कोरोना वायरस लॉकडाउन के बीच अच्छी खबर, वैज्ञानिकों का दावा- बंद हुआ आर्कटिक के ऊपर Ozone Layer का सबसे बड़ा होल
प्रतीकत्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) से पूरी दुनिया लड़ रही है और इसके लिए तमामा देशों ने लॉकडाउन (Lockdown) का रास्ता अपनाया है. कोरोना वायरस लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown) के चलते लोग अपने घरों में कैद हो गए हैं, लेकिन इस बीच पर्यावरण को लेकर पूरे विश्व के लिए एक अच्छी खबर सामने आ रही है. वैज्ञानिकों (Scientists) ने दावा किया है कि ओजोन लेयर में बना छेद अब भरने लगा है. वैज्ञानिकों की मानें तो असामान्य वायुमंडलीय परिस्थितियों की वजह से यूनाइटेड किंगडम में आर्कटिक (Arctic) के ऊपर ओजोन लेयर (Ozone Layer Holi) का सबसे बड़ा होल बंद हो गया है. खबरों के अनुसार, इस साल मार्च महीने में वैज्ञानिकों ने पहली बार इस छेद की पहचान की थी. यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्ट (ECMWF) द्वारा कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (C3S) और कोपरनिकस एटमॉस्फियर मॉनिटरिंग सर्विस (CAMS) ने ओजोन लेयर होल के बंद होने की पुष्टि की है.

कोपरनिकस ECMWF के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल पर इस बात की जानकारी दी गई है कि 2020 उत्तरी गोलार्ध ओजोन होल समाप्त हो गया है. वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि आर्कटिक के ऊपर ओजोन परत में एक मिलियन वर्ग किलोमीटर चौड़ा छेद ठीक हो गया है. हालांकि उनका यह भी कहना है कि कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान प्रदूषण के स्तर में आई कमी के कारण यह छेद बंद नहीं हुआ है, बल्कि माना यह जा रहा है कि ध्रुवीय क्षेत्रों में ठंडी हवा लाने वाले ध्रुवीय भंवर, उच्च ऊंचाई वाली धाराएं इस ओजोन लेयर होल को बंद करने में मददगार साबित हुई हैं. यह भी पढ़ें: लॉकडाउन इफेक्ट: गंगा में घटा प्रदूषण का स्तर, ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला के पास इस पवित्र नदी के बहते साफ पानी का वीडियो हुआ वायरल

वैज्ञानिकों ने यह साफ तौर पर कहा है कि कोरोना वायरस प्रकोप के चलते दुनिया के अधिकांश देशों में लागू लॉकडाउन के कारण ओजोन लेयर पर कोई असर नहीं पड़ा है. बता दें कि वैज्ञानिकों ने उत्तरी ध्रुव के ऊपर ओजोन परत पर एक छेद बनने के संकेत देखे थे, जिसे ओजोन परत का सबसे बड़ा छेद माना जाता है.

ओजोन परत पृथ्वी के मंडल में एक क्षेत्र है जो सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणों (पराबैंगनी किरणें) को पृथ्वी पर आने से रोकती है. सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणें बेहद हानिकारक होती हैं, जो स्किन कैंसर समेत त्वचा संबंधी कई रोगों का कारण बन सकती हैं. साल 1970 के दशक में वैज्ञानिकों ने यह पाया था कि मानव निर्मित गतिविधियों की वजह से ओजोन परत समाप्त हो रही है, जिससे पृथ्वी पर मानव जीवन के लिए खतरा पैदा हो गया है.