Yogeshwar Dwadashi 2024: कौन है योगेश्वर और क्यों मनायी जाती है योगेश्वर द्वादशी? जानें इस व्रत-अनुष्ठान की विधि एवं पौराणिक कथा!
Yogeshwar Dwadashi

हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की 12वीं तिथि को योगेश्वर द्वादशी मनाई जाती है. इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की संयुक्त पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से उनकी पूजा करने से मन की सारी कामनाएं पूरी होती हैं. इस वर्ष 13 नवंबर 2024, बुधवार को यह पर्व मनाया जाएगा. आइये जानते हैं योगेश्वर द्वादशी का महत्व, पूजा-विधि एवं इससे संबंधित पौराणिक कथा इत्यादि...

क्यों मनाया जाता है योगेश्वर द्वादशी?

हिंदू मान्यताओं के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन देवी तुलसी से विवाह करने के पश्चात विष्णु और लक्ष्मी के सम्मान, और तुलसी के पौधे और शालिग्राम पत्थर की पूजा की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार राक्षस राज जालंधर की मृत्यु के पश्चात वृंदा पति के साथ सती हो गई. उनकी राख से एक पौधा उत्पन्न हुआ, जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया. भगवान विष्णु ने कहा कि वह शालिग्राम पत्थर में निवास करेंगे, कुछ मान्यताओं के अनुसार इसी दिन से तुलसी के पौधे की पूजा की परंपरा शुरू हुई. इसके अलावा योगेश्वर द्वादशी का संबंध महाभारत की पौराणिक कथा से भी जुड़ी है. यह भी पढ़ें : Tulsi Vivah 2024 Messages: हैप्पी तुलसी विवाह! प्रियजनों संग शेयर करें ये हिंदी Quotes, WhatsApp Wishes, GIF Greetings और Photo SMS

योगेश्वर द्वादशी पूजा-विधि

कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन सुबह-सवेरे स्नानादि के पश्चात तुलसी जी और आंवले के वृक्ष के आसपास के हिस्से की सफाई करके थोड़ा सा गंगाजल छिड़कें. मान्यता है कि आंवले के पेड़ में विष्णु जी निवास करते हैं, इसलिए इस दिन दोनों वृक्षों की पूजा का विधान है. यहां रंगोली सजाएं. तुलसी पौधे के समीप धूप-दीप प्रज्वलित करें. उन्हें चुनरी ओढ़ाएं. तत्पश्चात चूड़ी, बिंदी, काजल, नथनी जैसे सुहाग की वस्तुएं भेंट करें. उन्हें रोली, सिंदूर, फल, फूल, गजरा, अक्षत अर्पित करें. अब तुलसी जी के आह्वान हेतु भजन-कीर्तन गाएं. भोग में फल मिष्ठान चढ़ाएं. तुलसी जी को दीप-दान करें. अंत में तुलसी जी और भगवान विष्णु जी की आरती उतारें, और सभी को प्रसाद वितरित करें.

योगेश्वर द्वादशी की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार देवी लक्ष्मी के अनुरोध पर जब वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त किया और अपने पति जालंधर का कटा सिर लेकर सती हो गई. इसके कुछ समय के बाद वृंदा की चिता की राख से एक पौधा निकला. भगवान विष्णु ने इस पौधे को तुलसी नाम दिया. भगवान विष्णु ने कहा कि शालिग्राम नाम से मैं इस पत्थर में हमेशा के लिए रहूंगा. उन्होंने यह भी कहा कि जो भी भक्त उनकी पूजा करेगा, उसे तुलसी पत्ता भी चढ़ाना होगा, तभी उसकी पूजा पूर्ण होगी. इसके बाद से ही तुलसी जी की देवी के रूप में पूजा होती है.