्रतिशोध की धमकी दी थी और इसका क्षेत्रीय तनाव और बढ़ गया.

कूटनीतिक प्रयास और वार्ता

जहां एक ओर इजराइल और ईरान के बीच संघर्ष लगातार जारी है, वहीं दूसरी ओर कुछ अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक प्रयास भी हुए हैं. 2015 का परमाणु समझौता (JCPOA) इसी दिशा में एक बड़ा कदम था. इस समझौते के तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाने और उसे सीमित करने पर सहमति दी थी, जिसके बदले में उस पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों में ढील दी गई थी.

हालांकि, 2018 में अमेरिका के JCPOA से हटने के बाद यह समझौता प्रभावी रूप से कमजोर हो गया. वर्तमान में, अमेरिका और अन्य यूरोपीय देश फिर से ईरान के साथ वार्ता की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इजराइल इसका कड़ा विरोध करता रहा है. इजराइल का मानना है कि ईरान पर किसी भी प्रकार की ढील उसे परमाणु हथियार विकसित करने का अवसर देगी, जो कि उसके लिए अस्वीकार्य है.

भविष्य के संभावित खतरे

इजराइल और ईरान के बीच चल रहे तनाव का भविष्य अनिश्चित है. अगर ईरान परमाणु हथियार विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ता है, तो यह पूरे मध्य पूर्व को एक नए संघर्ष की ओर धकेल सकता है. इजराइल पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वह किसी भी कीमत पर ईरान को परमाणु शक्ति नहीं बनने देगा.

दूसरी ओर, ईरान भी अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है. अगर इस संघर्ष को हल करने के लिए कोई कूटनीतिक समाधान नहीं निकाला गया, तो यह तनाव एक बड़े युद्ध का रूप ले सकता है, जिसमें अन्य क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों की भी भागीदारी हो सकती है.

इजराइल और ईरान के बीच का संघर्ष केवल दो देशों के बीच का नहीं है, बल्कि यह पूरे मध्य पूर्व की स्थिरता और सुरक्षा से जुड़ा हुआ है. दोनों देशों के बीच के यह तनाव भविष्य में और गंभीर रूप ले सकता है, खासकर अगर ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखता है. हालांकि, कूटनीतिक प्रयासों के जरिए इस संघर्ष को सुलझाने की कोशिशें हो रही हैं, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस सफलता अभी तक नहीं मिली है.

आगे क्या होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों देश अपने-अपने रुख में कितना बदलाव लाते हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मामले में किस तरह की भूमिका निभाता है.