रिटायर रेलकर्मी ने कायम की मिसाल, पीएफ की रकम से बनवाया पुल
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

कुशीनगर: उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के एक गांव में रिटायर रेलकर्मी संतू प्रसाद बांस-बल्ली का अस्थाई पुल टूटने से नाले में गिरी बच्ची की मौत देखकर विचलित हो गए. रिटायरमेंट में बाद मिली पीएफ की रकम से तीन लाख रुपये खर्चकर और ग्रामीणों के श्रमदान की बदौलत 70 फीट लंबा पुल बना डाला. इस पुल के बन जाने से पांच किलोमीटर की दूरी एक किलोमीटर में सिमट गई है. इससे पैदल व बाइक-साइकिल वाले गुजरते हैं.

कुशीनगर जिले के कप्तानगंज ब्लाक क्षेत्र के ग्राम भड़सर खास के माफी टोला से गुजरने वाले मौन नाले पर पहले बांस का अस्थायी पुल था. इससे गुजरना जोखिम भरा काम था. जुलाई, 2013 में एक बच्ची की मौत इससे गिरकर हो गई थी. उन्हीं दिनों संतू रेलवे पैटमैन की नौकरी से रिटायर होकर गांव लौटे थे. इस हादसे ने उन्हें विचलित कर दिया.

वह बताते हैं, "मुझे पीएफ के 13 लाख रुपये मिले थे. पेंशन 15,500 रुपये बनी. बच्ची की मौत से मुझे दुख हुआ. मैंने सोचा कि यहां पुल बनना चाहिए. भले ही जीवनभर की पूंजी लग जाए."

संतू प्रसाद ने पुल बनाने का बीड़ा उठाया. पीएफ के रुपये में से 10 लाख रुपये वह बेटों को दे चुके थे. बाकी तीन लाख रुपये से काम शुरू कराया. पांच पायों वाले पक्के पुल का निर्माण देख गांव के कई लोग साथ आए. किसी ने सीमेंट दी तो किसी ने लोहा. संतू के साथ तमाम लोगों ने श्रमदान भी किया. अंतत: पैदल और साइकिल-बाइक चलने लायक पुल बन गया.

डेढ़ बीघा जमीन के मालिक संतू की इस पहल से 12 गांवों के लोगों को राहत मिली है. इनमें सोमली, पेमली, बरवां, जमुनी, नारायन भड़सर, भड़सर के 14 टोलों समेत अन्य गांव शामिल हैं. करीब दस हजार लोगों की कप्तानगंज ब्लॉक मुख्यालय से दूरी अब पांच किलोमीटर से घटकर एक किलोमीटर रह गई है.

कई दशक से इस जगह बांस का पुल था. टोले के लोग समय-समय पर मरम्मत करके इसे चलने लायक बनाए रखते थे. कई सांसदों-विधायकों तक ग्रामीणों ने फरियाद की पर सुनवाई नहीं हुई. आश्वासन मिलते रहे.

बिहार में दशरथ मांझी ने तो छेनी-हथौड़ी से पहाड़ काटकर सड़क बना दी थी.  दशरथ मांझी की कहानी दुहराने वाले संतू रोज पुल पर जाते हैं. कोई टूट-फूट दिखे तो खुद ठीक करते हैं.

क्षेत्रीय विधायक रामानंद बौद्ध का कहना है कि वह संतू प्रसाद को उनके प्रयास के लिए सम्मानित करेंगे.