दुनिया भर के वैज्ञानिक लंबे इंतजार के बाद आखिरकार गुरुत्वीय तरंगों की गूंज को सुनने में सफल हुए हैं. कम आवृत्ति वाली ये तरंगें ब्लैक होल की टक्करों के कारण पैदा होती हैं.पहली बार इन तरंगों की गूंज सुन कर वैज्ञानिक बहुत उत्साहित हैं. करीब दो दशकों से वैज्ञानिक इसके लिए कोशिश कर रहे थे. इसके लिए उन्होंने तेजी से घूमते तारों पर नजर गड़ा रखी थी. ये तारे किसी लाइट हाउस की तरह स्पंदन करते हैं और इन्हें पल्सर कहा जाता है. वास्तव में ये पल्सर उच्च चुंबकीय शक्ति वाले न्यूट्रॉन स्टार हैं जो अपने ध्रुवों से विद्युत चुंबकीय तरंगों का उत्सर्जन करते हैं.
आइंस्टीन के सिद्धांत की पुष्टि
वैज्ञानिक इनमें गुरुत्वीय तरंगों के कारण उत्पन्न होने वाले नैनोसेकेंड पल्स की देरी ढूंढ रहे थे. इसके जरिए अल्बर्ट आइंस्टाइन के सापेक्षता के सिद्धांत की थोड़ी और पुष्टि हो सकती है. 2015 में वैज्ञानिकों ने गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाने के लिए एक प्रयोग किया था. इसमें पहली बार आइंस्टाईन के प्रयोग की पुष्टि हुई थी.
सूर्य से 30 अरब गुना बड़े ब्लैक होल की खोज
हालांकि अब तक वैज्ञानिक इन तरीकों से सिर्फ उच्च आवृत्ति वाली तरंगों को ही पता लगा सके थे. लेकिन वो छोटे ब्लैक होल की गति से पैदा होती थीं. इस बार वैज्ञानिकों ने विशालकाय ब्लैक होल की गति से पैदा होने वाली कम आवृत्ति की तरंगों का पता लगाया है. ये इतनी धीमी हैं कि एक तरंग की आवृत्ति के पूरा होने में साल या दशक भर का समय लग सकता है.
क्या हैं गुरुत्वीय तरंगें
1916 में आइंस्टाइन ने अंतरिक्ष के समय (स्पेसटाइम) को चार आयाम वाली संरचना के रूप में प्रस्तावित किया था. तारों में विस्फोट या फिर ब्लैक होल की टक्कर से इस संरचना में स्पंदन या फिर गुरुत्वीय तरंगें पैदा होती हैं.
ऑस्ट्रेलियाई रिसर्चर डैनियल रियरडॉन का कहना है कि गुरुत्वीय तरंगें पृथ्वी के ऊपर से गुजरती हैं और ये तेज पल्सरों की आवृत्ति का क्रम बदल देती हैं. रियरडॉन का कहना है, "हम अपेक्षित समय से पहले या देर से आने वाले स्पंदनों के जरिये गुरुत्वीय तरंगों का पता लगा सकते हैं. पहले के रिसर्चों में पल्सर के व्यूह में पहेलीनुमा संकेत दिखे थे लेकिन इनकी उत्पत्ति का पता नहीं चल सका था."
अंतरिक्ष में दिखा अचूक धमाका
रियरडॉन ने यह भी कहा, "हमारी नई रिसर्च ने इसी तरह के संकेत उन पल्सरों में देखे हैं जिनका हम अध्ययन कर रहे थे और अब हम ऐसे कुछ निशान देख सकते हैं जो इनके गुरुत्वीय तरंग होने की पहचान कर रहे हैं."
विस्कॉन्सिन मिलवाउकी यूनिवर्सिटी की सारा विगेलैंड का कहना है कि अब वैज्ञानिकों के पास गुरुत्वीय तरंगों के सबूत हैं तो अगला कदम इस गुंजन पैदा करने वाले स्रोत को ढूंढना होगा. विगेलैंड का कहना है, "एक संभावना तो यह है कि ये संकेत विशालकाय ब्लैक होल से आ रही हैं, ये हमारे सूरज की तुलना में करोड़ों या अरबों गुना बड़े होने चाहिए, क्योंकि ये विशालकाय ब्लैक होल एक दूसरे की परिक्रमा करते हुए कम आवृ्त्ति वाली गुरुत्वीय तरंगें पैदा करते हैं."
अमेरिका और कनाडा के 190 से ज्यादा वैज्ञानिक इस रिसर्च में जुटे हुए थे. यह रिसर्च नॉर्थ अमेरिकन नैनोहर्त्ज ऑब्जरवेटरी फॉर ग्रैविटेशनल वेव्स कोलैबरेशन का हिस्सा है. यूरोप, भारत और चीन में स्वतंत्र रूप से टेलिस्कोप का इस्तेमाल कर रहे अंतरराष्ट्रीय समूहों ने भी इसी तरह के नतीजे हासिल किये हैं.
असली परीक्षा अभी बाकी
इस रिसर्च के नतीजों के बारे में रिपोर्ट एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में छपी है. ऑस्ट्रेलियाई अंतरिक्षविज्ञानी एंड्रयू जिक का कहना है कि सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समूहों ने तरंगों के संकेत देखे हैं लेकिन असली परीक्षा तब होगी जब सभी आंकड़ों को मिला कर वैश्विक आंकड़े तैयार किये जाएंगे.
जिक का कहना है, "यह संकेत पल्सर के क्रम में लंबे समय मे होने वाले परिवर्तनों की वजह से भी हो सकते हैं या फिर महज एक सांख्यिकीय अनायास घटना."
ब्लैकहोल की गति ब्रह्मांड में हर चीज को खींचती या फिर सिकोड़ती है. इन विशाल ब्लैकहोल के इधर-उधर होने के कारण ब्रह्मांड के तंतुओं में बदलाव होता है और इस दौरान गुरुत्वीय तरंगें को महसूस किया जा सकता है. वैज्ञानिक इसे कभी कभी ब्रह्मांड के बैकग्राउंड म्यूजिक जैसा बताते हैं.
एनआर/एसबी (डीपीए, एपी)