
भारत-चीन सीमा पर तनाव का असर लद्दाख में रहने वाले खानाबदोशों की जिंदगी पर पड़ रहा है. उन्हें अपनी भेड़-बकरी चराने के लिए चरागाहों तक जाने से रोका जा रहा है. उनकी पारंपरिक जीवनशैली खतरे में है.सितंबर महीने का एक आम दिन. सूरज की आखिरी किरणें भारत के लद्दाख में स्थित चुशुल गांव को अलविदा कह रही थीं. इस बीच, गांव की रेतीली सड़कों पर कुंजेस डोल्मा के याक धीमी गति से चल रहे थे. उनकी गूंज ऐसी लग रही थी मानो वे संगीतकार हों और अपने सुरों से पूरे गांव को जगा रहे हों.
यह हिमालयी गांव चीन की सीमा के पास बसा हुआ है. 68 वर्षीय डोल्मा इसी गांव में रहती हैं. उन्होंने जानवरों को अपनी ईंट की झोपड़ी की ओर ले जाने के लिए सीटी बजाई. डोल्मा चांगपा समुदाय की एक चरवाहा हैं. इस समुदाय को अर्ध-खानाबदोश समूह कहा जाता है जो पूर्वी लद्दाख की चांगथांग घाटी में रहते हैं. डोल्मा के परिवार के पास 300 से अधिक भेड़ें और 50 याक हैं.
स्थानीय बाजार में भेड़ों की ऊन और याक का दूध बेचने वाली डोल्मा ने बताया, "खानाबदोशों की जीवनशैली कठोर है, लेकिन मुझे अपने मवेशियों को पहाड़ों में चराने ले जाना अच्छा लगता है.” हालांकि, भारत-चीन सीमा पर तनाव के कारण इन खानाबदोशों की जिंदगी पहले की तुलना में और ज्यादा मुश्किल हो गई है.
डोल्मा ने डीडब्ल्यू को बताया कि उनके परिवार के लिए जीवन कठिन हो गया है क्योंकि भारतीय सेना ने क्षेत्रीय विवाद के कारण भारत-चीन सीमा के पास चराई पर प्रतिबंध लगा दिया है. वह कहती हैं, "सीमा के पास काफी अच्छे चरागाह हैं. अब हम अपने मवेशियों को चराने के लिए वहां नहीं ले जा सकते हैं.”
डोल्मा की 37 वर्षीय बेटी त्सेरिंग लामो भी इन्हीं चिंताओं को दोहराती हैं. वह कहती हैं, "सैन्य तनाव की वजह से प्रतिबंध लगने से खानाबदोश रहना अब सुखद नहीं है. अब हमारा जीवन काफी कठिन हो गया है. मेरा मानना है कि युवा लोगों के लिए अन्य नौकरियां करना बेहतर है.”
भारत-चीन सीमा विवाद का इतिहास
चुशुल गांव भारत और चीन के बीच वास्तविक सीमा से करीब 8 किलोमीटर दूर है. इस सीमा को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के नाम से भी जाना जाता है. जब 1962 में अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाके पर दावे को लेकर भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था, तब समुद्र तल से काफी ज्यादा ऊंचाई पर स्थित यह गांव और यहां रहने वाले लोग भी प्रभावित हुए थे.
यह युद्ध एक महीने से ज्यादा समय तक चला था. चीन द्वारा युद्ध विराम की घोषणा करने और अक्साई चिन पर संप्रभुता का दावा करने के साथ यह युद्ध समाप्त हुआ था.
हालांकि, भारत और चीन ने 1960 के दशक से सिर्फ एक बड़ा युद्ध लड़ा है, लेकिन एलएसी पर कभी-कभार दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प की खबरें आती रहती हैं. भारत का दावा है कि एलएसी 3,488 किलोमीटर लंबा है. वहीं, चीन का कहना है कि यह छोटा है.
मई 2020 में, गलवान नदी घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई झड़प में कम से कम 20 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई थी. बाद में चीन ने पुष्टि की थी कि उसके चाइव इवेंट में फटी रह गई फैंस की आंखें, देखें लेटेस्ट Hot Photos