बहुत ऊंचाई पर बहने वाली हवा अक्सर अक्षय ऊर्जा का ऐसा स्रोत है जिसका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. हालांकि इस स्रोत तक पहुंचने के लिए कोशिशें तेजी से जारी हैं.किसी बच्चे के लिए पतंग उड़ाने का काम बेहद रोमांचक होता है, दौड़ना और मांझे को खींचना ताकि वो हवा में और ऊपर जाए, इतना ऊपर जहां वो अपनी ही धुन पर नाच सके.
युवा कल्पनाओं को लुभाने वाली वही हवाएं अब उन शोधकर्ताओं पर भी जादू दिखा रही हैं जो ऊंचाई वाली हवाओं पर काम कर रहे हैं. 200 मीटर या उससे भी ज्यादा ऊंचाई पर हवाएं जमीन के आस-पास की तुलना में काफी तेज होती हैं.
ये हवाएं इतनी तेज होती हैं कि हम इनसे अपनी जरूरत से ज्यादा बिजली पैदा कर सकते हैं. वास्तव में जितना हम जमीन पर टर्बाइन चलाकर हवा से बिजली पैदा करते हैं, उससे भी ज्यादा. हवा की रफ्तार के दोगुना हो जाने से वह आठ गुना ज्यादा बिजली पैदा कर सकती है.
एक पवनचक्की लगाने में 7 साल का वक्त
यूनिवर्सिटी ऑफ फ्राइबुर्ग में माइक्रोसिस्टम इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख मोरित्स डील कहते हैं कि ऊंचाई वाली हवाओं का उपयोग भविष्य में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन की ‘सबसे आशाजनक' तकनीक है.
वो कहते हैं, "आप परंपरागत टर्बाइनों के ऊपर सारा आकाश देखते हैं और आपको लगता है कि ये सारी पवन ऊर्जा सिर्फ यहीं बह रही है और यह इस्तेमाल नहीं हो रही है.”
जर्मन पवन ऊर्जा कंपनी स्काईसेल्स-पॉवर के सीईओ स्टीफेन रेज इसे बदलना चाहते हैं और ‘अब तक के इस सबसे बड़े अप्रयुक्त अक्षय ऊर्जा स्रोत को दुनिया भर में' व्यापक इस्तेमाल के लिए पहुंचाना चाहते हैं.
ऐसा करने वाले वो अकेले नहीं हैं. कई साल से, इंजीनियर, कई स्टार्ट अप्स और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां ऊंचाई वाली हवाओं को कम कीमत पर जमीन पर उतारने की होड़ में लगी हुई हैं. कई तो इस प्रयास में असफल हो चुके हैं और कुछ तो दिवालिया तक हो चुके हैं. लेकिन अन्य लोग अपने फ्लाइंग पॉवर प्लांट को मार्केट में लाने के लिए लगभग तैयार हैं.
फ्लाइंग विंड टर्बाइन
इस तरह ध्यान आकर्षित वाले पहले प्रोजेक्ट को अमरीकी कंपनी अल्टेरॉस ने साल 2010 में लॉन्च किया था. उनका प्रोटोटाइप हीलियम गुब्बारे से लगा एक जेनरेटर था या यों कहें कि यह बिना किसी भारी आधार और टॉवर का एक विंड टर्बाइन था.
इसका परीक्षण अलास्का में किया गया और इसे जमीन से एक केबल के जरिए कनेक्ट किया गया था. कंपनी के मुताबिक, इसके जरिए 600 मीटर की ऊंचाई पर करीब पचास परिवारों के लिए बिजली पैदा की गई.
3 साल में पवन ऊर्जा क्षमता को दोगुना करेगी चीन
लगभग उसी समय जर्मन कंपनी स्काईसेल्स ने पूरे कंटेनर शिप्स को खींचने के लिए हाई-अल्टीट्यूड पतंग बनाया. इसके पीछे विचार था कि इंजन चलाने के लिए दस फीसदी तक डीजल बचाया जा सकता है.
हालांकि पतंग के साथ परीक्षण सफल रहा लेकिन शिपिंग कंपनी दिवालिया हो गई और ना तो पतंग और ना ही हीलियम विंड टर्बाइन बाजार में जगह बना सके. हालांकि इन दोनों प्रोटोटाइप्स ने एक बात की ओर इशारा किया- अत्यंत ऊंचाई पर हवाओं को काटने के लिए फ्लाइंग पॉवर प्लांट की जरूरत होती है.
गूगल के निवेश से प्रचार हुआ लेकिन काम नहीं
अब यहां गूगल कदम रखती है. 2013 में इस बड़ी टेक कंपनी ने अमरीका की एयरबोर्न विंड एनर्जी कंपनी मकानी को खरीदा. कितने में खरीदा, यह पता नहीं है लेकिन इस खरीद ने इस क्षेत्र में तहलका मचा दिया. एक छोटे विमान के आकार का इनका फ्लाइंग पॉवर प्लांट करीब तीन सौ मीटर की ऊंचाई पर पहुंचा दिया गया जहां एक स्वचालित लूप में वो लगातार चक्कर लगाने लगा.
