स्कूली पढ़ाई पर बहुत बुरी पड़ रही है ग्लोबल वॉर्मिंग की मार
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अप्रैल में इतनी गर्मी पड़ी कि एशिया के कई देशों में स्कूल बंद करने पड़े. यह सिर्फ एक झांकी है कि कैसे जलवायु परिवर्तन बच्चों की पढ़ाई को प्रभावित कर सकता है.अप्रैल लगातार 11वां महीना रहा जब सबसे ज्यादा गर्मी के ऐतिहासिक रिकॉर्ड टूटे. एशिया में कुछ देशों में बारिश का मौसम शुरू हो गया है, जिससे गर्मी में राहत मिली है. लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि अभी समस्याएं खत्म नहीं हुई हैं और बहुत से देश जलवायु परिवर्तन के कारण शिक्षा और बच्चों पर होने वाले प्रभाव से लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं.

एशिया में तापमान पूरी दुनिया के औसत से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है. जलवायु परिवर्तन के कारण अन्य हिस्सों के मुकाबले इस महाद्वीप में ताप लहरें कहीं ज्यादा लंबी, तेज और तीव्र हो रही हैं. लेकिन गर्मी ही एकमात्र चुनौती नहीं है.

ज्यादा गर्म वातावरण में नमी भी ज्यादा होती है इसलिए बारिश और बाढ़ का खतरा भी ज्यादा होता है. इससे स्कूलों की इमारतों को नुकसान होता है. वे बच्चों की पढ़ाई के लिए सुरक्षित नहीं रह जाती. इसके अलावा बाढ़ या अन्य मौसमी आपदाएं आने पर स्कूलों की इमारतों को शिविरों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, लिहाजा पढ़ाई प्रभावित होती है.

गर्मी के कारण जंगलों की आग और वायु प्रदूषण भी बढ़ता है. हाल में भारत से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक तमाम देशों में प्रदूषण के कारण स्कूल बंद करने पड़े हैं. संयुक्त राष्ट्र की बच्चों के लिए काम करने वाली एजेंसी यूनिसेफ ने पिछले साल चेतावनी दी थी, "जलवायु परिवर्तन का संकट पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र के बच्चों के लिए एक सच्चाई बन चुका है."

झुलसते बच्चे

13 साल की महुआ अख्तर नूर इस संकट का जीता-जागता उदाहरण हैं. बांग्लादेश की राजधानी ढाका में उसका स्कूल बंद हो गया है. अब वह एक कमरे के अपने घर में तपती दोपहरी बिताती हैं. बिजली आती-जाती रहती है, इसलिए गर्मी से बचने के लिए उन्हें पंखे तक की राहत नहीं है.

नूर बताती हैं, "गर्मी असहनीय हो गई है. हमारा स्कूल बंद हो गया है. मैं घर पर भी नहीं पढ़ सकती.”

बांग्लादेश में समाजसेवी संस्था सेव द चिल्ड्रन के निदेशक शुमोन सेनगुप्ता कहते हैं, "ना सिर्फ तापमान अधिक है बल्कि उसके अधिक बने रहने की अवधि भी ज्यादा है. पहले कुछ ही इलाकों में ऐसी ताप लहर चलती थी. अब ऐसे इलाके कहीं ज्यादा हो गए हैं.”

एशिया के अधिकतर स्कूल इस बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं. सेनगुप्ता कहते हैं कि बांग्लादेश के स्कूल मजबूत तो हैं लेकिन अक्सर वहां भीड़ क्षमता से ज्यादा होती है और हवा के आने-जाने की सुविधा कम है.

ग्रामीण इलाकों में स्कूलों की टीन की छतें तो कमरों को भट्ठी में तब्दील कर देती हैं, जिनमें पंखे भी काम नहीं करते. एशिया के बहुत से देशों में ग्रामीण इलाकों में बच्चे पैदल स्कूल जाते हैं. इससे हीट स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए सरकारें स्कूल बंद करने जैसे कदम उठाती हैं.

चारों तरफ से मार

स्कूल बंद करने के भी बड़े नुकसान हैं, खासकर गरीब और कमजोर तबकों से आने वाले बच्चों के लिए. पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में यूनिसेफ की स्वास्थ्य विशेषज्ञ साल्वा एलेरयानी कहती हैं, "इन बच्चों को कंप्यूटर, इंटरनेट और किताबों जैसे संसाधन उपलब्ध नहीं हैं. इनके घरों में भी ताप लहर से सुरक्षा के इंतजाम अच्छे नहीं होते.”

जलवायु परिवर्तन ने स्कूली शिक्षा को कई तरह से प्रभावित किया है. म्यांमार में यूनिसेफ के एक शोध में पाया गया कि मौसमी आपदाओं के कारण जब खेती और रोजगार प्रभावित होते हैं तो माता-पिता बच्चों को स्कूल से निकाल लेते हैं क्योंकि वे खर्च वहन नहीं कर पाते.

क्षेत्र के कुछ धनी देशों ने जलवायु परिवर्तन से शिक्षा को बचाने के लिए कदम भी उठाए हैं. जैसे जापान में 2018 तक आधे से कम स्कूलों में एयर कंडिशनर थे लेकिन 2022 तक यह संख्या बढ़कर 95 फीसदी हो गई.

लेकिन गरीब देशों में ये सुविधाएं नहीं हैं और उनके बच्चों की शिक्षा प्रभावित होने के खतरे और उसके नुकसान कहीं ज्यादा हैं. सेनगुप्ता कहते हैं, "यह बेहद जरूरी है कि सरकारें और नीति निर्माता इस बारे में तुरंत कदम उठाएं.”

वीके/एए (एएफपी)