प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)
नए अध्ययन से पता चला है कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर अंतरिक्ष यात्रियों के इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरोध प्रणाली में कमजोरी आ जाती है. अच्छी बात ये है कि धरती पर लौट आने के बाद उनकी सेहत फिर से सामान्य हो जाती है.अंतरिक्ष की उड़ानें इंसानों के लिए एक सख्त, कड़ा अनुभव है. पहले तो वो कॉस्मिक विकिरण है जिसकी बौछारों से देह हिल जाती है और फिर माइक्रोग्रैविटी यानी शून्य गुरुत्व शरीर के द्रवों (तरल पदार्थों) और रक्तचाप में खलल डाल सकता है. दूसरा, सिकुड़ी हुई जगहों में ही महदूद रहने का असर भी शरीर पर पड़ता है और दोस्तों और परिजनों से दूरी भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है.
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अंतरिक्ष यात्री सबसे ज्यादा चुस्तदुरुस्त लोगों में भी सर्वोपरि होते हैं. वर्षों तक ऐसी स्थितियों से जूझने के लिए वे प्रशिक्षण लेते हैं, लेकिन इतना सब करने के बाद भी अंतरिक्ष में उन्हें स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है. इन समस्याओं की पहचान हो जाने के बाद अब चिकित्सा दुनिया की एक नई ही शाखा सामने आ गई है, जिसे कहा जाता है- स्पेस हेल्थ यानी अंतरिक्ष स्वास्थ्य.
स्पेस हेल्थ रिसर्च से मजबूत होगा स्पेस पर्यटन
स्पेस हेल्थ रिसर्च के जरिए ये तथ्य पता चल पाए हैं कि अंतरिक्ष की कम अवधि और लंबी अवधि की उड़ानों से शरीर के कमोबेश हर तंत्र पर- हृदय, रक्त संचार, पाचन, मांसपेशियों, हड्डियों से जुड़े तंत्रों से लेकर प्रतिरोध प्रणालियों तक, असर पड़ता है.
माइक्रोग्रैविटी की वजह से अंतरिक्ष में स्वास्थ्य देखरेख पेचीदा हो जाती हैः मिसाल के लिए, अगर किसी व्यक्ति को अंतरिक्ष उड़ान के दौरान दिल का दौरा पड़ जाए, तो छाती पर दबाव देने में मददगार किसी ठोस और कड़ी जमीन के बगैर, कार्डीओपुल्मनेरी रिससीटैशन (सीपीआर) कैसे दिया जा सकता है?
धरती पर, इस किस्म का प्राथमिक उपचार आमतौर पर फर्श पर लेटा कर दिया जाता है. लेकिन अंतरिक्ष में हर चीज तैरती है, तो दबाव देकर हृदय की धड़कनें लौटाना लगभग नामुमकिन हो जाता है. कुछ वर्क-अराउंड यानी कसरतें हैं, स्ट्रैपों की मदद से या दूसरे तरीके भी हैं. कोलोन मेडिकल कॉलेज के स्पेस हेल्थ रिसर्चर योखन हिन्केलबाइन डीडब्लू को बताते हैं कि अंतरिक्ष यात्री स्पेस में सीपीआर कैसे देते हैं, ये एक महत्वपूर्ण ज्ञान है.
सिर्फ पेशेवर अंतरिक्ष यात्री ही ऐसी चिंताओं से नहीं जूझते. मनुष्यता इस समय अंतरिक्ष पर्यटन के शीर्ष पर है. किसी व्यापक ट्रेनिंग के बगैर, जो लोग खर्च उठा सकते हैं वे अंतरिक्ष की नियमित छोटी उड़ानों में आवाजाही की रफ्तार बढ़ाएंगे. नतीजतन, अंतरिक्ष उड़ान के दौरान यात्रियों या पर्यटकों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए, दुनिया को स्पेस हेल्थ इंडस्ट्री की जल्द ही दरकार होगी.
