नासा के परसिवेरेंस रोवर ने मंगल ग्रह पर प्राचीन जीवन के पहले 'संभावित' संकेत खोजे हैं. यह खोज एक एरोहेड आकार की चट्टान में की गई है, जिसमें नसों जैसी संरचनाएं दिखाई दे रही हैं.
वैज्ञानिकों ने पाया कि इस चट्टान में रासायनिक संकेत और संरचनाएं हैं जो अरबों साल पहले सूक्ष्मजीव जीवन द्वारा बनाई गई थीं. रोवर ने इन तस्वीरों को पृथ्वी पर भेजा, जिससे पता चला कि मंगल की सतह पर पानी बहने से क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ बचे हुए हैं और एक लाल क्षेत्र में जैविक यौगिक और ऊर्जा स्रोत थे, जो 'सूक्ष्मजीव जीवन' के लिए उपयोगी हो सकते थे.
इस चट्टान का माप 3.2 फीट बाय 2 फीट है और इसे ग्रैंड कैन्यन के एक झरने, चायावा फॉल्स, के नाम पर रखा गया है.
Was Mars home to microscopic life in the distant past?
An intriguing rock spotted by @NASAPersevere has qualities that fit the definition of a possible indicator of ancient life. But what did we find, and how will we know for sure? https://t.co/vMJScXhqYy pic.twitter.com/KZUIHWwxDY
— NASA Mars (@NASAMars) July 25, 2024
परसिवेरेंस रोवर ने यह नसों वाली एरोहेड आकार की चट्टान देखी, जिसमें सूक्ष्मजीव जीवन द्वारा बनाई गई रासायनिक संरचनाएं थीं. चायावा फॉल्स अब तक की सबसे पेचीदा, जटिल और संभावित रूप से महत्वपूर्ण चट्टान है जिसे परसिवेरेंस ने जांचा है."
ये जैविक सामग्री का पहला ठोस संकेत है, रंग-बिरंगे धब्बे जो रासायनिक प्रतिक्रियाओं का संकेत देते हैं, जिनका उपयोग सूक्ष्मजीव ऊर्जा स्रोत के रूप में कर सकते हैं और स्पष्ट सबूत कि जीवन के लिए आवश्यक पानी कभी इस चट्टान से गुजरा था.
परसिवेरेंस ने यह चट्टान 21 जुलाई को उत्तरी नेरेटवा वल्लिस की खोज करते हुए एकत्र की थी, जो एक प्राचीन नदी घाटी है, जिसे जलप्रवाह ने जेज़ेरो क्रेटर में तराशा था, जो 3.7 अरब साल पहले एक झील थी. टीम ने नसों जैसी संरचनाओं को देखा, जो सफेद कैल्शियम सल्फेट थीं.
मंगल की सतह पर क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ कठोर पानी के जमाव होते हैं जो प्राचीन भूजल के बहाव से बच गए हैं. इन नसों के बीच लाल रंग का एक क्षेत्र था, जो हैमाटाइट की उपस्थिति का संकेत देता है, जिसकी वजह से मंगल का रंग लाल है.
NASA ने बताया कि गहरे लाल क्षेत्र की गहरी जांच से 'दर्जनों अनियमित आकार के मिलीमीटर आकार के सफेद धब्बे मिले, प्रत्येक के चारों ओर काला पदार्थ, था जैसे तेंदुए के धब्बा होता है.'
परसिवेरेंस ने एक्स-रे टूल से इन धब्बों की जांच की, जिससे पता चला कि काले हलो में लोहे और फॉस्फेट शामिल थे. परसिवेरेंस विज्ञान टीम ने अभी तक एक ठोस निष्कर्ष नहीं निकाला है, लेकिन संभावना है कि चायावा फॉल्स को शुरू में जैविक यौगिकों के साथ मिलकर मिट्टी के रूप में जमा किया गया था, जो अंततः चट्टान में बदल गई. बाद में, तरल प्रवाह का दूसरा प्रकरण चट्टान की दरारों में प्रवेश किया, जिससे बड़े सफेद कैल्शियम सल्फेट की नसें बन गईं और धब्बे उत्पन्न हुए.
तेंदुए के धब्बे जैसे निशान प्राचीन जीवन के संकेत हो सकते हैं. ओलिविन संभवतः उन चट्टानों से संबंधित हो सकता है जो नदी घाटी के किनारे पर अधिक ऊंचाई पर बनी थीं और मैग्मा के क्रिस्टलीकरण द्वारा बनाई गई थीं. विज्ञानिकों की टीम अब चायावा फॉल्स नमूने को पृथ्वी पर वापस लाने की उम्मीद कर रही है, ताकि इसे प्रयोगशालाओं में उपलब्ध शक्तिशाली उपकरणों से अध्ययन किया जा सके.