World Population Day 2022: कब और क्यों मनाया जाता है विश्व जनसंख्या दिवस? जानें जनसंख्या विस्फोट का दंश झेल रहे भारत की चिंताएं!
World Population Day

भारत की निरंतर विस्फोटक होती जनसंख्या देश के सामने एक गंभीर चुनौती बन रही है. गौरतलब है कि सीमित साधन में असीमित होती जनसंख्या का असर देश के विकास, खाद्यान्न व्यवस्था, पर्यावरण, शिक्षा, रोजगार, महंगाई एवं जन्म एवं मृत्यु दर जैसी मूलभूत बातों को बुरी तरह प्रभावित कर रही है. ऐसा नहीं कि यह चुनौती भारत के लिए ही मुसीबत है, बल्कि दुनिया के तमाम देश इस दंश को झेल रहे हैं. इसी आपदा से निपटने और नियंत्रण रखने के लिए 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के आयोजन की शुरुआत हुई, लेकिन क्या भारत इससे किंचित लाभान्वित हुआ है? ‘नहीं’. आज हम भारत के परिप्रेक्ष्य में विश्व जनसंख्या दिवस पर बात करेंगे, लेकिन पहले जानें इसका इतिहास क्या कहता है.

क्या है इसका इतिहास!

साल 1987 में जब विश्व की कुल जनसंख्या पांच अरब के ग्राफ को भी क्रॉस कर गई, तब संयुक्त संघ ने चिंता जताई. और तमाम देशों के सुझाव और सहमति के बाद 11 जुलाई 1989 को पहली बार विश्व जनसंख्या दिवस मनाया गया. साथ ही संयुक्त राष्ट्र में बढ़ती आबादी पर नियंत्रण रखने और परिवार नियोजन के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए एक वृहद कार्यक्रम का आयोजन किया गया. संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व जनसंख्या दिवस को सफल बनाने के लिए तमाम किस्म के कार्यक्रमों एवं मिशन शुरू करने की योजनाएं बनती और क्रियान्वित होती हैं.

भारत की चिंता

विश्व जनसंख्या दिवस के परिप्रेक्ष्य में भारत की चिंता बेमानी नहीं है, क्योंकि भारत के पास दुनिया का सिर्फ 2 प्रतिशत भूभाग है, और 16 प्रतिशत की वैश्विक आबादी है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार साल 2001 और 2011 की जनगणना के बीच देश में 18 प्रतिशत आबादी में वृद्धि हुई है. संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग के जनसंख्या प्रभाग के अनुसार, अगर जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं रखा गया तो अगले तीन वर्षों में भारत की आबादी लगभग 273 मिलियन हो जाएगी, और 7 वर्षों बाद भारत चीन की आबादी को पीछे छोड़ देगा. विस्फोट होती जनसंख्या भारत के निम्न चिंताओं को रेखांकित करता है.

जन्म दर एवं मृत्यु दर

भारत में जनसंख्या विस्फोट के लिए जन्म-दर और मृत्यु-दर भी महत्वपूर्ण कारण हैं. सूत्रों के अनुसार 20 वीं शताब्दी तक देश में मृत्यु दर और जन्म दर लगभग समान थी. यानी जनसंख्या वृद्धि की दर धीमी थी. हालांकि, स्वास्थ्य के क्षेत्र में बढ़ती तकनीकी सुविधाओं, शिक्षा स्तर, समुचित पोषण और आहार आदि की उपलब्धता में क्रमिक सुधार के साथ, लोग लंबे समय तक जीवित रहने लगे और मृत्यु-दर में गिरावट आने लगी. जन्म और मृत्यु-दर में इस बेमेल परिणाम के कारण भी पिछले कुछ दशकों में भारत में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. साल 2020 तक भारत में जन्म-दर 18.2 प्रति 1000 जनसंख्या और मृत्यु-दर 7.3 प्रति 1000 जनसंख्या पर दर्ज की गई थी.

गरीबी और निरक्षरता

गरीबी और निरक्षरता भी जनसंख्या विस्फोट की एक वजह होती है. गांवों में बच्चे संपत्ति के रूप में देखे जाते हैं, कि बड़े होकर मां-पिता की सेवा करेंगे, वहीं गरीब परिवार के बच्चों को कमाई का जरिया माना जाता है. इसके अलावा महिला-शिक्षा का असर उनकी प्रजनन क्षमता पर पड़ता है. निरक्षर महिलाओं की प्रजनन दर साक्षर महिलाओं की तुलना में अधिक होता है. अशिक्षित महिलाएं गर्भ निरोधकों, बार-बार शिशु जन्म देने के दुष्परिणामों एवं प्रजनन समस्याओं को समझ नहीं पाती. वहीं शिक्षित महिलाएं अपने अधिकारों और गर्भनिरोधक के विकल्पों को समझती हैं, कम उम्र में शादी का विरोध एवं एक या दो बच्चों से ज्यादा नहीं चाहतीं.

परिवार नियोजन और अन्य सामाजिक कारक

परिवार नियोजन कार्यक्रम की स्थापना के 7 दशक बाद आज भी देश में परिवार नियोजन का स्वरूप अधिक नहीं बदला है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015 - 2016) की रिपोर्ट के अनुसार गत 8 वर्षों में कंडोम के उपयोग में 52 प्रतिशत की गिरावट आई है. पुरुष नसबंदी 73 प्रतिशत तक कम हुआ है. इसके अलावा आज भी महिलाओं को यह अधिकार नहीं है कि वे गर्भवती होने के लिए तैयार हैं भी या नहीं. इस प्रक्रिया में, महिलाओं को बार-बार गर्भवती होना पड़ता है, और एक बेटे के लिए बार-बार माँ बनना पड़ता है.