मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ाने के उद्देश्य से दुनिया भर में 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है. कोविड -19 की महामारी के बाद मानसिक रोगों से जूझ रहे लोगों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. बड़े ही नहीं बल्कि इस संदर्भ में बच्चों पर हुए सर्वे की रिपोर्ट भी चिंता में डालने वाली है. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार केवल भारत में 14 फीसदी बच्चे अवसाद से ग्रस्त बताये जाते हैं. इससे समझा जा सकता है कि 10 अक्टूबर को मनाये जाने वाले विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की भारत में क्या अहमियत है, और क्यों हम सभी को मानसिक सेहत के प्रति आम लोगों में जागरूकता फैलाना आवश्यक है. आइये जानते हैं, इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण एवं रोचक बातें...
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का इतिहास
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का पहली बार आयोजन 10 अक्टूबर 1992 को किया गया था. इसकी शुरुआत तत्कालीन डिप्टी जनरल सेक्रेटरी रिचर्ड हंटर द्वारा विश्व मानसिक स्वास्थ्य महासंघ की वार्षिक एक्टिविटी के रूप में की गई थी. प्रारंभ में इस दिवस विशेष का कोई खास विषय नहीं था, इसका मुख्य मकसद मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक एवं प्रशिक्षित करना था. 1994 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के जनरल सेक्रेटरी यूजीन ब्रॉडी ने पहली बार इस दिवस विशेष पर एक थीम जिसका विषय, ‘दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार’ लाना था.
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का महत्व!
कोरोना महामारी ने प्रमाणित कर दिया है कि हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के बीच गहरा संबंध होता है. चिकित्सकों का भी मानना है कि हमारा शारीरिक स्वास्थ्य का असर हमारे मनोमस्तिष्क को बुरी तरह प्रभावित करता है. कोरोना के बाद स्थिति बद से बदतर हुई है. ऐसे में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस हमें जागृत करता है कि हम सभी को अपनी सेहत संबंधी छोटी-मोटी समस्याएं एक दूसरे से शेयर करनी चाहिए और उसका तत्काल समाधान ढूंढना चाहिए, ताकि समय रहते उस पर नियंत्रण पा सकें. इस अवसर पर ITC Fiama और Nielsen ने संयुक्त रूप से भारत ही नहीं दुनिया भर में सर्वे किया है, और भारत के परिप्रेक्ष्य में जो रिपोर्ट जारी किया है, विशेष रूप से युवाओं की अनियंत्रित होती लाइफ स्टाइल के बारे में कि अत्यधिक तनाव की वजह काम का जरूरत से ज्यादा प्रेशर साथ ही रिलेशनशिप और अलगाव मुख्य हैं.
विश्व मानसिक दिवस के परिप्रेक्ष्य में भारत की तस्वीर!
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ सोशल साइकियाट्री की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत 25 फीसदी लोग मानसिक तनाव, चिंता एवं अवसाद आदि से पीड़ित हैं. इसके अलावा यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 14 फीसदी किशोर बच्चे किसी ना किसी कारण से अवसाद ग्रस्त हैं. लगातार बढ़ रही इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए हम सभी को मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चैतन्य रहने की जरूरत है. हमारे देश में अंधविश्वास भी कम नहीं है. मानसिक बीमारियों से जूझ रहे लोगों का मेडिकल इलाज कराने के बजाय भूत-प्रेत, पागलपन, मिर्गी अथवा दिमागी दौरा मानकर झाड़-फूंक के चक्कर में फंस जाते हैं. जिसके कारण कभी-कभी मरीज की जान भी चली जाती है.