प्रत्येक वर्ष 3 मार्च को विश्व श्रवण दिवस मनाया जाता है. इस दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन एक कैंपेन आयोजित करके लोगों को बहरेपन की बढ़ रही समस्याओं के प्रति जागरूक करता है. इस दिवस को मनाने का मुख्य मकसद लोगों को बहरेपन की समस्या के कारण और निवारण के प्रति जागरूक करना है. इस दरम्यान लोगों को यह भी बताया जाता है कि लोग कैसे अपने कान की सुरक्षा और सेहत पर ध्यान देना चाहिए. विश्व श्रवण दिवस पर दुनिया के कोने-कोने में कई कैंपेन और प्रोग्राम आयोजित किए जाते हैं, ताकि लोग इन आयोजनों में उपस्थिति दर्ज करने के साथ इस गंभीर समस्या पर भी नजर रखें.
विश्व श्रवण दिवस का इतिहास?
तेजी से बढ़ते बहरेपन की समस्या से लोगों को जागरूक करने के लिए साल 2007 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘विश्व श्रवण दिवस’ मनाने की घोषणा की थी. प्रारंभ में इसे ‘इंटरनेशनल ईयर केयर’ के नाम से मनाने की घोषणा की थी. साल 2016 में इसे ‘वर्ल्ड हियरिंग डे’ यानी विश्व श्रवण दिवस का नाम मिला. इस अवसर के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन एक थीम तैयार करता है साथ ही शैक्षिक सामग्री तैयार करता है, जो विभिन्न भाषाओं में लोगों को उपलब्ध कराये जाते हैं, ताकि लोगों को जागरूक किया जा सके. यह भी पढ़ें : International Women Day 2023: ट्रेनों की मरम्मत से लेकर सुरक्षा तक, जिम्मेदारी निभा रही आधी आबादी
विश्व श्रवण दिवस का महत्व
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आयोजित यह दिवस श्रवण तंत्रिकाओं की सुरक्षा एवं रोग निवारक उपायों को अपनाने के लिए की जाने वाली कार्रवाई के बारे में जागरूकता फैलाने का अवसर प्रदान करता है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 1.5 अरब लोग पूर्ण अथवा आंशिक रूप से बहरेपन की समस्याओं का सामना कर रहे हैं. इसमें करीब 4 करोड़ 30 लाख लोग ऐसी स्थिति में हैं, जिन्हें यथाशीघ्र पुनर्वास की जरूरत है. जहां तक भारत की बात है तो यहां 6.5 करोड़ से भी अधिक लोग ऐसे हैं, जिन्हें या तो कम सुनाई देता है अथवा बिलकुल भी सुनाई नहीं देता. इतनी बड़ी जनसंख्या का इस समस्या से ग्रस्त होने के बावजूद व्यक्ति विशेष की श्रवण समस्या को समझने और एक्सपर्ट चिकित्सक के पास आने तक 5 से 6 साल लग जाते हैं. इस तरह इलाज में देरी की वजह से लोगों में विभिन्न मानसिक बीमारियों अथवा अवसाद उत्पन्न होते हैं.
बहरेपन के मुख्य कारण
श्रवण समस्या के कई कारण हो सकते हैं. इनमें से प्रमुख कारण ये हैं.
बढ़ती उम्रः बढ़ती उम्र बहरेपन का आम कारण हो सकता है. अक्सर बढ़ती उम्र के साथ कान की नसें कमजोर होने से भी व्यक्ति विशेष बहरेपन का शिकार हो सकता है. विशेषज्ञों की मानें तो शुरू-शुरू में पीड़ित को पता ही नहीं चल पाता कि उसकी श्रवणीय क्षमता कम हो रही है. इसकी वजह से बीमारी कभी-कभी नियंत्रण से बाहर हो सकती है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 60 वर्ष से अधिक आयु के 33 प्रतिशत लोगों बहरेपन की शिकायत होती है, जब 74 वर्ष की उम्र में यह 50 फीसदी पाया जाता है.
ध्वनि प्रदूषणः बढ़ती उम्र के अलावा ध्वनि प्रदूषण भी बहरेपन का दूसरा बड़ा कारण होता है. निरंतर बढ़ते ट्रैफिक का शोर कानों पर बुरा प्रभाव डालता है. युवाओं में ईयरफोन से फास्ट म्यूजिक सुनने अथवा ज्यादा से ज्यादा समय मोबाइल पर गाने सुनने से भी कानों पर बुरा असर पड़ता है. इससे प्राप्त आंकड़े चिंता करने वाले हैं कि 20 से 40 वर्ष के करीब 20 प्रतिशत से ज्यादा युवाओं में बहरेपन की शिकायत देखने को मिलती है. इसमें एक कारक बिना ईयर फोन के फैक्ट्री में काम करने वालों में भी बहरेपन के आंकड़े परेशान करने वाले हैं.
सिर में चोट लगनाः चिकित्सकों का मानना है कि चोट लगने से भी श्रवणीय क्षमता प्रभावित हो सकती है. यदि दुर्घटना के दौरान शारीरिक चोट या झटका कान के करीब होता है तो यह चोट बहरेपन का कारण बन सकता है.
कान का संक्रमणः अकसर कान के संक्रमण से कान की नसों में सूजन आ जाती है, जिससे कान की नहर बंद हो जाती है, परिणाम स्वरूप ध्वनि तरंगें कान के भीतर तक नहीं पहुंच पाती. कभी-कभी कान में तरल पदार्थ का संग्रह भी श्रवणीय क्षमता को कम करता है.