धरती से साथ जाती बीमारी
फिलवक्त, स्पेस हेल्थ का ध्यान पेशेवर अंतरिक्ष अभियानों पर ही केंद्रित है जो वहां छह से 12 महीने की अवधि के होते हैं. लंबी अवधि के अंतरिक्ष अभियानो में एस्ट्रोनॉट जिन सबसे आमफहम स्थितियों का सामना करते हैं उनका संबंध प्रतिरोधक प्रणाली की कमजोरी या शिथिलता से है.
शोध दिखाता है कि अंतरिक्ष यात्री, वायरस संक्रमणों की चपेट में भी आ सकते हैं और आमतौर पर पुराने वायरस ही हैं जो किसी अंतरिक्षयात्री के शरीर में धरती से ही घुसे बैठे रहते हैं.
कनाडा की ओटावा यूनिवर्सिटी से ओडेटे लानेइयुविले का कहना है, "हम लोगों ने सुप्त पड़े वायरसों और ग्रंथियों (सिस्ट) के दोबारा सक्रिय होने की प्रवृत्ति को नोट किया है, त्वचा के संक्रमण भी उभर आते हैं."
एक उदाहरण चेचक का है. ये बीमारी एक किस्म के हरपीज वायरस से होती है. इस वायरस का नाम है वारिसेला-जोस्टर. लोग बचपन में अक्सर पहले चेचक से संक्रमित होते हैं. प्रतिरोधक प्रणाली इस इंफेक्शन पर काबू पा लेती है. लेकिन वायरस शरीरों में सुप्त अवस्था में वायरोम के रूप में निष्क्रिय पड़ा रहता है.
ह्यूमन वाइरोम शरीर में रहने वाले वायरसों के समूह को कहते हैं. उनमें अच्छे वायरस भी होते हैं, जिन्हें बैक्टीरियोफेज कहा जाता है, जो हानिकारक बैक्टीरिया को मारकर हमारी सुरक्षा करते हैं. लेकिन वायरोम में खराब वायरस भी रहते हैं.
निष्क्रिय या सुप्त वायरस अंतरिक्ष में तनाव के दौरान फिर से सक्रिय हो सकते हैं, इसकी आंशिक वजह ये है कि प्रतिरोधक प्रणाली तनाव से कमजोर पड़ जाती है. और अगर वारिसेला-जोस्टर वायरस रिएक्टिवेट हो जाता है तो वो एक किस्म का त्वचा-रोग (शिंगगल्स) पैदा कर देता है जो एक गंभीर बीमारी है.
लेकिन लानेइयुविले के मुताबिक अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक अच्छी खबर ये है कि ऐसे संक्रमणों की मियाद बहुत कम समय की होती है. अंतरिक्ष यात्री के धरती पर लौट आने के कुछ समय बाद ही ये खुदबखुद ठीक हो जाते हैं, चार से पांच हफ्तों में प्रतिरोधक तंत्र भी सामान्य रूप से काम करने लगता है.
अध्ययन में दर्ज अंतरिक्ष यात्रियों की प्रतिरोधक प्रतिक्रिया
जून 2023 में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक लानेइयुविले का लक्ष्य ये जानना था कि क्यों और कैसे हरपीज जैसे वायरस, अंतरिक्ष उड़ान के दौरान फिर से सक्रिय हो उठते हैं. उनकी टीम ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर छह महीने की अवधि के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों की प्रतिरोधक प्रणालियों में बदलावों की जांच की. उन्होंने इसके लिए अंतरिक्ष यात्रियों के इम्यून ट्रांस्क्रिप्टोम्स से मिले डाटा को जमा किया.
एक ट्रांस्क्रिप्टोम, मनुष्य जीन्स में होने वाले तमाम बदलावों को दर्ज करता है. जीन, और जो डीएनए उनमें होता है, वे पर्यावरण के प्रति हाइली रिस्पॉन्सिव होते हैं- यानी वे जैसे अभिव्यक्त होते हैं वैसे ही बदल जाते हैं- और इस तरह शरीर अलग अलग स्थितियों में ढल पाता है.
उदाहरण के लिए, वायरसों के खिलाफ संघर्ष से संबद्ध जीन्स उसी क्षण "स्विच ऑन" यानी जागृत हो जाते हैं जैसे ही प्रतिरोधक प्रणाली किसी संक्रमण को रोकने के लिए सक्रिय होती है.नतीजतन, अंतरिक्ष यात्रियों के इम्यून ट्रांस्क्रिप्टोमों का अभियान के दौरान अलग अलग समयों पर विश्लेषण करने से लानेइयुविले की टीम ये पता लगा पाई कि उनकी प्रतिरोधक प्रणालियों ने छह महीने की अंतरिक्ष उड़ान के दरमियान कैसी प्रतिक्रिया की थी.
कथित रूप से 10 बिंदुओं यानी निर्धारित समयों पर खून के नमूने लिए गए. तीन अभियान से पहले, चार उसके दौरान, और बाकी तीन उसके बाद. खून के नमूनों के ट्रांस्क्रिप्टोम विश्लेषण ने फिर इम्यून सिस्टम से जुड़े जीन्स पर ध्यान केंद्रित किया और खासतौर पर डब्लूबीसी यानी ल्युकोसाइट्स पर.
निष्कर्षः अंतरिक्ष की उड़ान ने बदला इम्यून का जीन
टीम ने पाया कि छह महीने की अंतरिक्ष यात्रा के दौरान 297 जीन्स प्रभावित हुए थे. और उनमें से 100 प्रतिरोधक प्रतिक्रियाओं यानी शरीर की जवाबी कार्रवाइयों से जुड़े थे.
उनके मुताबिक सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष ये निकला कि प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ी जीन अभिव्यक्तियां अंतरिक्ष में बदल गई थीं- यानी प्रतिरोधक प्रणाली मंद पड़ गयी थी, जो शोधकर्ताओं को लगता है कि सुप्त पड़े वायरसों को फिर से सक्रिय होकर बीमारी उभारने का मौका देता है.
लानेइयुविले कहते हैं, "धरती पर लौटकर उल्टा ही हुआ और प्रतिरोध से जुड़े जीन्स एक्सप्रेशन फिर से लौट आए." यानी अंतरिक्ष यात्रियों की प्रतिरोधक प्रणालियां वापस बहाल हो गईं.
प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया कि अंतरिक्ष यात्रियों के जो जीन्स प्रभावित हुए थे उनमें वे भी शामिल थे जो "कोशिकाओं के बुनियादी देखभाल के कार्य" और "शरीर के द्रवों यानी तरल पदार्थों की व्यवस्था" से जुड़े थे. शून्य गुरुत्व के दौरान रक्त प्रवाह के बदलावों के साथ शरीर को सामंजस्य बैठाने के तरीकों से ये परिवर्तन जुड़े थे.
प्रतिरोधक प्रणाली को मंद कैसे करती है अंतरिक्ष की उड़ान?
लानेइयुविले का कहना है कि शोधकर्ता नहीं जानते कि अंतरिक्ष उड़ान, प्रतिरोध प्रणाली को कमजोर कैसे करती है, लेकिन वे ये बेशक जानते हैं कि इसके पीछे बहुत से कारण काम करते हैं. "अंतरिक्ष का पर्यावरण इंसानी देह के लिए रूखा और सख्त है- वहां शून्य गुरुत्व है, कॉस्मिक विकिरण है, तनाव और अलगाव है. हमारा अध्ययन दिखाता है कि अंतरिक्ष यात्रियों की श्वेत रक्त कोशिकाएं (डब्लूबीसी) उन तमाम तनाव प्रदाता स्थितियों से रिस्पॉन्ड करती है, खासकर जीन एक्सप्रेशन के पैटर्न के जरिए."
तमाम कारणों में लानेइयुविले को आशंका है कि माइक्रोग्रैविटी यानी शून्य गुरुत्व ही है जिसका अंतरिक्ष में मनुष्य की प्रतिरोध प्रणाली पर सबसे ज्यादा असर हो सकता है.