हवा की तेज गति ने पंखों पर लगे पहियों को चलाया जिससे बिजली पैदा हुई. उस समय मोरित्स डील सोच रहे थे कि ये एक वाहियात आईडिया है लेकिन यह आईडिया काम कर गया. मकानी कहते हैं कि सिर्फ एक फ्लाइंग पॉवर प्लांट ने तीन सौ परिवारों के लिए पर्याप्त बिजली पैदा कर दी.
ऐसा लग रहा था कि हर कोई सफलता की प्रतीक्षा कर रहा था जब तक कि यह यंत्र टेस्ट मिशन के दौरान समुद्र में क्रैश नहीं कर गया. गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट ने बाद में इस परियोजना को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं है.
पर्याप्त पवन ऊर्जा आखिर मिलेगी कहां
यह अंत नहीं था, बल्कि शुरुआत थी
मकानी के अंत का मतलब हवाई पवन ऊर्जा का अंत नहीं था. कई स्टार्टअप इस दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं जो कम सामग्री के उपयोग से छोटे उपकरण बना रहे हैं. कुछ ने तो मकानी के ही दृष्टिकोण को अपनाया है जबकि दूसरों ने अपने ड्रोन को एक रस्सी से जोड़ा है जो कि जेनरेटर को खींच रहा है. कुछ दूसरे भी इसी तरह कर रहे हैं, फर्क सिर्फ यह है कि वो ड्रोन की जगह पतंग का इस्तेमाल कर रहे हैं.
इन्हीं में से एक है स्काईसेल्स-पॉवर- दिवालिया जर्मन कंपनी की उत्तराधिकारी जो कि पतंग का इस्तेमाल कर रही है. ऊर्जा उत्पादन में विशेषज्ञता के साथ इसने एक और उपकरण बनाया है जो बिजली उत्पन्न करने के लिए ‘पंपिंग साइकिल' का उपयोग करता है. पतंग अपने आप उड़ती है, खुद को हवा के खिलाफ निर्देश देती है और एक जेनरेटर से रस्सी को खोलती है. यह 8 की आकृति में उड़ते हुए लगातार रस्सी को खींचती है और इसी से बिजली पैदा होती है.
पतंग को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह कई घंटे, कई दिन और यहां तक कि हफ्ते हवा में रह सकती है. खराब मौसम या फिर खतरनाक स्थिति में एक अलार्म बजता है और इसे वापस बुलाया जा सकता है.
मौजूदा पवन ऊर्जा को बदलने कि लिए डिजाइन नहीं किया गया है
हालांकि इस क्षेत्र में काफी निवेश और एअर ट्रैफिक से संबंधित कई तरह के क्लियरेंस की जरूरत है, लेकिन रेज (Wrage) कहते हैं कि यह तकनीक दुनिया भर में 1.4 अरब लोगों की मदद कर सकती है जो बिना बिजली के रहते हैं और अपने घरों को रोशन करने के लिए अक्सर डीजल वाले जेनरेटर का इस्तेमाल करते हैं.
विंड इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के एक अध्ययन के मुताबिक, हवाई पवन ऊर्जा डीजल की तुलना में काफी सस्ती हो सकती है और यहां तक कि परंपरागत पवन ऊर्जा से भी ज्यादा सस्ती हो सकती है.
स्काईसेल्स-पॉवर इस समय इस क्षेत्र की अग्रणी कंपनी है. कंपनी ने अपनी पहली यूनिट मॉरिशस को बेची है. कंपनी पूर्वी अफ्रीका में एक हाई-अल्टीट्यूड विंड हब बनाना चाहती है और समुद्र तट पर काइट विंड फार्म्स का संचालन करना चाहती है.
स्काईसेल्स का कहना है कि इस तरह की सिर्फ एक पतंग पांच सौ परिवारों तक के लिए बिजली पैदा कर सकती है और इसमें परंपरागत विंड टर्बाइन्स की तुलना में 90 फीसदी कम चीजों की जरूरत पड़ती है. इसके अलावा और भी कई फायदे हैं. इसे किसी एक जगह पर फिक्स करने की भी जरूरत नहीं पड़ती.
डील कहते हैं, "आप इन्हें जंगल के ऊपर भी ऑपरेट कर सकते हैं. यदि ऊपर पक्षियों का झुंड जा रहा हो तो आप इनके ऑपरेशन को उस वक्त बंद भी कर सकते हैं या फिर पतंग को नीचे उतार सकते हैं.”
डेल्फ्ट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में एरोस्पेस इंजीनियरिंग रिसर्चर ऋषिकेश जोशी कहते हैं, "तकनीक में बदलाव लाने में अभी भी कुछ साल लग जाएंगे. पवन ऊर्जा उद्योग को भी इतना सस्ता बनने में करीब चालीस साल लग गये.”
इस बीच, परंपरागत टर्बाइन अपना काम कर रही हैं. और हवाई पवन ऊर्जा सेक्टर के इतने एडवांस होने के बावजूद, मौजूदा टर्बाइनों को बदलने का कोई विचार नहीं है बल्कि आईडिया यह है कि हवा का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो.